दोहा सप्तक. . . धर्म
धर्म बताता जीव को, पाप- पुण्य का भेद ।
कैसे जीना चाहिए, हमें सिखाते वेद ।।
दया धर्म का मूल है, यही सत्य अभिलेख ।
करे अनुसरण जीव जो, बदले जीवन रेख ।।
सदकर्मों से है भरा, हर मजहब का ज्ञान।
चलता जो इस राह पर, वो पाता पहचान ।।
पंथ हमें संसार में, सिखलाते यह मर्म ।
जीवन में इन्सानियत, सबसे उत्तम कर्म ।।
चलते जो संसार में, सदा धर्म की राह ।
नहीं निकलती कष्ट में, उनके मुख से आह ।।
धर्म - कर्म से जो भरे,…
ContinueAdded by Sushil Sarna on January 18, 2025 at 1:09pm — No Comments
दोहे (प्रकृति)
पूजूँ प्रकृति प्रथम पद, पग-पग पर उपकार।
अस्थि चर्म की देह मम, पंच तत्त्व का सार।1।
दसों दिशा मन में बसी, करते कवि अरदास।
धरा अग्नि रवि पवन सह,पूजें जल आकास।2।
पूजूँ धरती…
ContinueAdded by सुरेश कुमार 'कल्याण' on January 18, 2025 at 12:30pm — No Comments
दोहा सप्तक. . . जीत -हार
माना जीवन को नहीं, अच्छी लगती हार ।
संग जीत के हार पर, जीवन का शृंगार ।।
हार सदा ही जीत का, करती मार्ग प्रशस्त ।
डरा हार से जो हुआ, उसका सूरज अस्त ।।
जीत हार के सूत में, उलझा जीवन गीत ।
दूर -दूर तक जिंदगी, ढूँढे सच्चा मीत ।।
कभी हार है जिंदगी, कभी जिंदगी जीत ।
जीवन भर होता ध्वनित, इसमें गूँथा गीत ।।
मतलब होता हार का, फिर से एक प्रयास ।
हर कोशिश में जीत की, मुखरित होती आस ।।
निष्ठा पूर्वक जो करें , …
ContinueAdded by Sushil Sarna on January 16, 2025 at 3:00pm — No Comments
शर्मिन्दगी ....
"मैने कहा, सुनती हो ।"रामधन ने अपनी पत्नी को आवाज देते हुए कहा ।
"क्या हुआ, कुछ कहो तो सही ।"
"अरे होना क्या है । अपने पड़ोसी रावत जी की बेटी संजना ने अपने ब्वाय फ्रेंड के साथ भाग कर कोर्ट मैरिज करके इस उम्र में अपने माँ-बाप को शर्मसार कर दिया ।बेचारे! अच्छा हुआ, अपनी कोई बेटी नही केवल एक बेटा राहुल है ।" रामधन ने कहा।
इतने में डोर बेल बजी टननन ।
"कौन? " रामधन जी दरवाजे खोलते हुए बोले ।
" रामधन जी, अपने संस्कारवान बेटे को…
ContinueAdded by Sushil Sarna on January 15, 2025 at 1:12pm — No Comments
दोहा सप्तक . . . . पतंग
आवारा मदमस्त सी, नभ में उड़े पतंग ।
बीच पतंगों के लगे, अद्भुत दम्भी जंग ।।
बंधी डोर से प्यार की, उड़ती मस्त पतंग ।
आसमान को चूमते, छैल-छबीले रंग ।।
कभी उलझ कर लाल से, लेती वो प्रतिशोध ।
डोर- डोर की रार का, मन्द न होता क्रोध ।।
नीले अम्बर में सजे, हर मजहब के रंग ।
जात- पात को भूलकर, अम्बर उड़े पतंग ।।
जैसे ही आकाश में, कोई कटे पतंग ।
उसे लूटने के लिए, आते कई दबंग ।।
किसी धर्म की है हरी, किसी धर्म की…
ContinueAdded by Sushil Sarna on January 14, 2025 at 8:40pm — No Comments
जब उमड़ते भाव अविरल अश्रु का संसार लेकर
तब कहीं कविता उपजती शब्द का आकार लेकर
पीर के परिमाप से करके स्वयं का 'नाथ' तर्पण
रात दिन पीड़ा दबाए आत्म का करके समर्पण
दर्द की अभिव्यंजना से कुछ नई गढ़ कल्पनाएँ
चित्र छपते जब हृदय पर कुछ नए किरदार लेकर
तब कहीं कविता उपजती शब्द का आकार लेकर
तप्त धरती बादलों की जिस घड़ी करती प्रतीक्षा
दर्द में डूबे हृदय की वास्तविक होती परीक्षा
याचना करता पपीहा और बिछुड़न के हृदय से
छेड़ती है राग विरहन जब…
Added by नाथ सोनांचली on January 14, 2025 at 2:14pm — No Comments
मकर संक्रांति
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प्रकृति में परिवर्तन की शुरुआत
सूरज का दक्षिण से उत्तरायण गमन
होता जीवन में नव संचार
बाँट रहे तिल शक्कर मूंगफली वस्त्र
ढोल पर तक - धिन - तक - धिन थिरकते…
ContinueAdded by सुरेश कुमार 'कल्याण' on January 13, 2025 at 8:00pm — 1 Comment
पूछ सुख का पता फिर नए साल में
एक निर्धन चला फिर नए साल में।१।
*
फिर वही रोग संकट वही दुश्मनी
क्या हुआ है नया फिर नए साल में।२।
*
बात यूँ तो विगत भी रही अनसुनी
किसने माना कहा फिर नए साल में।३।
*
लोग नफरत पहन दौड़ते जा रहे
जब वही है हवा फिर नए साल में।४।
*
मैं न स्वागत न तू दोस्ती कर रहा
कौन सीखा बता फिर नए साल में।५।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 12, 2025 at 7:45am — No Comments
चाहे करता भाग्य ही, जीवन भर संयोग
उच्च कर्म से भाग्य भी, बदला करते लोग।१।
*
सद्कर्मों की चाल से, माता देकर त्राण
गर्भकाल में जीव का, करे भाग्य निर्माण।२।
*
कर्म भाग्य दोनों रहें, जब बन पूरक रोज
पाते दुख के गाँव में, मानव तब सुख खोज।३।
*
सदा कर्म ही जीव का, देता है फल जान
उद्यत लेकिन कर्म को, भाग्य करे नादान।४।
*
गर्भकाल है स्वर्ग या, जीवन से बढ़ नर्क
या लेखा है भाग्य का, अपने अपने तर्क।५।
*
गर्भ काल सब…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 8, 2025 at 1:30pm — No Comments
तेरी बात अगर छिड़ जाती
जाने तुमको क्या क्या कहता
सूरज चंदा तारे उपवन
झील समंदर दरिया कहता
कहता तेरे होंठ गुलाबी
जैसे सूरज निकल रहा है
कहता बदन तुम्हारा ऐसा
जैसे सोना पिघल रहा है
मै तुमको सम्मोहक कहता
मै मनभावन रत्ना कहता
कहता तेरा रूप बहारों
की तरुणाई के जैसा है
और बदन, कहता संगमरमर
सी चिकनाई के जैसा है
तुमको पूनम की रातों का
जगमग जगमग चंदा कहता
तेरे…
Continueबेटी को बेटी रखो, करके इतना पुष्ट
भीतर पौरुष देखकर, डर जाये हर दुष्ट।१।
*
बेटा बेटा कह नहीं, बेटी ही नित बोल
बेटा कहके कर नहीं, कम बेटी का मोल।२।
*
करती दो घर एक है, बेटी पीहर छोड़
कहे पराई पर उसे, जग की रीत निगोड़।३।
*
कर मत कच्ची नींव पर, बेटी का निर्माण
होता नहीं समाज का, ऐसे जग में त्राण।४।
*
बेटी को मत दीजिए, अबला है की सीख
कर्म उसी के गेह से, रहे चाँद तक चीख।५।
*
बेटों को भी दीजिए, कुछ ऐसे सँस्कार
बेटी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 7, 2025 at 1:27pm — No Comments
नाम भले पहचान है, किन्तु बड़ा है कर्म
है जीवन में वो सफल, जो समझा ये मर्म।१।
*
महिमा कहते कर्म की, जग में संत कबीर
नाम-नाम ही जो रटे, समझो सिर्फ फकीर।२।
*
नामीं द्विज भी रह गये, कर्म फला रैदास
पुण्य कर्म आशीष को, गंगा माई पास।३।
*
केवल कर्म बखानता, जग में है इतिहास
सूरज जैसा कर्म ही, देता नाम उजास।४।
*
दबे कोख इतिहास की, कर्महीन जो गाँव
किन्तु उजागर हो गये, सदा कर्म के पाँव।५।
*
लिखे कर्म की लेखनी, चमक चाँदनी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 6, 2025 at 5:40pm — No Comments
चला क्या आज दुनिया में बताने को वही आया
जमा है धुंध का बादल हटाने को वही आया
जरा सोचो कभी झगड़े भला करते किसी का क्या
कभी बारूद या गोले बसा पाए किसी को क्या
तबाही ही तबाही है दिखाने को वही आया
जमा है धुंध का बादल हटाने को वही आया
मतों का भिन्न हो जाना सही है मान लेते हैं
सभी चिंतन जरूरी हैं इसे भी जान लेते हैं
मगर कट्टर नहीं अच्छा जताने को यही आया
जमा है धुंध का बादल हटाने को वही आया
चला है देख लो कैसा…
ContinueAdded by सतविन्द्र कुमार राणा on January 5, 2025 at 10:30pm — No Comments
शीत लहर की चोट से, जीवन है हलकान
आँगन जले अलाव तो, पड़े जान में जान।१।
*
मौसम का क्या हाल है, पर्वत पूछे नित्य
ठिठुर चाँद सा हो गया, क्या बोले आदित्य।२।
*
धुन्ध फैलती जा रही, ठिठुरन है चहुँ ओर
गर्म लहू का देह में, शिथिल पड़ गया जोर।३।
*
चला न पलभर सिर्फ रख, एसी-कूलर बंद
तन कहता है खूब ले, कम्बल का आनन्द।४।
*
फैला चादर धुन्ध की, हो मौसम गम्भीर
कहे सुखाओ रे! इसे, मिलकर सूर्य समीर।५।
*
पीते गटगट चाय सब, पहने मोजे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 4, 2025 at 2:23pm — No Comments
दोहा पंचक. . . . जीवन
पीपल बूढ़ा हो गया, झड़े पीत सब पात ।
अपनों से मिलने लगे, घाव हीन आघात ।।
ठहरी- ठहरी जिन्दगी, देखे बीते मोड़ ।
टीस छलकती आँख से,पल जो आए छोड़ ।।
विचलित करता है सदा, सुख का बीता काल ।
टूटे से जुड़ती नहीं, कभी वृक्ष से डाल ।।
अपने ही देने लगे, अब अपनों को मात ।
मिलती है संसार में, आँसू की सौग़ात ।।
पल - पल ढलती जिंदगी, ढूँढे अपना छोर ।
क्या जाने किस साँस की, अन्तिम होगी भोर ।।
सुशील सरना / 3-1-25
मौलिक एवं…
ContinueAdded by Sushil Sarna on January 3, 2025 at 8:30pm — No Comments
दोहा पंचक. . . संघर्ष
आज पुराना हो गया, कल का नूतन वर्ष ।
फिर रोटी के चक्र में, डूबा सारा हर्ष ।।
नया पुराना एक सा, निर्धन का हर वर्ष ।
उसके माथे तो लिखा, रोटी का संघर्ष ।।
ढल जाता है साँझ को, भोर जनित उत्साह ।
लेकिन रहती एक सी, दो रोटी की चाह ।।
किसने जाना काल का, कल क्या होगा रूप ।
सुख की होगी छाँव या, दुख की होगी धूप ।।
चार घड़ी का हर्ष फिर , बीता नूतन वर्ष ।
अविरल चलता है मगर, जीवन का संघर्ष ।।
सुशील सरना /…
ContinueAdded by Sushil Sarna on January 2, 2025 at 2:52pm — No Comments
सूरज सजीले साल का
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ठंड से ठिठुरती सुनसान गलियां
ओसाए हुए से सुन्न पड़े खेत
घुटती जमती लाचार सी जिंदगी
धुंध के आगोश में गुम होता जीव - जगत
ठिठुरती ठिठुरन को दूर करने
आ गया सजकर सूरज
नए नवेले सजीले साल का ।
शीत सी शीतल होती मानवता
नूतन निर्माण करने
निचले - कुचले
पद - दलित का कल्याण करने
साधु सन्यासी का त्राण करने
विप्लव का…
ContinueAdded by सुरेश कुमार 'कल्याण' on December 31, 2024 at 7:57pm — No Comments
नूतन वर्ष
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दुल्हन सी सजी-धजी
गुजर रहे साल की अंतिम शाम ।
लोग मग्न हैं
जाने वाले वर्ष की विदाई में
कुछ नवागंतुक के स्वागत में।
कोई मंत्र उच्चारण - हवन करने में …
ContinueAdded by सुरेश कुमार 'कल्याण' on December 31, 2024 at 7:35pm — 3 Comments
212 /212/ 212 /212
*
बच पवन से सँभलना नये साल में
हमको दीपक सा जलना नये साल में।१।
*
मेट अन्याय और कालिमा चाहिए
न्याय विश्वास फलना नये साल में।२।
*
छोड़ना है हमें देश हित में सहज
नफरतों से उबलना नये साल में।३।
*
सिर्फ रिश्तों की खातिर भुला द्वेष को
मन से मन तक टहलना नये साल में।४।
*
होगा उन्नत बहुत देश अपना तभी
सब जिएँ छोड़ छलना नये साल में।५।
*
कर रहा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2024 at 8:56am — No Comments
२१२/२१२/२१२/२१२
*
जो चले कर्म में सिलसिला राम का
लौट आये सनम काफ़िला राम का।१।
*
एक विनती करें भोले शंकर से हम
देश ही क्या जगत हो जिला राम का।२।
*
धन्य जीवन हमारा भी होता बहुत
देख लेते अगर मुख खिला राम का।३।
*
जो भी वंचित सदा दुख रहे भोगते
हैं सुखी साथ जिनको मिला राम का।४।
*
दोष मढ़ते बहुत वो अधम राम पर
भेद पाये नहीं जो किला राम का।५।
*
राम पाना कठिन शेष जीवन में पर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 29, 2024 at 2:00pm — No Comments
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