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मकर संक्रांति

मकर संक्रांति 

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प्रकृति में परिवर्तन की शुरुआत

सूरज का दक्षिण से उत्तरायण गमन

होता जीवन में नव संचार

बाँट रहे तिल शक्कर मूंगफली वस्त्र

ढोल पर तक - धिन - तक - धिन थिरकते…

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Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on January 13, 2025 at 8:00pm — 1 Comment

नए साल में - गजल -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

पूछ सुख का पता फिर नए साल में

एक निर्धन  चला  फिर नए साल में।१।

*

फिर वही रोग  संकट  वही दुश्मनी

क्या हुआ है नया फिर नए साल में।२।

*

बात यूँ तो  विगत भी रही अनसुनी

किसने माना कहा फिर नए साल में।३।

*

लोग नफरत  पहन  दौड़ते जा रहे

जब वही है हवा फिर नए साल में।४।

*

मैं न स्वागत  न  तू दोस्ती कर रहा

कौन सीखा बता फिर नए साल में।५।

*

मौलिक/अप्रकाशित

लक्ष्मण धामी…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 12, 2025 at 7:45am — No Comments

भाग्य और गर्भ काल ( दोहा दसक)-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

चाहे करता  भाग्य  ही, जीवन भर संयोग

उच्च कर्म से भाग्य भी, बदला करते लोग।१।

*

सद्कर्मों की  चाल  से, माता देकर त्राण

गर्भकाल में जीव का, करे भाग्य निर्माण।२।

*

कर्म भाग्य  दोनों  रहें, जब  बन पूरक रोज

पाते दुख के गाँव में, मानव तब सुख खोज।३।

*

सदा कर्म ही जीव का, देता है फल जान

उद्यत लेकिन कर्म को, भाग्य करे नादान।४।

*

गर्भकाल है स्वर्ग या, जीवन से बढ़ नर्क

या लेखा है भाग्य का, अपने अपने तर्क।५।

*

गर्भ काल सब…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 8, 2025 at 1:30pm — No Comments

जाने तुमको क्या क्या कहता

तेरी बात अगर छिड़ जाती

जाने तुमको क्या क्या कहता

सूरज चंदा तारे उपवन

झील समंदर दरिया कहता

कहता तेरे होंठ गुलाबी

जैसे सूरज निकल रहा है 

कहता बदन तुम्हारा ऐसा

जैसे सोना पिघल रहा है 

मै तुमको सम्मोहक कहता

मै मनभावन रत्ना कहता

कहता तेरा रूप बहारों

की तरुणाई के जैसा है

और बदन, कहता संगमरमर

सी चिकनाई के जैसा है

तुमको पूनम की रातों का

जगमग जगमग चंदा कहता

तेरे…

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Added by आशीष यादव on January 7, 2025 at 8:30pm — 1 Comment

दोहा दसक- बेटी -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

बेटी  को  बेटी  रखो, करके  इतना पुष्ट

भीतर पौरुष देखकर, डर जाये हर दुष्ट।१।

*

बेटा बेटा  कह  नहीं, बेटी  ही  नित बोल

बेटा कहके कर नहीं, कम बेटी का मोल।२।

*

करती दो घर  एक  है, बेटी पीहर छोड़

कहे पराई पर उसे, जग की रीत निगोड़।३।

*

कर मत कच्ची नींव पर, बेटी का निर्माण

होता नहीं  समाज  का, ऐसे जग में त्राण।४।

*

बेटी को मत दीजिए, अबला है की सीख

कर्म उसी के गेह  से, रहे चाँद तक चीख।५।

*

बेटों को भी दीजिए, कुछ ऐसे सँस्कार

बेटी…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 7, 2025 at 1:27pm — No Comments

दोहा सप्तक - नाम और काम- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

नाम भले पहचान  है, किन्तु बड़ा है कर्म

है जीवन में वो सफल, जो समझा ये मर्म।१।

*

महिमा कहते कर्म की, जग में संत कबीर

नाम-नाम ही जो रटे, समझो सिर्फ फकीर।२।

*

नामीं द्विज भी रह गये, कर्म फला रैदास

पुण्य कर्म  आशीष  को, गंगा  माई पास।३।

*

केवल कर्म बखानता, जग में है इतिहास

सूरज  जैसा  कर्म  ही, देता  नाम उजास।४।

*

दबे कोख इतिहास की, कर्महीन जो गाँव

किन्तु उजागर हो गये, सदा कर्म के पाँव।५।

*

लिखे कर्म की लेखनी, चमक चाँदनी…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 6, 2025 at 5:40pm — No Comments

जमा है धुंध का बादल

  

चला क्या आज दुनिया में बताने को वही आया

जमा है धुंध का बादल हटाने को वही आया

जरा सोचो कभी झगड़े भला करते किसी का क्या

कभी बारूद या गोले बसा पाए किसी को क्या

तबाही ही तबाही है दिखाने को वही आया

जमा है धुंध का बादल हटाने को वही आया

मतों का भिन्न हो जाना सही है मान लेते हैं

सभी चिंतन जरूरी हैं इसे भी जान लेते हैं

मगर कट्टर नहीं अच्छा जताने को यही आया

जमा है धुंध का बादल हटाने को वही आया

चला है देख लो कैसा…

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Added by सतविन्द्र कुमार राणा on January 5, 2025 at 10:30pm — No Comments

शीत- दोहा दसक-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

शीत लहर की चोट से, जीवन है हलकान

आँगन जले अलाव तो, पड़े जान में जान।१।

*

मौसम का क्या  हाल  है, पर्वत  पूछे नित्य

ठिठुर चाँद सा हो गया, क्या बोले आदित्य।२।

*

धुन्ध फैलती जा रही, ठिठुरन  है चहुँ ओर

गर्म लहू का देह में, शिथिल पड़ गया जोर।३।

*

चला न पलभर सिर्फ रख, एसी-कूलर बंद

तन कहता है खूब ले, कम्बल का आनन्द।४।

*

फैला चादर  धुन्ध  की, हो मौसम गम्भीर

कहे सुखाओ रे! इसे, मिलकर सूर्य समीर।५।

*

पीते गटगट  चाय  सब, पहने  मोजे…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 4, 2025 at 2:23pm — No Comments

दोहा पंचक. . . . .जीवन

दोहा पंचक. . . . जीवन

पीपल बूढ़ा हो गया, झड़े पीत सब पात ।

अपनों से मिलने लगे, घाव हीन आघात ।।

ठहरी- ठहरी  जिन्दगी, देखे बीते मोड़ ।

टीस छलकती आँख से,पल जो आए छोड़ ।।

विचलित करता है सदा, सुख का बीता काल ।

टूटे से जुड़ती नहीं, कभी वृक्ष से डाल ।।

अपने ही देने लगे, अब अपनों को मात ।

मिलती है संसार में, आँसू की सौग़ात ।।

पल - पल ढलती जिंदगी, ढूँढे अपना छोर ।

क्या जाने किस साँस की, अन्तिम होगी भोर ।।

सुशील सरना / 3-1-25

मौलिक एवं…

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Added by Sushil Sarna on January 3, 2025 at 8:30pm — No Comments

दोहा पंचक. . . संघर्ष

दोहा पंचक. . . संघर्ष

आज पुराना हो गया, कल का नूतन वर्ष ।

फिर रोटी के चक्र में, डूबा सारा हर्ष ।।

नया पुराना एक सा, निर्धन का हर वर्ष ।

उसके माथे तो लिखा, रोटी का संघर्ष ।।

ढल जाता है साँझ को, भोर जनित उत्साह ।

लेकिन रहती एक सी, दो रोटी की चाह ।।

किसने जाना काल का, कल क्या होगा रूप ।

सुख की होगी छाँव या, दुख की होगी धूप ।।

चार घड़ी का हर्ष फिर , बीता नूतन वर्ष ।

अविरल चलता है मगर, जीवन का संघर्ष ।।

सुशील सरना /…

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Added by Sushil Sarna on January 2, 2025 at 2:52pm — No Comments

सूरज सजीले साल का

सूरज सजीले साल का

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ठंड से ठिठुरती सुनसान गलियां 

ओसाए हुए से सुन्न पड़े खेत 

घुटती जमती लाचार सी जिंदगी

धुंध के आगोश में गुम होता जीव - जगत 

ठिठुरती ठिठुरन को दूर करने 

आ गया सजकर सूरज 

नए नवेले सजीले साल का ।

शीत सी शीतल होती मानवता 

नूतन निर्माण करने 

निचले - कुचले 

पद - दलित का कल्याण करने 

साधु सन्यासी का त्राण करने 

विप्लव का…

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Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on December 31, 2024 at 7:57pm — No Comments

नूतन वर्ष

नूतन वर्ष

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दुल्हन सी सजी-धजी 

गुजर रहे साल की अंतिम शाम ।

लोग मग्न हैं 

जाने वाले वर्ष की विदाई में 

कुछ नवागंतुक के स्वागत में।

कोई मंत्र उच्चारण - हवन करने में …

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Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on December 31, 2024 at 7:35pm — 3 Comments

नये साल में-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

212 /212/ 212 /212 

*

बच पवन  से  सँभलना  नये  साल में

हमको दीपक सा जलना नये साल में।१।

*

मेट  अन्याय  और  कालिमा  चाहिए

न्याय  विश्वास  फलना  नये  साल में।२।

*

छोड़ना  है  हमें  देश  हित में सहज

नफरतों  से   उबलना  नये  साल में।३।

*

सिर्फ रिश्तों की खातिर भुला द्वेष को

मन से मन तक टहलना नये साल में।४।

*

होगा उन्नत बहुत देश अपना तभी

सब जिएँ छोड़ छलना नये साल में।५।

*

कर रहा…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2024 at 8:56am — No Comments

राम पाना कठिन शेष जीवन में पर -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२/२१२/२१२/२१२

*

जो चले कर्म में सिलसिला राम का

लौट आये सनम काफ़िला राम का।१।

*

एक विनती  करें भोले  शंकर से हम

देश ही क्या जगत हो जिला राम का।२।

*

धन्य जीवन  हमारा  भी होता बहुत

देख लेते अगर मुख खिला राम का।३।

*

जो भी वंचित  सदा  दुख  रहे भोगते

हैं सुखी साथ जिनको मिला राम का।४।

*

दोष मढ़ते  बहुत  वो  अधम राम पर

भेद पाये  नहीं  जो  किला  राम का।५।

*

राम पाना कठिन शेष जीवन में पर…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 29, 2024 at 2:00pm — No Comments

जिन्दगी भर बे-पता रहना -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२२/२१२२/२

*

जिन्दगी  भर  बे-पता  रहना

हर जुबा पर हाँ लिखा रहना।१।

*

हर तरफ मौसम विषम होंगे

बस कुटज सा तू जगा रहना।२।

*

सन्त बिच्छू की कथा कहती

जात  में  अपनी  बना रहना।३।

*

झूठ चाहे चल रहा जग भर

सत्य मन  तू  बोलता रहना।४।

*

माँ पिता के छिन गये साये

सीख उससे बे-ख़ुदा रहना।५।

*

धीरता  कुछ   सीख  धरती से

हर समय क्या जलजला रहना।६।

*

क्या है करना  बेबफा जग…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 28, 2024 at 2:00pm — No Comments

दोहा पंचक. . . रोटी

दोहा पंचक. . . रोटी

सूझ-बूझ ईमान सब, कहने की है बात ।

क्षुधित उदर के सामने , फीके सब जज्बात ।।

मुफलिस को हरदम लगे, लम्बी भूखी रात ।

रोटी हो जो सामने, लगता मधुर प्रभात ।।

जब तक तन में साँस है, चले क्षुधा से जंग ।

बिन रोटी फीके लगें, जीवन के सब रंग ।।

मान-प्रतिष्ठा से बड़ी, उदर क्षुधा की बात ।

रोटी के मोहताज हैं, जीवन के हालात ।।

स्वप्न देखता रात -दिन, रोटी के ही दीन ।

इसी जुगत में दीन यह , हरदम रहता लीन…

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Added by Sushil Sarna on December 25, 2024 at 2:37pm — 2 Comments

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक. . .

बाण न आये लौट कर, लौटें कभी न प्राण ।

काल गर्भ में है छुपा, साँसों का निर्वाण ।।

नफरत पीड़ा दायिनी, बैर भाव का मूल ।

जीना चाहो चैन से, नष्ट करो यह शूल ।।

आभासी संसार में, दौलत बड़ी महान ।

हर कीमत पर बेचता , बन्दा अब  ईमान ।।

अन्तर्घट के तीर पर, सुख - दुख करते वास ।

सूक्ष्म सत्य है देह में, वाह्य जगत  आभास ।।

जीवन मे  होता नहीं, जीव कभी संतुष्ट ।

सब कुछ पा कर भी सदा, रहे ईश से रुष्ट ।।

सुशील सरना /…

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Added by Sushil Sarna on December 23, 2024 at 2:42pm — 2 Comments

एक बूँद

एक बूँद
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सिहर गया तन - बदन
झूम उठा रोम - रोम
नयनों के कोने से मस्ती की झलक
कदमों की शिथिलता
होती हुई गतिमान
मन में उठती लहरें जैसे
बातें कर रहा हो हवा से अश्व
सबकुछ लगता बदला - बदला सा
जब तन से तन्मय हुई
एक बूँद प्रेम की छुअन ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

सुरेश कुमार 'कल्याण'

Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on December 23, 2024 at 11:19am — 1 Comment

कमियाँ बुरी लगती हैं

मुझे बता दो कोई

मेरी कविता की कोई कमियाँ 

मेरी ही नहीं 

चाहने वालों के संग

न चाहने वालों की भी

मात्र कविता ही नहीं 

जिंदगी भी 

सुधारना चाहता हूँ मैं

प्रशंसा सुनना चाहता है मन

कमियाँ बुरी लगती हैं।

मौलिक एवं अप्रकाशित 

सुरेश कुमार 'कल्याण' 

Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on December 23, 2024 at 9:59am — No Comments

दोहा पंचक. . . . .व्यवहार

दोहा पंचक. . . व्यवहार

हमदर्दी तो आजकल, भूल गया इंसान ।

शून्य भाव के खोल में, सिमटा है नादान ।।

मुँह बोली संवेदना, मुँह बोला व्यवहार  ।

मुँह बोले संसार में, मुँह बोला है प्यार ।।

भूले से तकरार में, करो न  ऐसी बात ।

जीवन भर देती रहे, वही बात आघात ।।

अन्तस में कुछ और है, बाहर है कुछ और ।

उलझन में यह जिंदगी, कहाँ सत्य का ठौर ।।

दो मुख का यह आदमी, क्या इसका विश्वास ।

इसके अंतर में सदा, छल करता है वास ।।

सुशील सरना /…

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Added by Sushil Sarna on December 21, 2024 at 3:36pm — No Comments

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