For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,126)

मौन सरोवर ....

मौन सरोवर ....

जुदा न होना

मेरे होकर

कैसे कह दूँ तुम स्वप्न हो

मेरी श्वास का तुम दर्पण हो

बोलो प्रिय

कहाँ गए तुम

मेरी पलक में सपने बो कर

जीवनतल की अकथ कथा तुम

प्रेम पलों की मधुर ऋचा तुम

तुम बिन देखो

सूख न जाएँ

अभिलाषा के मौन सरोवर

अभी यहाँ थे अभी नहीं हो

मेरी क्षुधा की सुधा तुम्हीं हो

जीवन दुर्लभ

तुमको खोकर

तुम अंतस की अमर धरोहर

सुशील सरना

मौलिक एवं…

Continue

Added by Sushil Sarna on May 20, 2020 at 7:49pm — 6 Comments

अब नहीं- लघुकथा

"पापा, अब तो आप नहीं जाओगे ना?, बेटा पिता को पकड़े हुए कह रहा था, साल भर बाद उसने पिता को देखा था.

उसके सामने पिछले सात दिन का खौफनाक मंजर छा गया, कभी पैदल, कभी ट्रक में, कभी किसी टेम्पो में चलते हुए बस वह आ गया था. उसके एक दो साथी तो रास्ते में ही चल बसे थे.

उसने पत्नी की तरफ देखा, जिसकी आँखें मानो कह रही थीं "तुम बस सलामत रहो, दो वक़्त की रोटी तो हम खा ही लेंगे".

उसने अपने भविष्य की चिंता को झटकते हुए कहा "अब मैं कहीं नहीं जाऊँगा बेटा, यहीं रहूँगा, तुम्हारे पास".

बेटा खुश…

Continue

Added by विनय कुमार on May 19, 2020 at 6:28pm — 8 Comments

बेगैरत

वो मेरा करीबी था, मैं मगर फरेबी था

इश्क़ वो वफाओं वाली, चाह बन के रह गयी

जो भी सितम हुए, सब मैंने ही सनम किए

टोकड़ी दुआओं वाली, आह बनके रह गयी

 

था मेरा गरूर उसको, मेरा था शुरूर उसको

साथ जब मैंने छोड़ा, आंखे नम रह गयी

सपनों का था  एक क़िला, मिलने का वो सिलसिला

तोड़ा उसके दिल को मैंने, पल मे सारी ढह गयी

वादे उसकी सच्ची थी, मेरी डोर कच्ची…

Continue

Added by AMAN SINHA on May 19, 2020 at 1:46pm — 4 Comments

सिर्फ़ सन्नाटा है ता-हद्द-ए-नज़र अब मेरी(१०२ )

( 2122 1122 1122 22 /112 )

सिर्फ़ सन्नाटा है ता-हद्द-ए-नज़र अब मेरी

ख़्वाब की दुनिया गई यार बिखर अब मेरी

झूठ निकला मेरा दावा कि तेरे बिन न रहूँ

हिज्र के साथ है क्या ख़ूब गुज़र अब मेरी

नाख़ुदा है ही नहीं जब तो मुझे क्या मालूम

मौज ले जाएगी कब नाव किधर अब मेरी

कैसा माज़ी था मुहब्बत ही मुहब्बत से भरा

देखने की नहीं हिम्मत है उधर अब मेरी

फ़र्क सेहत पे न कुछ उसके है पड़ने वाला

जाती है जाये भले जान अगर अब…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 18, 2020 at 9:30pm — 9 Comments

मजदूर अपने गाँव के सस्ते नहीं गये -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/२२२/१२१२

पथ से खुशी के दुख भरे काँटे नहीं गये

निर्धन के पाँव से  कभी  छाले नहीं गये।१।

**

दसकों गुजर गये हैं ये नारा दिये मगर

होगी  गरीबी  दूर  के  वादे  नहीं  गये।२।

**

जिन्दा नहीं तो मरके वो पाये हैं लाख जो

मजदूर  अपने  गाँव  के  सस्ते  नहीं  गये।३।

**

कहते हैं इसको  आपदा  चाहे जरूर वो

शासन से इसके पर कभी रिश्ते नहीं गये।४।

**

किस्मत गरीब की रही झोपड़ ही घास की

आँगन में जिसके  फूल  के  डाले नहीं…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 18, 2020 at 4:03pm — 7 Comments

बेहतर तो

भीगी दुःखती ऑखे लेकर,

हम सपनों को पाने निकले,

मन के चिटके दप॔ण में,

गीला अक्स सजाने निकले।

जीवन शतरंज की गोटी, सिर्फ

हराए हरेक चाल पर,ऊपर बैठा

गजब खिलाड़ी ,हम भी

क्या दीवाने निकले ।

ऑख तौलती भार स्वप्न का,

होंठ हंसी की परिधि नापते,

सौदागर इस बस्ती में, क्या- क्या तो

कमाने निकले ।

महज उदासी पाई मन ने,

अपनेपन के रिश्तों में,

कुछ कदमों तक साथ चले थे,

बेहतर तो बेगाने निकले।





अन्विता ।

मौलिक एवं…

Continue

Added by Anvita on May 18, 2020 at 12:30pm — 4 Comments

ताना-बाना

उलझे-उलझे से,ताने-बाने को
फिर- फिर
नये रंग में रंगता है,
मेरी किस्मत का रंगरेज,
पल-पल
रंग
बदलता है ।
उजला कभी,कभी स्याह
पीला कभी नीला,जैसे
सुखःदुख;
मन की हांड़ी में,
धींमे-धींमे खदकता है,
छल की रेशमी
चादरों में, लिपटे
सुनहरे,रूपहले सपने उलट-पलट
मिलाता है;पर,
नियति का,बल.....
नहीं
निकलता है ।


अन्विता ।


मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Added by Anvita on May 18, 2020 at 8:13am — 7 Comments

कुछ क्षणिकाएँ :

कुछ क्षणिकाएँ :

सीख लिया शब्दों ने

जीना और मरना

बिना परिधान बदले

देह का

साथ रहकर

व्योम को

सूक्ष्म से अलंकृत करो

कि स्वप्न भी

कल्पना हैं

अचेतन मन की

कह दिया काँपती लौ ने

दिए से

आज मैं सो जाऊंगी

तुम्हारी गोद में

क्रूर पवन के वेग से आहत होकर

शायद मेरा उजाला

अंधेरों को

नहीं भाया

मिट गई

जीत की आकांक्षा

तिमिर में

इक दूजे से

हारते हुए

हम के…

Continue

Added by Sushil Sarna on May 17, 2020 at 9:37pm — 6 Comments

ग़ज़ल

बह्र- फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाा

2122   2122  2122  2

ये हंसी ये मुस्कराहट कातिलाना है

हां तभी तुझपर फिदा सारा ज़माना है

लाॅक डाउन तोड़कर घर से निकलकर आ

देख तो मौसम बड़ा ही आशिकाना है

ये गदाईगीर का हो ही नहीं सकता

ये नगर के शाह का ही शामियाना है

बांटते थे ग़म खुशी आपस में पहले दोस्त

अब कहां माहौल वैसा दोस्ताना है

बेसबब हैं कैद घर में लोग हफ्तों से

कब रिहाई होगी इनकी क्या ठिकाना…

Continue

Added by Ram Awadh VIshwakarma on May 17, 2020 at 8:30pm — 4 Comments

आस में अच्छे दिनों की शह्र आये थे मगर -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२२/२१२२/ २१२२/२१२



शासकों को रोज अपनी दुख बयानी लिख रहे

एक चिकने घट को  जैसे  बूँद पानी लिख रहे।१।

**

अधजली दंगों में थी अब अधमरी है रोगवश

पर खबर में  खूबसूरत  राजधानी  लिख रहे।२।

**

दान दाता  बन  गये  कुछ  एक  मुट्ठी  दे  चना

खींचकर तस्वीर उसकी नित कहानी लिख रहे।३।

**

आस में  अच्छे  दिनों  की  शह्र  आये थे मगर

गाँव के वो आज सब को खूब मानी लिख रहे।४।…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 17, 2020 at 2:00pm — 6 Comments

पश्चाताप

तोड़े थे यकीन मैंने मोहल्ले की हर गली में

सुकून हम कैसे पाते इतनी आहे लेकर

मौत हो जाए मेहरबा हमपे नामुमकिन है

ठोकरे ही हमको मिलेंगी उसके दरवाज़े पर

 

हर परत रंग मेरा यूँ ही उतरता गया 

ज़मी थी शख्त मगर मैं बस धस्ता ही गया

गुनाह जो मैंने किये थे बेखयाली में

याद करके उन सबको मैं बस गिनता ही गया

 

किसी का हाथ छोड़ा किसी का साथ छोड़ दिया

मैंने हर बदनामी को उनकी तरफ मोड़ दिया

सामने जब भी वो आए अपना बनाने के…

Continue

Added by AMAN SINHA on May 17, 2020 at 12:12pm — 2 Comments

खुश हुआ तू बोलकर....(गजल)

2122 2122 2122

खुश हुआ तू बोलकर,' है जानवर तू'

लग रहा खुद को बताता,बेसबर तू।

सांस बनकर बह रहीं ठंडी हवाएं

आग की लपटें उठा मत बन, कहर तू।

ख्वाब पाले  मौन बैठी हैं सदाएं

कानफाड़ू! ला सके तो,ला सहर तू?

तार होती हो नहीं उम्मीद कोई,

हो अगरचे तो बता,कोई पहर तू?

हर्फ हासिल हो गए तो शायरी कर,

क्यूं अंधेरों को बढ़ाता है बशर तू?

मत बिठा मेरी गजल को हाशिए पर

छटपटाती है बहर,देखे अगर तू।

रुक्न रोते, बुदबुदाते शब्द सारे,

नज़्म कहकर…

Continue

Added by Manan Kumar singh on May 17, 2020 at 11:30am — 11 Comments

"अब नहीं "

इस अंधेरे पक्ष में

दद॔ की

टीसती लकीरें

छुपा दी हैं

चाँदनी की

सिमटी तहों में ,अब;

अकेला

निकले भी

चांद तो

नहीं दिखेंगी

झुर्रियाँ, उदासी की,

उसके पीले चेहरे में

बांधकर ड़ाल दी हैं

उदासियों की गठरी,

चुप के अंधे कुएँ में

बचाकर;भावनाओं के

छापामारों से,

कामनाओं के सूखे बीज

दबा दिए हैं,

मन की बंजर धरती में; जानता है मन

अब नहीं हरियाएगा

कोई सावन....इस जीवन में ।



अन्विता

मौलिक एवं… Continue

Added by Anvita on May 16, 2020 at 8:54pm — 6 Comments

हमें न चाहत ही चाँद की है न तारों से है लगाव अपना(१०१ )

( 121  22  121  22  121  22  121  22  )

.

हमें न चाहत ही चाँद की है न तारों से है लगाव अपना

हमें फ़लक की भी  क्या ज़रूरत ज़मीन से है  जुड़ाव अपना

**

जहाँ में अपनी किसी से यारो न दुश्मनी और न दोस्ती है

न कोई दिल में किसी से नफ़रत न है किसी से दुराव अपना | 

**

फ़रोख्त होगी कभी हमारी  ख़याल कोई  न लाये  दिल में

अमोल हैं हम कोई जहाँ में  करेगा क्या मोलभाव अपना

**

कभी किसी से जुदा हुए तब मिला था ज़ख़्मों का एक…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 16, 2020 at 3:00pm — 10 Comments

बेकार की मनोदशा

जाग जाता हूँ सुबह ही आँख अब लगती नहीं

दिन गुजरता है नहीं और रात कटती ही नहीं

ऐसा लगता है मैं कोई व्यर्थ सा सामान हूँ

है कदर न जिसकी कोई खोया वो सम्मान हूँ

 

प्यार बीवी के नजर में वैसी अब दिखती नहीं

है खफा वो खूब लेकिन मुँह से कुछ कहती नहीं

पहले सी चहरे पे उसके अब हसी दिखती नहीं

मेरी ये उदास आँखे झूठ कह सकती नहीं

 

चिढ़चिढ़ा सा हो गया हूँ बस यु हीं लड़ जाता हूँ

छोटी-छोटी बातों पे मैं बच्चों पे चिल्लाता हूँ

मेरे…

Continue

Added by AMAN SINHA on May 16, 2020 at 6:30am — 5 Comments

रामभरोसे को कोई नहीं ढूँढ रहा ( अतुकान्त)

रामभरोसे को कोई नहीं ढूँढ रहा
 
कब वो पिट्ठू बैग लादे 
पगलाया घबराया सा निकल लिया
वापस गाँव को
किसी को नहीं पता 
कोई ढूँढे भी क्यों …
Continue

Added by pratibha pande on May 15, 2020 at 11:00pm — 8 Comments

ग़ज़ल ( हम सुनाते दास्ताँ फिर ज़िन्दगी की....)

( 2122 2122 2122 )

हम सुनाते दास्ताँ फिर ज़िन्दगी की

काश हम भी काटते फसलें ख़ुशी की

अब चुरा लो शम्स की भी धूप सारी

कोई तो बदलो  ये सूरत तीरगी की

जानवर अब हैं ज़ियादा जंगलों में

नस्ल घटती जा रही है आदमी की

हैं अंधेरे घर में अपने क़ैद सारे

कौन खींचेगा लकीरें रौशनी की

जो भी हो सागर मिलेगा तिश्नगी को

बाढ़ ले जाये हमें अब तो नदी की

आंखेंं फट जाएँगी हैरत से…

Continue

Added by सालिक गणवीर on May 15, 2020 at 7:00pm — 10 Comments

भेद :

भेद :

समझा दिया मैंने

अपने बच्चों को

सत्य और असत्य में क्या है भेद

समझा दिया

मैंने अपने बच्चों को

भानु से फैला उजास

कितने रंगों को होता है

समझा दिया मैंने

यह भी अपने बच्चों को

कि रंगीली गिरगिट का

कौन सा रंग असली और कौन सा नकली होता है

मगर

मुझे ये समझाने में

बहुत मुश्किल का सामना करना पड़ा

कि इंसान का कौन सा रंग असली है

और कौन सा नकली

शायद वक्त के साथ

वो इस…

Continue

Added by Sushil Sarna on May 15, 2020 at 6:19pm — 3 Comments

ग़ज़ल

2212 1212 2212 1212



यूँ तो ये माहेरीन हैं मशहूर हैं ज़हीन हैं

फिर रगड़ें क्यों ज़मीन में कुर्सी को ये जबीन हैं





संसार है विचित्र यह नाकाम कामयाब सब

जो माहिर और ज़हीन हैं वह आज दीनहीन हैं





हर बात में है नुक़्ताचीं सर गर्मियों में है ख़लल

अक्सर ज़हीन लोग ही नाक़ाबिल-ए-यक़ीन हैं





बंदिश हज़ार थोप दीं तुम ये करो न वो करो

क्यों लड़कियां समाज में समझी गयीं रहीन हैं





जम्हूरियत तो नाम है चलता है हुक्म शाहों का

सब… Continue

Added by Om Prakash Agrawal on May 15, 2020 at 12:06pm — 6 Comments

जीवन पर कुछ दोहे :

जाने कितनी दूर थी, जाने कितनी पास।

जाने किसकी जोह में, रुकी हुई थी श्वास।।

जाने किसकी जोह में, तरल हो गई आस।

एक श्वास थी ज़िंदगी, एक श्वास संत्रास।।

जीवन के विश्राम तक, मिटी न मन की जोह।

करते करते सो गया, जीव सत्य की टोह।।

बड़ा अजब है जीव का, जीवन के प्रति मोह।

जीत न पाया अंत से, खूब किया विद्रोह।।

मृत्यु देह की है सखा, जीवन गहरी खोह।

फिर भी इस संसार से, मिटे न मन का मोह।।





सुशील सरना…

Continue

Added by Sushil Sarna on May 14, 2020 at 10:30pm — 2 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, अति सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें।"
36 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"गीत ____ सर्वप्रथम सिरजन अनुक्रम में, संसृति ने पृथ्वी पुष्पित की। रचना अनुपम,  धन्य धरा…"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ पांडेय जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"वाह !  आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त विषय पर आपने भावभीनी रचना प्रस्तुत की है.  हार्दिक बधाई…"
8 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ पर गीत जग में माँ से बढ़ कर प्यारा कोई नाम नही। उसकी सेवा जैसा जग में कोई काम नहीं। माँ की…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, आपसे एक अरसे बाद संवाद की दशा बन रही है. इसकी अपार खुशी तो है ही, आपके…"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"बेहद मुश्किल काफ़िये को कितनी खूबसूरती से निभा गए आदरणीय, बधाई स्वीकारें सब की माँ को जो मैंने माँ…"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service