For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२
******
घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी
याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१।
*
झूठ उसका न जग झूठ समझे कहीं
बात यूँ अनकही  भी  निभानी पड़ी।२।
*
दे गये अश्क  सीलन  हमें इस तरह
याद भी अलगनी पर सुखानी पड़ी।३।
*
बाल-बच्चो को आँगन मिले सोचकर
एक  दीवार   घर   की  गिरानी  पड़ी।४।
*
रख दिया बाँधकर उसको गोदाम में
चीज अनमोल  जो  भी पुरानी पड़ी।५।
*
कर लिया सबने ही जब हमें आवरण
साख हमको  सभी  की बचानी पड़ी।६।
*
रोकना था उसे  दो घड़ी और फिर
थी सरल बात वह भी घुमानी पड़ी।७।
*
स्वप्न तक उसने जब बेदखल कर दिये
तब  रियासत  स्वयं  की  बनानी  पड़ी।८।
**
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

Views: 114

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 7, 2025 at 1:45pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए हैं. यह आपकी रचनात्मकता का एक और पहलू है. मैं एक-एक कर आपके अश’आर पर अपनी बात रखने का प्रयास करता हूँ. 

घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी                  यहाँ ’बानगी’ का प्रयोग संतुलित प्रतीत नहीं हो रहा है. आप सानी के परिप्रेक्ष्य में इस शब्द का कोई पर्याय देखें 
 
झूठ उस का न जग झूठ सम झे कहीं   ....... 
बात यूँ अनकही  भी  निभानी पड़ी।२।  ...........झूठ मेरा जहाँ झूठ समझे नहीं / बात यों शातिरों सी निभानी पड़ी .. इस भाव को कुछ ऐसा घुमाव दिया जाना उचित होगा क्या ? बताइएगा..

 
दे गये अश्क सीलन हमें इस तरह
याद भी अलगनी पर सुखानी पड़ी।३। .....  क्या ही कस्बाई मंजर शाब्दिक हुआ है ! वाह वाह !   

 
बाल-बच्चो को आँगन मिले सोचकर
एक  दीवार   घर   की  गिरानी  पड़ी।४।  ...  आम तौर पर ऐसा होता तो नहीं, लेकिन जैसे भी यह भला लगता है.  
 
रख दिया बाँधकर उसको गोदाम में
चीज अनमोल  जो  भी पुरानी पड़ी।५।  ....   भाव अच्छे हैं, इस कहन पर और समय दिया जाना उचित होगा. दूसरे, ’गोदाम में’ कहने से सैद्धांतिकतः तनाफुर का दोष भी जाहिर कर रहा है. वैसे, यह अरूज का दोष न हो कर उच्चारण सम्बन्धी दोष है.  . 
 
कर लिया सबने ही जब हमें आवरण
साख हमको  सभी  की बचानी पड़ी।६।  ....  यह शेर कुछ स्पष्ट नहीं हो रहा. भाव समझ में आ रहे हैं. लेकिन इस कहन को और स्पष्ट होना चाहिए. 
 
रोकना था उसे दो घड़ी और फिर   ............  
थी सरल बात वह भी घुमानी पड़ी।७।  .......  रोकना था उसे दो घड़ी और भी / सो नई-सी कहानी बनानी पड़ी .. . मैंने इस कहन को कुछ यों घुमाव दिया... देखिएगा.  
 
स्वप्न तक उसने जब बेदखल कर दिये
तब  रियासत  स्वयं  की  बनानी  पड़ी।८।  ....... यह शेर कुछ और समय चाहता है. 

मैंने अपनी थोड़ी-बहुत समझ से आपकी प्रस्तुति पर अपनी बातें रखी हैं. अन्य पाठक भी अपने विचार रखें तो कुल सोच का दायरा और बड़ा हो सकेगा. सर्वोपरि, आपके बिम्ब देसी हैं, इन्हें उचित तर्क के साथ कथ्य मिलें तो इनकी स्वीकार्यता अधिक हो सकती है. ऐसे में आपकी प्रस्तुतियाँ और निखर उठेंगीं 

हार्दिक बधाइयाँ, आदरणीय

शुभ-शुभ 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 7, 2025 at 7:11pm

आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए हार्दिक आभार।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 7, 2025 at 6:36pm

आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाई स्वीकार करें 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 3, 2025 at 9:17pm

आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार।

आपका स्नेहाशीष बना रहे यही आकांक्षा है। सादर...

Comment by Chetan Prakash on September 2, 2025 at 6:32pm

छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  !

" दे गए अश्क सीलन हमे इस तरह

याद  भी अलगनी पर सुखानी पड़ी"

 बहुत खूबसूरत शे'र हुआ  !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-129 (विषय मुक्त)
"स्वागतम"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"बहुत आभार आदरणीय ऋचा जी। "
Monday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"नमस्कार भाई लक्ष्मण जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है।  आग मन में बहुत लिए हों सभी दीप इससे  कोई जला…"
Monday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"हो गयी है  सुलह सभी से मगरद्वेष मन का अभी मिटा तो नहीं।।अच्छे शेर और अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई आ.…"
Monday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"रात मुझ पर नशा सा तारी था .....कहने से गेयता और शेरियत बढ़ जाएगी.शेष आपके और अजय जी के संवाद से…"
Monday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. ऋचा जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. तिलक राज सर "
Monday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. जयहिंद जी.हमारे यहाँ पुनर्जन्म का कांसेप्ट भी है अत: मौत मंजिल हो नहीं सकती..बूंद और…"
Monday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"इक नशा रात मुझपे तारी था  राज़ ए दिल भी कहीं खुला तो नहीं 2 बारहा मुड़ के हमने ये…"
Sunday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय अजय जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल हुई आपकी ख़ूब शेर कहे आपने बधाई स्वीकार कीजिए सादर"
Sunday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय चेतन जी नमस्कार ग़ज़ल का अच्छा प्रयास किया आपने बधाई स्वीकार कीजिए  सादर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service