पनघट पोखर बावड़ी, बरगद पीपल पेड़
उनकी बातें कर न अब, बूढ़े मन को छेड़।१।
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जिस पनघट व्याकुल कभी, बैठे थे हर शाम
पुस्तक में ही शेष अब, लगता उस का नाम।२।
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पनघट सारे खा गया, सुविधाओं का खेल
फिर भी सुख से हो सका, नहीं हमारा मेल।३।
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पीपल देखे गाँव का, बीते कितने साल
कैसा होगा क्या पता, अब पनघट का हाल।४।
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पथिक ढूँढ नव राह तू, अगर बुझानी प्यास
पनघट ही जब ना रहे, क्या गोरी की आस।५।
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सब मिल पनघट थीं कभी, बतियाती चित खोल
घर- घर नल…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 16, 2020 at 9:59am — 13 Comments
मापनी १२२२ १२२२ १२२२ १२२२
कभी रुकना नहीं आया कभी चलना नहीं आया.
हमें हर एक साँचें में कभी ढलना नहीं आया.
बहारों में ये सहरा भी गुलिस्ताँ बन गया होता,
किसी दरिया समंदर को उसे छलना नहीं आया.
जो बाहर ख़ूब फूले हैं…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on July 15, 2020 at 9:00am — 9 Comments
सुनते आए थे कि घूरे के …
ContinueAdded by amita tiwari on July 15, 2020 at 3:30am — 1 Comment
बेगम हज़रत महल भारतवर्ष की आज़ादी में कई सारे क्रांतिकारी वीर-वीरांगनाओं ने अपना पूरा योगदान दिया | यहाँ तक कि भारत माँ के सम्मान, स्वाभिमान और इसकी आजादी को बचाने के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया| बेगम हज़रत महल का व्यक्तित्व उस समय भारतीय समाज की सामंत मान्यताओ में बंधी नारी शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है | ऐसे में रानी लक्ष्मीबाई का चरित्र हमारे समाज की सशक्त महिला व देवी तुल्य भाव को प्रदर्शित करता है| सोचने की बात यह है कि अलग-अलग परिस्थितियों से आई दोनों नारियाँ कैसे समाज में एक आदरणीय…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on July 14, 2020 at 4:02pm — 3 Comments
मंत्री का कुत्ता - लघुकथा -
मेवाराम अपने बेटे की शादी का कार्ड देने मंत्री शोभाराम जी की कोठी पहुंचा। दोनों ही जाति भाई थे तथा रिश्तेदार भी थे। मेवाराम यह देख कर चौंक गया कि मंत्री जी के बरामदे में शुक्ला जी का पालतू कुत्ता बंधा हुआ था।अचंभे की बात यह थी कि शुक्ला और मंत्री जी एक ही पार्टी में होते हुए भी दोनों एक दूसरे के कट्टर विरोधी थे।
मेवाराम को यह बात हज़म नहीं हुई। उसके पेट में गुड़्गुड़ होने लगी।इस राज को जानने को वह उतावला सा हो गया।
आखिरकार चलते चलते उसने मंत्री…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on July 14, 2020 at 11:02am — 4 Comments
हम जरूरत के लिए विश्वास जैसे हैं
नाम पर सेवा के लेकिन दास जैसे हैं।१।
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सेज पर बिछने को होते फूल जैसे पर
वैसे पथ के पास उगते घास जैसे हैं।२।
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है हमारा मान केवल जेठ जैसा बस
कब तुम्हारे वास्ते मधुमास जैसे हैं।३।
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दूध लस्सी धी दही कब रहे तुमको
कोक पेप्सी से बुझे उस प्यास जैसे हैं।४।
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रोज हमको हो निचोड़ा आपने लेकिन
स्वेद भीगे हर किसी …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 14, 2020 at 10:01am — 10 Comments
मापनी १२२२ १२२२ १२२२ १२२२
बहुत आसान है धन के नशे में चूर हो जाना,
बड़ा मुश्किल है दिल का प्यार से भरपूर हो जाना.
अगर वो चाहता कुछ और होना तो न था मुश्किल,
मगर मजनूँ को भाया इश्क में मशहूर हो जाना.
भले दो गज जमीं थी गॉंव में अपने मगर खुश…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on July 13, 2020 at 5:59pm — 6 Comments
2122 2122 2122 212
ज़िन्दगी गर मुझको तेरी आरज़ू होती नहीं
अपनी सांसों से मेरी फिर गुफ़्तगू होती नहीं
गर तड़प होती न मेरे दिल में तुझको पाने की
मेरी आँखों में, मेरे ख्वाबों में तू होती नहीं
उम्र गुज़री है यहाँ तक के सफ़र में, दोस्तो!
पर ये वो मंज़िल है, जिसकी जुस्तजू होती नहीं
ये जहाँ गिनता है बस कुर्बानियों की दास्ताँ
जाँ लुटाये बिन मुहब्बत सुर्ख-रू होती नहीं
दोस्तों के दिल मुनव्वर जो नहीं होते 'शकूर'
रौशनी भी…
Added by शिज्जु "शकूर" on July 13, 2020 at 1:09pm — 9 Comments
भारतवर्ष के इतिहास में पृथ्वीराज चौहान को अपने समय का सबसे बड़ा योद्धा माना जाता है| जिसकी वीरता के किस्से उस समय पूरे भारत में गूंज रहे थे| पृथ्वीराज चौहान अजमेर राज्य का स्वामी बना तो उसके चाचा पृथ्वीराज को चौहान राज्य का वास्तविक अधिकारी नहीं मानते थे। इसी कारण पृथ्वीराज के चाचा अपरगांग्य ने पृथ्वीराज के विरुद्ध विद्रोह कर दिया तो पृथ्वीराज ने अपने चाचा को परास्त कर उसकी हत्या कर दी। इस पर पृथ्वीराज के दूसरे चाचा व अपरगांग्य के छोटे भाई नागार्जुन ने…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on July 13, 2020 at 12:09pm — 4 Comments
बह्रे मुजतस मुसम्मन मख्बून महज़ूफ मक़्तूअ'
1212 / 1122 / 1212 / 22
क़रार-ए-मेहर-ओ-वफ़ा भी नहीं रहा अब तो
महब्बतों में मज़ा भी नहीं रहा अब तो [1]
जहाँ से मुझको गिला भी नहीं रहा अब तो
मलाल इसके सिवा भी नहीं रहा अब तो [2]
ख़बर जहान की तुम पूछते हो क्या यारो
मुझे कुछ अपना पता भी नहीं रहा अब तो [3]
जिसे सँभाल के रक्खा था इक निशानी सा
मेरा वो ज़ख़्म हरा भी नहीं रहा अब तो [4]
है बेवफ़ाई में उसकी ग़ज़ब की…
ContinueAdded by रवि भसीन 'शाहिद' on July 13, 2020 at 12:00am — 8 Comments
काश कहीं से मिल जाती इक जादू की हाथ घड़ी
मैं दस साल घटा लेता तू होती दस साल बड़ी
माथे से होंठों तक का सफर न मैं तय कर पाया
रस्ता ऊबड़-खाबड़ था ऊपर से थी नाक बड़ी
प्यार मुहब्बत की बातें सारी भूल चुका था मैं
किस मनहूस घड़ी में…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 12, 2020 at 11:29pm — 1 Comment
रोज़ सितम वो ढाते देखो हम बेबस बेचारों पर
कोई अंकुश नहीं लगाता इन सरमाया दारों पर।
मजदूरों का जीवन देखो कितना मुश्किल होता है
बिस्तर पास नहीं जब होता सो जाते अख़बारों पर।
भूक ग़रीबी ज्यों की त्यों क्यों तख़्त नशीं कुछ तो बोलो
दोष मढ़ोगे कब तक आख़िर पिछली ही सरकारों पर।
वक़्त नहीं है पास किसी के सबको अपनी आज पड़ी
दौर पुराना ख़्वाब लगे जब भीड़ जुटे चौबारों पर।
बच्चे झुककर बात करेंगे घर के सारे लोगों से
आईने जब लग जाएँगे घर…
Added by नाथ सोनांचली on July 12, 2020 at 12:59pm — 10 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on July 12, 2020 at 8:30am — 2 Comments
रोटी का जुगाड़
कोरोना काल में
आषाढ़ मास में
कदचित बहुत कठिन रहा
आसान जेठ में भी नहीं था.
पर, प्रयास में नए- नए मुल्ला
अजान उत्साह से पढ रहे थे...
दारु मृत संजीवनी सुरा बन गयी थी
सरकार के लिए भी,
कोरोना पैशैन्ट्स के लिए भी
और, पीने वालों का जोश तो देखने लायक था,
सबकी चाँदी थी...!
आषाढ़ तो बर्बादी रही..
इधर मानसून की बारिश
उधर मज़दूरो की भुखमरी
और, बेरोज़गारी.....
सच, मानो कलेजा मुुँह
को आ गय़ा...!…
Added by Chetan Prakash on July 11, 2020 at 1:00pm — No Comments
था सब आँखों में मर्यादा का पानी याद है हमको
पुराने गाँव की अब भी कहानी याद है हमको।
भले खपरैल छप्पर बाँस का घर था हमारा पर
वहीं पर थी सुखों की राजधानी याद है हमको
वो भूके रहके ख़ुद महमान को खाना खिलाते थे
ग़रीबों के घरों की मेज़बानी याद है हमको
हमारे गाँव की बैठक में क़िस्सा गो सुनाता था
वही हामिद के चिमटे की कहानी याद है हमको
सलोना और मनभावन शरारत से भरा बचपन
अभी तक मस्त अल्हड़ ज़िंदगानी याद है…
Added by नाथ सोनांचली on July 11, 2020 at 12:00pm — 14 Comments
(221 2121 1221 212)
उकता गया हूँ इनसे मेरे यार कम करो
ख़ालिस की है तलब ये अदाकार कम करो
आगे जो सबसे है वो ये आदेश दे रहा
आराम से चलो सभी रफ़्तार कम करो
वो हमसे कह रहे हैं कि मसनद बड़ी बने
हम उनसे कह रहे हैं कि आकार कम करो
जो मेरे दुश्मनों को गले से लगा रहा
मुझसे कहा कि दोस्तोंं से प्यार कम करो
अपने घरों में क़ैद हैं , हर रोज़ छुट्टियाँ
किससे कहें कि अब तो ये इतवार कम करो
बाज़ार में तो…
ContinueAdded by सालिक गणवीर on July 11, 2020 at 7:30am — 8 Comments
जीवित रहने के लिए जीव,
रहता है जिस पर निर्भर।
आटे से बनती है जो और
गोल गोल जिसकी सूरत।।
सही पहचाने नाम है उसका,
कहते हैं सब रोटी।
मम्मी के हाथों की रोटी,
बड़े स्वाद की होती।।
भूखे को मिल जाए जो रोटी,
तो त्रप्ति उसको होती।
आत्मनिर्भर बनने के लिए,
कमानी पड़ती है रोजी रोटी।।
भूल ना जाना तुम ये बात,
जब भी पकाओ तुम रोटी।
सबसे पहले गाय की रोटी,
और अंत में कुत्ते की रोटी।।
मानव की मूल…
ContinueAdded by Neeta Tayal on July 11, 2020 at 6:36am — 2 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२१/२
लिखना न मेरा नाम तेरे ख्वाहिशों के शह्र में
आयेगा कुछ न काम तेरे ख्वाहिशों के शह्र में।१।
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सबको पता है धूल से बढ़कर न मैं रहा कभी
ऊँचा भले ही दाम तेरे ख्वाहिशों के शह्र में।२।
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सूरज न उगता भोर का तारों भरी न रात हूँ
ढलती हुई सी शाम तेरे ख्वाहिशों के शह्र में।३।
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रावण बना दिया है मुझे प्यास ने हवस की यूँ
करना न मुझको राम तेरे ख्वाहिशों के शह्र में।४।
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चाहत न कोई नाम की रिश्ता अगर बना कोई
चलना मुझे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 10, 2020 at 6:45am — 13 Comments
नेह बदरिया नीर नदी बन
आंखों आंखों स्वप्न सधे हैं
काजल की काली रेखाएं
सरिता पर ज्यूँ बांध बांधें हैं।
नख बन भाव कुरेदें बातें
यादें मोहक धूमिल छवि की
टूट रहे पतवार हृदय के
तूफानी लय है सांसों की
पर्वत से तटबंध दिलों पर
सकुचाते उदगार बंधें हैं।
काजल की काली रेखाएं
सरिता पर ज्यूँ बांध बांधें हैं।
मुनरी कंगन छागल बिछुए
सबकी सबसे रार हुई है
गजरे की अनबन बालों से
अबकी पहली बार हुई है
आतुर है श्रृंगार…
ContinueAdded by Neelam Dixit on July 9, 2020 at 11:26pm — 2 Comments
मापनी २१२२ २१२२ २१२२ २१२
इस जिग़र में प्यास बाकी है बुझाने की कहो,
झूमती काली घटा से छत पे आने की कहो.
है मधुर आवाज़ उसकी और चेहरा खूबसूरत,
गीत सावन के सुहाने आज गाने की कहो.
देखना गर चाहते हो इस जहाँ को ख़ुशनुमा, …
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on July 9, 2020 at 8:44pm — 8 Comments
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