सच्चे मन से ईश्वर
मंदिर से अधिक
अस्पतालों में
याद किया जाता है l
जो दृश्य सिनेमा हाल में
मन को दुखी , द्रवित कर
अँधेरे में,आँखे नाम कर जाता है
वही दृश्य हमें दिन की
रौशनी में आस पास
दिखाई नहीं दे पाता है ,
आँखें नम कहाँ से हों
बाहर की दौड़ भाग में
पसीना तक सूख जाता है। .....1.
आज हर आदमी ज्ञानी है ,
हर ज्ञानी ज्ञान बाँट रहा है ,
मतलब , हर कोई
अपना अपना पक्ष
प्रस्तुत कर रहा है ,
पक्ष भी क्या , अपना
अपना स्वार्थ बाँट रहा है।.....2.
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी ,लघु-कविताओं को स्वीकार करने के लिए आभार एवं धन्यवाद , सादर।
आ. भाई विजय शंकर जी, सादर अभिवादन । अच्छी कवितायें हुई हैं।हार्दिक बधाई ।
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