2122 2122 212
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1
अपनी हर लग़्ज़िश छिपा ली जाएगी
हाँ क़सम झूठी भी खा ली जाएगी
2
जिंदगी की शान-ओ-शौकत के लिए
बात कुछ भी अब बना ली…
ContinueAdded by Rachna Bhatia on December 11, 2020 at 11:30am — 10 Comments
विधान – 27 मात्रा, 16,11 पर यति, चरणान्त में 21 लगा अनिवार्य l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत l
ह्रदय बसाये देवी सीता
वन वन भटकें राम
लोचन लोचन अश्रु बावरे
बहते हैं अविराम
सुन चन्दा तू नीलगगन से
देख रहा संसार
किस नगरी में किस कानन में
खोया जीवन सार
हे नदिया हे गगन,समीरा
ओ दिनकर ओ धूप
तृण तृण से यूँ हाथ जोड़कर
पूछ रहे…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 10, 2020 at 7:00pm — 8 Comments
नंगे पाँव
ठंड मे ठिठुरते
फुला फुला के गुब्बारे बेचते
किसी शहरी बचपन को देखो
तो मोल भाव मत करना
शुक्र मनाना
कि तुम्हारे पास गाँव है
गरीब सही पर सुरक्षित पाँव हैं
ठंड मे ठिठुरते
नंगे पाँव गुब्बारे बेचते
किसी शहरी बचपन को देखो
तो मोल भाव मत करना
इसी उम्र के अपने नौनिहालों को याद करना
उनके लिए शुक्र मनाना
कि तुम्हारे पास बल है बलबूते हैं
उनके पास पाँव हैं
पाँव…
ContinueAdded by amita tiwari on December 10, 2020 at 2:30am — 5 Comments
मेरे छोटे से बेटे तक ने थाली सरका दी । कहा नहीं खाऊँगा । इस खाने को उगाने वाले अन्नदाता यदि भूखे हैं ,बेघर हैं उनकी आवाज़ गले मे घुट रही है तो नैतिकता की मांग है कि मुझे ये खाना खाने का हक़ नहीं है । नहीं जानता हूँ कि कौन कितना गलत है या सही है लेकिन इतना ज़रूर जानता हूँ कि ऐसे मौसम मे घर छोडने का ,सड़कों पर बैठने का और सर पर कफन बांधने का शौक किसी को नहीं हो सकता । जब भविष्य अंधकारमय लगता है तभी वर्तमान ऐसे कदम उठाता है तब जीवन और मौत मे कोई अंतर नहीं रह जाता है । एक आम…
ContinueAdded by amita tiwari on December 9, 2020 at 1:43am — 8 Comments
2122 1122 1122 22
सामने आ तू कभी ख़्वाब में आने वाले
क्या मिला तुझको मेरी नींद उड़ाने वाले (1)
ऐसा लगता है कि आने का इरादा ही नहीं
वर्ना महशर में भी आ जाते हैं आने वाले (2)
चंद लम्हे भी अगर बंद हुई हैं पलकें
आ ही जाते हैं नये ख़्वाब दिखाने वाले (3)
क्या ग़जब है कि नये लोग चले आए हैं
घर में पहले से ही थे आग लगाने वाले (4)
मैं इस उम्मीद में बस आज तलक ज़िंदा हूँ
लौट आएँगे कभी छोड़ के जाने वाले…
Added by सालिक गणवीर on December 8, 2020 at 9:20am — 10 Comments
221 2121 1221 212
हर बात अपने दिल की बताई नहीं जाती
करके कोई दुआ भी यूँ गाई नहीं जाती।1
दिल आपकेे है बस में ये अब जानते हैं हम
जादूगरी ऐसी भी दिखाई नहीं जाती।2
हैं दर्द-ओ-ग़म भरे हुए इतने कि क्या कहें
ये दास्तान दिल की सुनाई नहीं जाती।3
ये बदगुमानी आपकी आई है बीच में
बिगड़ी है इतनी बात बनाई नहीं जाती।4
फिर साथ होगी होली दीवाली की धूम भी
हमसे अकेले ईद मनाई नहीं जाती।5
दिल आपका दुखा तो…
ContinueAdded by Richa Yadav on December 7, 2020 at 1:29pm — 4 Comments
किसी समय मानवी सनक से
यह धरणी शापित ना हो
करे ध्वंस क्षण में अवनी का
वह कुशस्त्र चालित ना हो
ज्ञान,शक्ति,आनन्द त्रिवेणी
की धारा बाधित ना हो
जाति-धर्म की सीमाओं में
बंध कोई त्रासित ना हो
रहे सदा वसुधा का आँचल
हरा - भरा तापित ना हो
फैले नव प्रकाश जीवन में
योग क्षेम नाशित ना हो
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on December 6, 2020 at 9:43am — 2 Comments
221 1221 1221 122
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आग़ाज मुहब्बत का वो हलचल भी नहीं है
आँखों में इजाज़त है हलाहल भी नहीं है।
क्या हिन्दू मुसलमाँ बना फिरता है ज़माने
इन्सान बनेगा कोई अटकल भी नहीं है ।
आसान नहीं होता जहाँ रोटी जुटाना,
तू मौज मनाता दुखी बेकल भी नहीं है |
क़मज़र्फ बने मत कि कमाना नहीँ पड़ता
मुँहजोर है औलाद उसे कल भी नहीं है |
है एक मुसीबत वो निभाने हैं मरासिम,
अब वक्त बचा क़म है, वो दल-बल भी नहीं…
Added by Chetan Prakash on December 5, 2020 at 7:30am — 2 Comments
फसल की बालियां,डालियां और पत्तियां आपस में बातें कर रही थीं।
' हम फल हैं।जीवन का पर्याय हैं।' बालियां इतरा कर कह रही थीं।
' हम भोजन न बनाएं,तो सारी हेकड़ी धरी की धरी रह जायेगी।' पत्तियों ने आंखें तरे ड़ कर कहा।
' वाह वाह! क्या कहने! गर हम तुम्हें न संभालें तो फिर क्या हो?' डालियां जरा मौज में झूमकर बोलीं।
' ठहरो,ठहरो।हमें असमय सूखने पर मजबूर न करो।हम अभी नाजुक दौर में हैं।' बालियों और पत्तियों की सम्मिलित आर्त ध्वनियां गूंजने लगीं।
जड़ और तने एक दूसरे को…
Added by Manan Kumar singh on December 4, 2020 at 11:00pm — 2 Comments
उस असीम , विराट में
इस सृष्टि का संगीत
ताल,लय,सुर से सुसज्जित
नित्य नव इक गीत
नृत्य करती रश्मियाँ
उतरें गगन से भोर
मृदु स्वरों की लहरियों पर
थिरकतीं चँहु ओर
गगन पर जब विचरता
आदित्य , ज्योतिर्पुंज
विसहँते सब वृक्ष,पर्वत,
नदी ,पाखी , कुन्ज
.
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on December 4, 2020 at 7:30pm — 3 Comments
ओजस्वी तेजस्वी
से दिखाई देते हो ,
अपनी जयकार से
आत्म मुग्ध लगते हो।
आईने में खुद को
रोज ही देखते हो ,
क्या खुद को
कुछ पहचानते भी हो।
बड़े आदमी हो , बहुत बड़े ,
लोग तुम्हें जानते हैं ,
बच्चे सामान्य ज्ञान के लिए
तुम्हारा नाम रटते और जानते हैं ,
रोज कितने ही लोग तुम्हारी ड्योढ़ी
पर खड़े रहते हैं , टकटकी लगाए ,
कितने आदमी तुमसे रोज ही
मिलने के लिए आते रहते हैं ,
तुम भी कभी किसी से
आदमी की तरह मिलते हो…
Added by Dr. Vijai Shanker on December 4, 2020 at 11:28am — 8 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
कौन कहता है कि उनसे और वादा कीजिए
है निवेदन जो किया था वो ही पूरा कीजिए।१।
*
सब्र दशकों से किये है आमजन इस देश का
अब गरीबी भूख का कुछ तो सफाया कीजिए।२।
*
बस चुनावों में विरोधी बाद उस के सब सखा
मूर्ख जनता को समझ ऐसे न साधा कीजिए।३।
*
जल रहा कश्मीर तुमको फिक्र अपने कुनबे की
सिर्फ कुर्सी के लिए …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 4, 2020 at 7:30am — 10 Comments
2 2 1 1 2 2 1 1 2 2 1 1 2 2
आग़ाज़ मुहब्बत का वो हलचल भी नहीं है
आँखों में इज़ाज़त है तो हलचल भी नही हैं
क्या हिन्दू मुसलमाँ बना फिरता है, ज़माने
ऐसी तो खुदाया यहाँ हलचल भी नहीं है
आसान नहीं होता जहाँ रोटी का कमाना
इस ओर तो तेरी कहीं हलचल भी नहीं है
क़मज़र्फ बने मत कि कमाना नहीं आता
औलाद ने उस ओर की हलचल भी नहीं है
है एक मुसीबत वो निभाने हैं, मरासिम
सुन वक़्त बचा क़म है वो हलचल भी…
Added by Chetan Prakash on December 3, 2020 at 7:00pm — 5 Comments
कब रुका जो आज रुकेगा, वक़्त है ये तो चलता रहेगा
वक्त पर हकूमत कर सके ऐसा, नहीं जन्मा जो अब जन्मेगा ||
संग में इसके हँसना-रोना, सबको संग में इसके चलना पड़ेगा
अटल होकर चल रहा जो, उसे, वक़्त के आगे झुकना पड़ेगा ||
बेदर्दी ये वक़्त बड़ा है, घाव-क्लेश तो देता रहेगा
खुशियों के पल छोटे करके, दशा पर तेरी हँसता रहेगा ||
आस बांधता, विश्वास दिलाता, विश्वासघात भी करता रहेगा
गिरगिट जैसा रूप बदल कर, अनुभव खट्टे-मीठे देता रहेगा…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on December 3, 2020 at 2:30pm — 2 Comments
गोल -गोल होती है रोटी
गाँव-गाँव से शहर आता
आकर अपना खून बेचता
वो गँवार आदमी देखो तुम
रोटी खातिर महल बनाता |
गोल- गोल होती है रोटी...!
सच्चा कर्म-योगी वही है
प्याज-हरी धर खाता रोटी,
धरती माँ का पुत्र वही है
मोटी- मोटी उसकी रोटी |
गोल-गोल होती है रोटी..!
दुनिया बनी ये काज रोटी
बाल-ग्वाल कमा रहे रोटी
सारा शहर रचा हे, रोटी,
गाँव- गाँव बना है रोटी |
गोल-गोल होती है…
ContinueAdded by Chetan Prakash on December 3, 2020 at 7:26am — 3 Comments
बड़ी तेज़ रफ़्तार है ज़िन्दगी की,मुट्ठी से फिसलती चली जा रही है
उम्र की इस दहलीज़ पर जैसे,ठिठक सी गयी है,सिमट सी गयी है
बीते हुए पुराने मौसम याद आ रहे हैं,हासिल क्या किया तूने समझा रहे हैं
ऐ ज़िन्दगी तू ज़रा तो ठहर जा,जीने की कोई राह बता जा
बचे जो पल हैं चंद ज़िन्दगी के,कैसे संवारूँ ज़रा तू बता जा
जिन्दगी ने कहा कुछ यूँ मुस्कुरा कर,प्यार ख़ुद से तू कर ले दुनिया भुला कर
परमात्मा से लौ तू लगा ले,जीवन का सच्चा आनन्द पा ले
स्वर्णिम ये पल मत…
ContinueAdded by Veena Gupta on December 2, 2020 at 2:37am — 2 Comments
नहीं माँगता जीवन अपना, पर बेवजह मुझको काटो ना
जो ना आये जहां में अब तक, उनके लिए भी वृक्ष छोड़ो ना ||
नहीं रहेगा जहर हवा में, पेड़ पौधो को लगा दो ना
वायु प्रदूषण नाम ना होगा, बारे आक्सीजन के भी सोचो ना ||
पृकृति का संतुलन बना रहे यूं, करना खिलवाड़ उससे छोड़ो ना
मन, स्वास्थ्य बिगड़ जाएगा, जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ो ना ||
वायु प्रदूषण एक…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on November 30, 2020 at 11:06pm — 2 Comments
एक प्रश्न
अन्नदाता क्यूँ रोड़ पड़ा
निजीकरण का दौर बढ़ा
कोरोना की स्थिति विकट है
हर नागरिक क्यूँ मजबूर बड़ा||
नयें नियमों की अदला-बदली
भारत परिवर्तन की ओर बढ़ा
भविष्य का तो पता नहीं
पर आज बेरोजगारी का मुद्दा बड़ा ||
छोटे से लेकर बड़े व्यापारी तक
हर जन में क्यों आक्रोश बढ़ा
युवा रोजगार को तरस रहे
आज, आंदोलनों का क्यूँ शोर बड़ा ||
चकनाचूर है आर्थिक…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on November 29, 2020 at 7:06pm — 2 Comments
द्वापर युग में कृष्ण ने
पान्डव का दे साथ
हो विरुद्ध कुरुवंश के
रचा एक इतिहास
कलियुग की अब क्या कहें?
जिन्हे मिला अधिकार
धन-बल के अभिमान में
प्रति पल चढ़े ख़ुमार
हक़ जिसका हो,मार लें
जाति धर्म के नाम
आपस में झगड़ा करा
आप बनें सुल्तान
वंशवाद का घुन लगा
आज हमारे देश
करे खोखला राष्ट्र को
धर नेता का वेष
राष्ट्र एकता की उन्हे
तनिक नहीं…
ContinueAdded by Usha Awasthi on November 29, 2020 at 9:02am — 2 Comments
कल मानव और विभा की शादी के दस वर्ष पूरे हो रहे थे। सो इस बार की मैरिज एनीवर्सरी विशेष थी। दाम्पत्य जीवन में कोई अभाव प्रकटतः तो विभा को नहीं था। दो बच्चे, बेटी मानसी और बेटा विशेष प्राइवेट स्कूल में पढ़ रहे थे। विभा एम, ए. बी. एड. थी, मिजाज़ से हाउस वाइफ थी। सारा दिन चौका बर्तन, सफाई, बच्चों की सुख-सविधा में कोई कमी न रहे इसमें निकल जाता था । हाँ मानव से ज़रूर उसे शिकायत थी। मानव एक कस्बे के महाविद्यालय में अंग्रेजी के प्रवक्ता थे। उनका ज्यादातर समय अध्ययन और अध्यापन में ही निकल जाता और बचता…
ContinueAdded by Chetan Prakash on November 29, 2020 at 6:00am — 3 Comments
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