221 2121 1221 212
हर बात अपने दिल की बताई नहीं जाती
करके कोई दुआ भी यूँ गाई नहीं जाती।1
दिल आपकेे है बस में ये अब जानते हैं हम
जादूगरी ऐसी भी दिखाई नहीं जाती।2
हैं दर्द-ओ-ग़म भरे हुए इतने कि क्या कहें
ये दास्तान दिल की सुनाई नहीं जाती।3
ये बदगुमानी आपकी आई है बीच में
बिगड़ी है इतनी बात बनाई नहीं जाती।4
फिर साथ होगी होली दीवाली की धूम भी
हमसे अकेले ईद मनाई नहीं जाती।5
दिल आपका दुखा तो मुआफ़ी हैं मांगते
हमसे कोई भी बात बढ़ाई नहीं जाती।6
करके अहद वफ़ा का मुकरते हैं सब "रिया"
कोई भी रश्म तन्हा निभाई नहीं जाती।7
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
मुहतरमा ऋचा यादव जी आपकी आवाज़ पर फिर से हाज़िर हुआ हूँ ,
हर बात हम से दिल की बताई नहीं गई सानी मिसरा यूँ कर सकते हैं :
करके कोई दुआ भी तो गाई नहीं गई [1] चहरे पे जो अयाँ थी छुपाई नहीं गई
ये बदगुमानी आपकी आई है बीच में. ऊला मिसरा यूँ कर सकते हैं :
बिगड़ी है इतनी बात बनाई नहीं गई।4 ये बदगुमानी क्यों है हमें कुछ ख़बर नहीं
फिर साथ होगी होली दीवाली की धूम भी यहाँ 'होगी' को 'होंगी' कर लें
दिल आपका दुखा तो मुआफ़ी हैं मांगते ऊला मिसरा यूँ कर सकते हैं :
हमसे कोई भी बात बढ़ाई नहीं गई।6. उनका जो दिल दुखा तो मुआफ़ी भी मांग ली
करके अहद वफ़ा का मुकरते हैं सब "रिया" इस शे'र को यूँ कह सकते हैं :
कोई भी रस्म तन्हा निभाई नहीं गई।7 कर के वफ़ा का अह्द मुकरते हैं अब 'रिया'
उनसे वफ़ा की रस्म निबाही नहीं गई सादर।
कोई भी रस्म तन्हा निभाई नहीं गई।7
मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।
पहली बात ये कि ग़ज़ल में कोई भी बदलाव कुछ टिप्पणियाँ आने के बाद किया करें ।
दूसरी बात आपकी ग़ज़ल के अरकान बिल्कुल दुरुस्त हैं ।
अब चूँकि आपने बदलाव कर लिया है,इसलिये मैं आपकी तरमीम शुदा ग़ज़ल पर बात करूँगा ।
'हर बात हम से दिल की बताई नहीं गई
करके कोई दुआ भी तो गाई नहीं गई'
इस मतले का सानी बदलने का प्रयास करें 'दुआ गाई नहीं गई' ठीक नहीं लगता,दुआ माँगी जाती है ।
'करके अहद वफ़ा का मुकरते हैं सब "रिया" '
इस मिसरे में "अह्द" शब्द का वज़्न 21 है,इस मिसरे को यूँ कर सकती हैं:-
'कर के वफ़ा का अह्द मुकरते हैं सब 'रिया'
बाक़ी अशआर ठीक हैं ।
आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर'जी
नमस्कार
आपका बहुत शुक्रिया इतनी बारीक़ी से देख कर गलती
बताने के लिए। कुछ सुधार किया है,कृपया बताइये
क्या अब ये ठीक है?
सादर।।
221 / 2121 / 1221 / 212
हर बात हम से दिल की बताई नहीं गई
करके कोई दुआ भी तो गाई नहीं गई [1]
दिल आपकेे है बस में ये अब जानते हैं हम
जादूगरी ये हमसे दिखाई नहीं गई।2
हैं दर्द-ओ-ग़म भरे हुए इतने कि क्या कहें
ये दास्तान दिल की सुनाई नहीं गई।3
ये बदगुमानी आपकी आई है बीच में
बिगड़ी है इतनी बात बनाई नहीं गई।4
फिर साथ होगी होली दीवाली की धूम भी
हमसे अकेले ईद मनाई नहीं गई।5
दिल आपका दुखा तो मुआफ़ी हैं मांगते
हमसे कोई भी बात बढ़ाई नहीं गई।6
करके अहद वफ़ा का मुकरते हैं सब "रिया"
कोई भी रस्म तन्हा निभाई नहीं गई।7
मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें, मगर एक तो आपने जो अरकान लिखे हैं वो ठीक से नहीं लिखे हैं अरकान यूँ लिखें : 2212 - 12112 - 212 - 22 मुस्तफ़यलुन-मफ़ाइलतुन-फ़ाइलुन-2फ़ा दूसरे ये अरकान/बह्र सिर्फ आपकी ग़ज़ल के मतले और दीगर अशआर के सानी मिसरों के मुताबिक़ है मिसरा-ए-ऊला आपको बदलना होंगे, या फिर आपको रदीफ़ को बदलना होगा। सादर।
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