1222 1222 1222 1222
अज़ीब इस दिल की बातें हैं अज़ीब इसके तराने हैं
अज़ीब ही दर्द है इसका अज़ीब ही दास्तानें हैं
अज़ीब अंज़ाम है इसका अज़ीब आग़ाज़ करता है
अगर जो टूट भी जाये तो ना आवाज़ करता है
कभी सुरख़ाब करता है कभी बेताब करता है
दिल ए नादाँ............. दिल ए नादाँ...........
दिल ए नादाँ हर इक ख़्वाहिश को ही आदाब करता है
ये करतब कितनी आसानी से यारो दिल ये करता है
कभी ये ज़ख़्म देता है,…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on June 10, 2021 at 10:23am — 2 Comments
दिल लगाएँ, दिल जलाएँ, दिल को रुसवा हम करें
चार दिन की ज़िन्दगी में और क्या क्या हम करें?
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एक दिन बौनों की बस्ती से गुज़रना क्या हुआ
चाहने वो यह लगे क़द अपना छोटा हम करें.
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हाथ बेचे ज़ह’न बेचा और फिर ईमाँ बिका
पेट की ख़ातिर भला अब और कितना हम करें?
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चाहते हैं हम को पाना और झिझकते भी हैं वो
मसअला यानी है उनका ख़ुद को सस्ता हम करें.
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इक सितम से रू-ब-रु हैं पर ज़ुबां ख़ुलती नहीं
ये ज़माना चाहता है उस का चर्चा हम करें.…
Added by Nilesh Shevgaonkar on June 8, 2021 at 12:00pm — 8 Comments
एक आयु के उपरान्त
प्रेम मुदित तुम्हारा लौट आना
गुज़रती साँसों को मानो
संजीवनी की बूटी से
साँस नई दे देना
स्नेह का यह फल मीठा
और अति आनन्ददायक था…
ContinueAdded by vijay nikore on June 7, 2021 at 1:00pm — 8 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
करता है जग में धर्म के लोगो न काम वो
लेकिन बताता नाम है सब को ही राम वो।१।
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कहता था हम से देश को आया सँभालने
पर उजली भोर कर रहा देखो तो शाम वो।२।
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महँगा हुआ है थाली में निर्धन का कौर भी
सेठों को मुफ्त बाँटता हर दम ईनाम वो।३।
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केवल उड़ायी नींद हो ऐसा नहीं हुआ
सपने भी लूट ले गया सब के तमाम वो।४।
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समझा न मन के दर्द को लोगो भले कभी
करता है मन की बात बहुत बेलगाम…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 7, 2021 at 7:08am — 5 Comments
आपाधापी, व्यस्तता, लस्त-पस्त दिन-रात
छोड़ इन्हें, आ चल सुनें, कली-फूल की बात ।
मन मारे चुप आज मैं.. सोचूँ अपना कौन..
बालकनी के फूल खिल, ढाँढस देते मौन !!
सांत्वना वाले हुए.. हाथ जभी से दूर ..
लगीं बोलने डालियाँ, 'मत होना मज़बूर' !!
जाने आये कौन कब, मन की थामे डोर
तुलसी मइया पोंछना, नम आँखों की कोर
फिर आया सूरज लिये, नई भोर का रूप
उठ ले अब अँगड़ाइयाँ, निकल काम पर धूप !
मन-जंगल उद्भ्रांत है, इसे चाहिए त्राण…
ContinueAdded by Saurabh Pandey on June 5, 2021 at 5:30pm — 10 Comments
221 2121 1221 212
थी अस्ल में सियाह वो रंगीन हम ने की
कुछ इस तरह से रात की तज़ईन हम ने की (1)
उनकी नज़र के सामने गिरने से बच गए
कल आइने में अपनी ही तौहीन हम ने की (2)
अपने गिरोह में हमें शामिल तो कीजिए
लोगों ने दी हैं गालियाँ तहसीन हम ने की (3)
उस ने तो चीर फाड़ के क्या कर दिया इसे
पहलू में दिल नहीं था ये तस्कीन हम ने की (4)
सौ काम ठीक ठाक कीये आज तक मगर
ग़लती भी एक बारहा संगीन हम ने की…
Added by सालिक गणवीर on June 5, 2021 at 9:00am — 10 Comments
२१२२/२१२२/२१२२
गीत में सद् भावना का ज्वार कम है
सर्वहित की कामना का ज्वार कम है।१।
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दे रहे सब सान्त्वना पर जानता हूँ
शुद्ध मन की प्रार्थना का ज्वार कम है।२।
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सिद्ध कैसे झट से होगी योग माया
आज साधक साधना का ज्वार कम है।३।
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सत्य मर्यादा टिकेगी किस तरह अब
हर किसी में वर्जना का ज्वार कम है।४।
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हर नगर श्मसान जैसा आज दिखता
किस नयन में वेदना का ज्वार कम है।५।
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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 4, 2021 at 1:20pm — 11 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
लिक्खा सजा के हम ने उजालों ने जो कहा
लाया मगर अमल में अँधेरों ने जो कहा।१।
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बैठक में ला के रख दी वो शोभा बढ़ाने को
समझा बताओ किसने किताबों ने जो कहा।२।
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देखा जो उसको मान के आँखों का धोखा है
जाना अमर है सत्य हवाओं ने जो कहा।३।
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सोचा ही था कि शाप के परिणाम आ गये
आया असर न एक दुआओं ने जो कहा।४।
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इस दौर कह के झूठ है अन्नों की बात को
सच कह रही है देह दवाओं ने जो…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 3, 2021 at 11:30am — 9 Comments
2122 1122 22
लाओ जंजीर मुझे पहना दो
मेरी तकदीर मुझे पहना दो
तुम ख़ुदा हो तो ये डर कैसा है
मेरी तहरीर मुझे पहना दो
जो भी चाहो वो सज़ा दो मुझको
जुर्म ए तामीर मुझे पहना दो
पहले काटो ये ज़ुबाँ मेरी फिर
कोई तज़्वीर मुझे पहना दो
मुफ़्लिसी ज़ुर्म अगर है मेरा
सारी ताजी़र मुझे पहना दो
आज आया हूँ मैं हक की खातिर
कोई तस्वीर मुझे पहना दो
मौलिक व…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on June 2, 2021 at 12:30pm — 9 Comments
ग़जलः
2122 2122 2122 212
मुन्तज़िर थे हम मगर मिलना मयस्सर ना हुआ
वस्ल तो तय थी नसीबा पर हमारा ना हुआ
चाँद रातों में तड़पता वस्ल की खातिर कोई
वो मुहर लब पर हुई कब वो नज़ारा ना हुआ
चाँदी की दीवारें आड़े आईं आशिक प्यार के
मुफलिसों को प्यार का या रब सहारा ना हुआ
जो पहुँचना था हमें अफलाक की ऊँचाइयों,
रह गये बैठे जमीं कोई हमारा ना हुआ ।
टूटती साँसे रही मकतल बना अस्पताल अब,
ज़िन्दगी तेरा भरोसा…
Added by Chetan Prakash on June 2, 2021 at 11:30am — 4 Comments
जिसे दिल ने चाहा, मिला ही नहीं
सिवा इसके कोई गिला ही नहीं
नसीबों में उनके बहारें लिखीं
इधर तो कोई सिलसिला ही नहीं
कहां से महकतीं ये फुलवारियां
कोई फूल अब तक खिला ही नहीं
जड़ें उसकी मजबूत थीं इसलिए
शज़र आंधियों में हिला ही नहीं
यहां भीड़ में भी अकेले हैं सब
मुहब्बत का वो काफ़िला ही नहीं।। # अतुल कन्नौजवी
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by atul kushwah on June 1, 2021 at 8:31pm — 1 Comment
(सम्पूर्ण वर्णमाला पर एक अनूठा प्रयास)
.
अभी-अभी तो मिली सजन से,
आकर मन में बस ही गये।
इस बन्धन के शुचि धागों को,
ईश स्वयं ही बांध गये।
उमर सलोनी कुञ्जगली सी,
ऊर्मिल चाहत है छाई।
ऋजु मन निरखे आभा उनकी,
एकनिष्ठ हो हरषाई।
ऐसा अपनापन पाकर मन,
ओढ़ ओढ़नी झूम पड़ा,
और मेरे सपनों का राजा,
अंतरंग मालूम खड़ा।
अ: अनूठा अनुभव प्यारा,
कलरव सी ध्वनि होती है।
खनखन चूड़ी ज्यूँ मतवाली,
गहना…
Added by शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप" on June 1, 2021 at 8:30am — 10 Comments
कष्ट सहकर नीर बनकर,आँख से वो बह रही थी।
क्षुब्ध मन से पीर मन की, मूक बन वो सह रही थी।
स्वावलम्बन आत्ममंथन,थे पुरुष कृत बेड़ियों में।
एक युग था नारियों की,बुद्धि समझी ऐड़ियों में।
आज नारी तोड़ सारे बन्धनों की हथकड़ी को,
बढ़ रही है,पढ़ रही है,लक्ष्य साधें हर घड़ी वो।
आज दृढ़ नैपुण्य से यह,कार्यक्षमता बढ़ रही है।
क्षेत्र सारे वो खँगारे, पर्वतों पर चढ़ रही है।
नभ उड़ानें विजय ठाने, देश हित में उड़ रही वो,
पूर्ण करती हर चुनौती…
Added by शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप" on May 31, 2021 at 5:00pm — 4 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
करने को नित्य पाप जो गंगा नहायेंगे
हम से अधिक न यार कभी पुण्य पायेंगे।१।
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तन के धुलेंगे पाप न पावन जो मन हुआ
अंतस में ग्लानि होगी तो गंगा को आयेंगे।२।
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कोसेेंगे एक दिन तो स्वयं अपने आप को
अपनी नजर से बोलिए क्या क्या छिपायेंगे।३।
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हम को भले ही भाव न तुम दो अभी मगर
घन्टी बजा कलम से तो हम ही जगायेंगे।४।
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जिनको शऊर आया न दीपक जलाने का
कहते हैं रोशनी को वो सूरज उगायेंगे।५।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 31, 2021 at 10:00am — 8 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
कोई बिका तो लाया है कोई खरीद कर
दुनिया में आज हो रही शादी खरीद कर।१।
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हम हर गली या चौक पे चर्चा में व्यस्त हैं
लाला चलाता देश है खादी खरीद कर।२।
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पाया अधिक तो हो गया दुश्मन की ओर ही
किसका हुआ वकील है वादी खरीद कर।३।
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रखता बचा के कौन से जीवन के हेतु वो
बच्चों को लोभी देता न टाफी खरीद कर।४।
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खुद खाके भूख माँ ने खिलाया था कौर इक
कमतर उसे जो दें भी तो रोटी खरीद कर।५।
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कर्मों से जो…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 30, 2021 at 10:05am — 4 Comments
22 22 22 22 22 22 22 1
कोई करता है उद्धार कोई करता अत्याचार
इस रंगमंच दुनिया में है सबका अपना किरदार
सुख दुख जीवन के हैं साथी क्यों रोता है तू यार
मिट ही जायेंगे सारे दुख जब छूटेगा संसार
जी भर के जीले हर इक पल ज़िद करना है बेकार
तन्हाई में कितने मौसम गुजरे हैं कितनी बार
कोई तो मिल जाये दिल कस्ती वाला इस पार
बैठे हैं साहिल पर कब से लेकर खाली पतवार
ऐसे भी तो ना घूमा कर लेकर दुख का…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on May 28, 2021 at 9:00am — 2 Comments
रणभेरी बजने से पहले अच्छा है तुम घर जाओ
वरना पीठ दिखाने से तो अच्छा है तुम मर जाओ
कितनी ही आशाएं तुमसे लगी हुई है, टूटेंगीं
कितनी ही तकदीरें तुमसे जुड़ी हुई हैं, रूठेगीं
तेरे पीछे मुड़ जाने से कितने सिर झुक जाएंगे
कितने प्राण कलंकित होंगे कितने कल रुक जाएंगे
उतर गए हो बीच समर तो कौशल भी दिखला जाओ
हिम्मत के बादल बन कर तुम विपदाओं पर छा जाओ
तप कर और प्रबल बनकर तुम शोलों बीच सँवर जाओ
वरना पीठ दिखाने से तो अच्छा है तुम…
Added by आशीष यादव on May 28, 2021 at 12:11am — 7 Comments
2×11
बदहाली का एक समंदर सर पर है।
शहर की हालत वीरानों से बदतर है।
जिद पर तो बेशक मैं भी आ सकता हूँ ,
लेकिन मुझको बात बिगड़ने का डर है।
जो आँखों की भाषा समझ नहीं पाते,
उन लोगों से कुछ ना कहना बेहतर है।
लूट लिया जिसने आपस के रिश्तों को,
तुम लोगों की आँखों मे वो रहबर है?
नीव हिलाकर चीख रहे हैं झूठे लोग,
उनके पास योजना सबसे बढ़कर है।
एक इमारत है बनने की कोशिश में,
उसकी खातिर मुश्किल…
Added by मनोज अहसास on May 27, 2021 at 11:44pm — 8 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
मीठी सी बात कर के लुभाने का शुक्रिया
फिर गीत ये विकास के गाने का शुक्रिया।१।
***
हमको दुखों से एक भी शिकवा नहीं भले
होते हैं सुख के दिन ये बताने का शुक्रिया।२।
**
वादे सियासती ही सही हम को भा गये
फिर से दिलों में आस जगाने का शुक्रिया।३।
**
खातिर भले ही वोट की आये हो गाँव तक
यूँ पाँच साल बाद भी आने का शुक्रिया।४।
**
पथरा गयीं थी देखते पथ ये तुम्हारा जो
आँसू हमारी आँखों में लाने का शुक्रिया।५।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 27, 2021 at 8:15pm — 6 Comments
माँ की रसोई,श्रेष्ठ होई,है न इसका तोड़,
जो भी पकाया,खूब खाया,रोज लगती होड़।
हँसकर बनाती,वो खिलाती,प्रेम से खुश होय,
था स्वाद मीठा,जो पराँठा, माँ खिलाती पोय।
खुशबू निराली,साग वाली,फैलती चहुँ ओर,
मैं पास आती,बैठ जाती,भूख लगती जोर।
छोंकन चिरौंजी,आम लौंजी,माँ बनाती स्वाद,
चाहे दही हो,छाछ ही हो,कुछ न था बेस्वाद।
मैं रूठ जाती,वो मनाती,भोग छप्पन्न लाय,
सीरा कचौरी या पकौड़ी, सोंठ वाली चाय।
चावल पकाई,खीर लाई,तृप्त मन हो जाय,…
Added by शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप" on May 25, 2021 at 8:30pm — 2 Comments
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