आपाधापी, व्यस्तता, लस्त-पस्त दिन-रात
छोड़ इन्हें, आ चल सुनें, कली-फूल की बात ।
मन मारे चुप आज मैं.. सोचूँ अपना कौन..
बालकनी के फूल खिल, ढाँढस देते मौन !!
सांत्वना वाले हुए.. हाथ जभी से दूर ..
लगीं बोलने डालियाँ, 'मत होना मज़बूर' !!
जाने आये कौन कब, मन की थामे डोर
तुलसी मइया पोंछना, नम आँखों की कोर
फिर आया सूरज लिये, नई भोर का रूप
उठ ले अब अँगड़ाइयाँ, निकल काम पर धूप !
मन-जंगल उद्भ्रांत है, इसे चाहिए त्राण ।
पस्त हुआ पर्यावरण, त्रस्त धरा का प्राण ।।
***
सौरभ
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपका स्वागत है.
उत्साहवर्द्धन के लिए धन्यवाद.
सांत्वना को हमने २१ १२ के तौर पर बाँधा है. और, यही विशिष्टता है जिसकी ओर हमने अपने इसी पोस्ट की एक टिप्पणी में इंगित भी किया है. मात्रिकता की सामान्य नियमावलियों के आधार पर इसे २१२ यानी रगणात्मक ही लिया जाता रहा है. लेकिन बहुत कुछ विचार करने के बाद, ओबीओ से मिले दशक से अधिक तथ्यपरक अनुभव के बाद ऐसा कुछ कह पा रहा हूँ. वैसे मात्रिकता की नियमावली से कोई दुराव नहीं है. न ही कोई भेद है. परन्तु, ऐसी समझ के पूर्व मनन-मंथन से अवश्य गुजरा हूँ .
अलबत्ता, उद्भ्रान्त शब्द २२१ ही होगा.
//मंगल/ पर। इस शब्द में 2-2 है। ज़रूरत पड़ने पर क्या इसे /मँगल/ 1-2 लिख सकते हैं?//
जी नहीं.
यहाँ अनुस्वार और चंद्रबिन्दु की मात्राओं का अन्तर है. और फिर दोनों की मात्राएँ भी अलग-अलग होती हैं.
रंग और रँग को यदि आप एक जैसा समझ रहे हों तो यह भ्रामक है. ये दोनों शब्द एक नहीं हैं.
रंग संज्ञा है जबकि रँग क्रिया का निरुपक है. अब यह अलग बात है कि सोशल-मीडिया पर कई अनगढ़ बातों को प्रश्रय मिल जाता है.
यह भी जानें, कि रंग का विशेषण रँगीला, नोक का नुकीला, आदि अलग चर्चा के विषय हैं. जिसके अनुसार शब्द के पहला गुरु वर्ण शब्द का विशेषण रूप प्राप्त करते ही लघु वर्ण का हो जाता है. अर्थात, रंग का विशेषण रँगीला के स्थान पर कोई रंगीला लिखता है तो वह अशुद्ध होगा.
सधन्यवाद
आदाब। विशिष्ट संचेतना दिवस पर बहुत सुंदर दोहावली। हार्दिक बधाई आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी। /सांत्वना/ में मैं मात्राएँ 2-1-2 समझ पा रहा हूँ और /उदभ्रांत/ 2-2-1। क्या सही समझ सका?
एक अन्य इतर जिज्ञासा है ग्रह /मंगल/ पर। इस शब्द में 2-2 है। ज़रूरत पड़ने पर क्या इसे /मँगल/ 1-2 लिख सकते हैं?
आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपका हार्दिक धन्यवाद.
जहाँ तक उद्भ्रांत शब्द की मात्रिकता का प्रश्न है, आपने यदि ’सांत्वना’ शब्द पर प्रश्न किया होता, तो ओबीओ पर अबतक होती आयी चर्चा के सापेक्ष वह प्रश्न अधिक प्रासंगिक होता.
उद्भ्रांत शब्द के साथ कोई दिक्कत नहीं है. उक्त चरण की कुल मात्राएँ तेरह ही हैं.
सादर
आदरणीय समर जी, मोबाइल से टाइप करने से ऐसा हो जाता है. आपने उचित ही कहा है. पोस्ट करने के क्रम में इस शब्द की अक्षरी पर ध्यान भी नहीं गया. यह मेरी दृष्टि में आया भी नहीं.
सचेत करने के लिए धन्यवाद.
नमन, सौरभ पाण्डेय जी, पर्यावरण पर सुन्दर दोहे रचे आपने किन्तु अन्तिम दोहे का प्रथम चरण, "मन जंगल उदभ्रांत है, आदरणीय मुझे मात्राएं चौदह जान पड़ी! कृपया पुनः देखें !
जनाब सौरभ पाण्डेय जी आदाब, पर्यावरण दिवस पर बहुत उम्द: दोहे लिखे आपने, बधाई स्वीकार करें ।
'लगीं बोलने डालियाँ, 'मत होना मज़बूर'
इस पंक्ति में 'मज़बूर' को "मजबूर" कर लें ।
आपने अपनी पिछली कई रचनाओं पर टिप्पणियों के जवाब नहीं दिये हैं,देख लें भाई ।
आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपका उत्साहवर्द्धन प्रेरक है.
आदरणीय रविशुक्ल भाईजी, आपकी सदाशयता का हार्दिक धन्यवाद..
आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। पर्यावरण दिवस पर उत्तम दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई।
आदरणीय सौरभ भाईजी पर्यावरण दिवस पर सुंदर दोहे रचे आपने प्रासंगिक एवं उत्तम भाव के दोाहों के लिये हार्दिक बधाई स्वीकार करें
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