For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

थी अस्ल में सियाह वो रंगीन हम ने की.....( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)

221 2121 1221 212

थी अस्ल में सियाह वो रंगीन हम ने की
कुछ इस तरह से रात की तज़ईन हम ने की (1)

उनकी नज़र के सामने गिरने से बच गए
कल आइने में अपनी ही तौहीन हम ने की (2)

अपने गिरोह में हमें शामिल तो कीजिए
लोगों ने दी हैं गालियाँ तहसीन हम ने की (3)

उस ने तो चीर फाड़ के क्या कर दिया इसे
पहलू में दिल नहीं था ये तस्कीन हम ने की (4)

सौ काम ठीक ठाक कीये आज तक मगर
ग़लती भी एक बारहा संगीन हम ने की (5)

लोगों ने जब दुआएँ दीं तो कुछ नहीं कहा
जब तुम ने बद्दुआएँ दीं आमीन हम ने की (6)

माज़ी को याद कर लिया फिर सुब्ह दोस्तो

इस तरह शाम आज भी ग़मगीन हम ने की (7)

मौलिक/अप्रकाशित
©सालिक गणवीर

Views: 726

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सालिक गणवीर on June 9, 2021 at 7:16pm

आदरणीय  Samar kabeerसाहिब
आदाब

जनाब चेतन जी ने जो ग़लती बताई है वो तो ग़लती है ही नहीं फिर सुधार क्या करेंगे ?

सब का ईगो satisfy करना पड़ता है मुहतरम

Comment by सालिक गणवीर on June 9, 2021 at 7:13pm

आदरणीय भाई  Nilesh Shevgaonkar जी
सादर अभिवादन
पटल और ग़ज़ल पर आपको बहुत दिनों बाद देख कर ख़ुशी हुई। सराहना के लिए हार्दिक आभार। ये इस ग़ज़ल करेक्टेड वर्शन ही है। सुधार करने की कोशिश करता हूँ

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 9, 2021 at 10:19am

आ. सालिक जी,

अच्छी ग़ज़ल हुई है.. बधाई... 
दूसरे शेर के मिसरों में रब्त नहीं बन पाया शायद ...
.
लोगों ने दी हैं गालियाँ तहसीन हम ने की,,,यहाँ हैं की जगह जो अधिक बेहतर होता..
.
पुन: बढाई 

Comment by Samar kabeer on June 7, 2021 at 11:57am

जनाब चेतन जी ने जो ग़लती बताई है वो तो ग़लती है ही नहीं फिर सुधार क्या करेंगे ?

Comment by सालिक गणवीर on June 7, 2021 at 11:51am

आदरणीय Chetan Prakash साहिब
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी आमद और सराहना के लिए हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ।जो ग़लती हुई है उसे दुरुस्त करने का प्रयास कर आपके समक्ष प्रस्तुत करता हूँ. .सादर

Comment by सालिक गणवीर on June 7, 2021 at 11:34am

आदरणीय  Samar kabeerसाहिब
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी आमद और सराहना के लिए हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ। आप के सानिघ्य में रह कर जो भी सीख पाया उसके बावजूद ग़लतियाँ हो रहीं हैं मुहतरम ,जो ग़लती हुई है उसे दुरुस्त करने का प्रयास कर आपके समक्ष प्रस्तुत करता हूँ. .सादर

Comment by सालिक गणवीर on June 7, 2021 at 11:28am

आदरणीय Ravi Shukla साहिब
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी आमद और सराहना के लिए हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ। आप जैसे गुणीजनों के सानिध्य में रह कर ही हम सब सीख रहे हैं आदरणीय। मतले में जो ग़लती हुई है उसे दुरुस्त करने का प्रयास कर आपके समक्ष प्रस्तुत करता हूँ. .सादर

Comment by Samar kabeer on June 6, 2021 at 8:27pm

जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,लेकिन ग़ज़ल अभी समय चाहती है ।

मतले पर जनाब रवि शुक्ल जी से सहमत हूँ, लेकिन एक कमी और है वो ये कि ऊला में 'वारदातें' और सानी में 'रातें' शब्द बहुवचन में होने के कारण रदीफ़ 'हमने की' की बजाय "हमने कीं" हो रही है, देखें ।

'सौ काम अब तलक तो बहतरीन कर लीये
जीवन में ग़लतियाँ भी दो-तीन हम ने की'

ये शैर बह्र से ख़ारिज है,और इसके सानी में 'ग़लतियाँ' शब्द बहुवचन होने के कारण रदीफ़ बदल रही है,ग़ौर करें ।

ग़ज़ल कहने के बाद उसे दो तीन बार पढ़ा करें, तो ग़लतियों के इमकान कम होंगे ।

Comment by Chetan Prakash on June 6, 2021 at 3:25pm

आदाब भाई, गणवीर सलिक, दूसरे शैर का ऊला मुझे दोष पूरऱ्ण लगा, क्योंकि नज़र ( 21 ) पर लिया जाना चाहिए ।

Comment by Ravi Shukla on June 5, 2021 at 9:16pm

आदरणीय सालिक गणवीर जी गजल की उम्दा  कोशिश हुई है इसके लिये दिली मुबारक बाद कुबूल करें । एक दो बाते कहना चाहूँगा मतले में रंगीन और संगीन से जो काफिया तय हुआ  है वो आगे गजल मे नहीं बन पाया है तो मतले को दुबारा देखने कीगुजारिश है । पॉचवे शेर का उला भी बहर के हिसाब से एक बार फिर से देखियेगा ।सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )टूटे प्यालों में नहीं,…See More
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service