1212, 1122, 1212,22/112
*****
चले भी आओ मेरे यार दिल बुलाता है
यूँ रूठकर भी भला अपना कोई जाता है//1
सज़ा भी दे दो मुझे अब मेरे गुनाहों की
उदास चेहरा तुम्हारा नहीं सुहाता है//२
उदास तुम जो हुए ज़िंदगी उदास हुई
कोई भी जश्न मुझे अब नहीं हंसाता है//३
तुम्हारे दम से ही हर सुब्ह मेरी ज़िंदा थी
हर एक शाम का मंज़र मुझे रुलाता है//४
नज़र फिराई जो तुमने वो एक लम्हे में
हर एक लम्हा ही ठोकर लगा के जाता…
Added by क़मर जौनपुरी on January 3, 2019 at 2:30pm — 3 Comments
बह्र ए मीर
अब तक रहे भटकते उजड़े दयार में
अब कौन बसा आन दिले बेक़रार में
जिस रास्ते पे उनकी मन्ज़िलें नहीं
उस राह में खड़े हैं इन्तज़ार में
बेकार हर सदा है कितना पुकारता
ये कौन सो रहा है गुमसुम मज़ार में
उस फूल को ख़िज़ायें ले के कहाँ गईं
जिस फूल को चुना था लाखों हजार में
ऐ मीत इस कदर भी मत आज़मा मुझे
आ जाये न कमी 'ब्रज' के ऐतबार में
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 3, 2019 at 2:30pm — 4 Comments
(1212 1122 1212 22 /112 )
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बना हूँ ज़ीस्त में मर्ज़ी से मेरी आबिर* भी (*राहगीर )
फ़क़ीर मीर कभी और कभी मुसाफ़िर भी
*
किया शुरू'अ जहाँ से सफ़र न सोचा था
उसी जगह पे सफर होगा मेरा आखिर भी
*
ये दौड़भाग तो पीछा कभी न छोड़ेगी
ज़रा सा वक़्त निकालो ना ख़ुद की ख़ातिर भी
*
किसी ग़रीब की हालत का ज़िक़्र क्या…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 3, 2019 at 10:00am — 10 Comments
1212 1122 1212 22/112
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सुहानी शाम का मंज़र अजीब होता है
भुला दिया था जिसे वो क़रीब होता है//१
वो पाक जाम मिटा दे जो प्यास सदियों की
किसी किसी के लबों को नसीब होता है//२
मिली जहाँ में जिसे भी दुआ ग़रीबों की
नहीं वो शख़्स कभी बदनसीब होता है//३
वफ़ा से दे न सका जो सिला वफ़ाओं का
वही जहान में सबसे ग़रीब होता है//४
करे मुआफ़ जो छोटी बड़ी ख़ताओं को
वही तो जीस्त में सच्चा हबीब होता है//५
क़लम की…
ContinueAdded by क़मर जौनपुरी on January 3, 2019 at 7:00am — 4 Comments
पास रखना है भला जो।
छोड़ देेेेना दिल जला जो।
क्या मनाये वो खुशी को,
खुद मनाने दिल चला जो।
रौशनी हम तब मिली है ,
रात भर दीया जला जो।
आम का बन खास जाना,
कुछ तो अच्छा दिन ढला जो।
रोज़ कहता मुझ बता दे
राज़ उस खोला भला जो।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by मोहन बेगोवाल on January 2, 2019 at 5:00pm — 3 Comments
*रक्तसिक्त हाथ* (लघुकथा)
हवालाती कैदी के रूप में तीसरा दिन। किसी से मुलाक़ात के लिए उसे भी पुकारा गया। मुलाकात कक्ष में पहुँचते ही सींखचों के पार एक मुस्कुराता चेहरा नज़र आया।
काजू कतली का डिब्बा आगे बढ़ाते हुए जिसने कहा, ''रजिस्ट्री हो गई साहब! मुँह मीठा करवाने आया हूँ।"
कुछ ही समय पहले जो बिलकुल अंजान था, वही चेहरा अहर्निशं अब उसकी आंखों और दिमाग़ में तैरता रहता है।
सत्यवीर भान का चेहरा। आज दूसरी बार इस चेहरे पर भयानक मुस्कुराहट देख पा रहा था। जिसे देखकर उसे स्मरण हो…
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on January 2, 2019 at 9:26am — 14 Comments
कैसा होगा नया साल यह, कहना शायद मुश्किल है
मनोकामना सम्भव है पर , अच्छी हो सबकी ख़ातिर |
***
लिखा नियति ने जो इस पर है निर्भर क्या हो अगले पल |
कृपा बरस जाये प्रभु की या जीवन से हो जाये छल |
लेकिन अच्छा सोचोगे तो होगा जीवन में अच्छा
बुरा अगर सोचा तो वैसा सम्भव है हो जाये कल |
ज्योतिष-ज्ञान सभी की ख़ातिर रखना शायद मुश्किल…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 1, 2019 at 10:00pm — 8 Comments
नवीन वर्ष को लिए, नया प्रभात आ गया
प्रभा सुनीति की दिखी, विराट हर्ष छा गया
विचार रूढ़ त्याग के, जगी नवीन चेतना
प्रसार सौख्य का करो, रहे कहीं न वेदना।।1।।
मिटे कि अंधकार ये, मशाल प्यार की जले
न क्लेश हो न द्वेष हो, हरेक से मिलो गले
प्रबुद्ध-बुद्ध हों सभी, न हो सुषुप्त भावना
हँसी खुशी रहें सदा, यही 'सुरेन्द्र' कामना।।2।।
न लक्ष्य न्यून हो कभी, सही दिशा प्रमाण हो
न पाँव सत्य से डिगें, अधोमुखी न प्राण हो
विवेकशीलता लिए,…
Added by नाथ सोनांचली on January 1, 2019 at 8:30pm — 8 Comments
एक क्षणिका :
कल
फिर एक कल होगा
भूख के साथ
छल होगा
आसमान होगा
फुटपाथ होगा
आस गर्भ में
बिलखता
कोई पल
विकल होगा
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on January 1, 2019 at 7:32pm — 6 Comments
समय की होती अद्भुत चाल I गया कुछ लेकर-देकर साल II
बिछाकर पलक पांवड़े द्वार I किया हमने जिसका सत्कार II
वर्ष नव यह आया अभिराम I लिए सुन्दर सपने अविराम II
पूर्ण होंगे संभावित कार्य I कृपा बरसाएंगे सब आर्य II
सभी को शुभ हो नूतन वर्ष I सभी का मंगल, हो उत्कर्ष II
सभी के सपने हों साकार I सभी का हुलसित हो संसार II
सभी का मुखरित हो उल्लास I सभी के अधरों पर हो हास II
वर्ष भर हो जय-जय का शोर I वर्ष भर हो आँगन में रोर II
वर्ष भर उत्सव रहे वदान्य I वर्ष भर पूरित हो…
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 1, 2019 at 4:56pm — 3 Comments
बह्र : 2122 2122 2122
याद आ आ कर तुम्हारी, जानते हो?
रात भर मुझको नचाती, जानते हो?
प्यार करने वाला होता है जमूरा
इश्क़ होता है मदारी, जानते हो?
शाइरी में चाँद को कहते हैं सूरज
आग को कहते हैं पानी, जानते हो?
हर किसी को मैं समझ लेता हूँ अपना
मुझ में है ये ही ख़राबी, जानते हो?
बन्द कमरे की तरह अब हो गया हूँ
मुझमें दरवाज़ा न खिड़की,…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on January 1, 2019 at 2:30pm — 10 Comments
122, 122, 122 122
नज़्म - नया साल
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उमंगों भरा हो ये मौसम सुहाना
नया साल लाये खुशी का तराना
सभी के दिलों में ये रौनक़ जगाए
गली गाँव बस्ती सभी मुस्कुराए
सफों में हमेशा रहे जो किनारे
नया साल उनकी भी किस्मत सँवारे
दिलों से कभी भी न मग़रूर हों हम
ख़ुदी के नशे में नहीं चूर हों हम
सभी को गले से लगाते चलें हम
जो रूठे हैं उनको मनाते चले हम
रहे प्यार का बोलबाला जहाँ…
ContinueAdded by क़मर जौनपुरी on January 1, 2019 at 1:39pm — 3 Comments
2122, 1122, 1122, 22/112
ग़ज़ल
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ज़िन्दगी है तो हसीं ख़्वाब सजाने होंगे
यूँ तो रोने के हज़ारों ही बहाने होंगे//१
पास आएगा नहीं चल के हिमालय ख़ुद ही
ज़ौक़ से अपने क़दम तुमको बढ़ाने होंगे//२
रेंगना है जो ज़मीं पे तो किनारे बैठो
आसमां छूना है तो पंख लगाने होंगे//३
आरज़ू कर तो नई सुब्ह मचल जाएगी
रात के ग़म भी मगर थोड़े भुलाने होंगे//४
पास में घर ही बना लेने का मतलब क्या है
फ़ासले दिल में जो हैं जड़ से…
Added by क़मर जौनपुरी on January 1, 2019 at 1:34pm — 2 Comments
2122, 2122, 2122
ग़ज़ल
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प्यार को वो आज़माना चाहता है
आसमाँ धरती पे लाना चाहता है//१
बांधकर जंज़ीर वो पंछी के पर में
इश्क़ का कलमा पढ़ाना चाहता है//२
बात दिल की जब ज़ुबाँ पे आ गई तो
और अब वो क्या छिपाना चाहता है//३
आंखों में उसकी जफ़ा दिखने लगी तो
मुझपे वो तोहमत लगाना चाहता है//४
इश्क़ में जलकर के मैं कुन्दन हुआ, वो
आग से मुझको डराना चाहता है//५
क़त्ल पहले कर दिया वो…
ContinueAdded by क़मर जौनपुरी on January 1, 2019 at 1:00pm — 5 Comments
२२१२ १२१२ २२१२ १२
नाकामे इश्क़ होके अपने दर पहुँच गया
सहरा पहुँच के यूँ लगा मैं घर पहुँच गया //१
दिल टूटने की शह्र को ऐसी हुई ख़बर
दरवाज़े पे हमारे शीशागर पहुँच गया //२
उसको भी मेरे होंठ की आदत थी यूँ लगी
साक़ी के हाथ मुझ तलक साग़र पहुँच गया //३
जब भी हुई जिगर को तुझे देखने की चाह
ख़ुद चल के आँख तक तेरा मंज़र पहुँच गया…
Added by राज़ नवादवी on January 1, 2019 at 12:30pm — 13 Comments
ग़ज़ल (रब से कीजिए दुआएं नए साल में)
(फाइ लुन _फाइ लुन _फाइ लुन _फाइ लुन _)
रब से कीजिए दुआएं नए साल में l
अच्छे दिन लौट आएँ नए साल में l
पास आएं न आएं नए साल में l
पर न हम को भुलाएं नए साल में l
जिन अज़ी ज़ों ने उनको किया बद गुमां
उनको मत मुँह लगाएँ नए साल में l
उस पे फिरक़ा परस्तों की है बद नजर
भाई चारा बचाएँ नए साल में l
इम्तहाने वफ़ा तो बहुत हो चुके
और मत आज़मा एँ नए साल में…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on January 1, 2019 at 12:28pm — 10 Comments
Added by amita tiwari on December 31, 2018 at 8:38pm — 4 Comments
पूछ मुझसे न सरे बज़्म यहाँ क्या होग़ा ।
महफ़िले इश्क़ में अब हुस्न को सज़दा होगा ।।
बाद मुद्दत के दिखा चाँद ज़मीं पर कोई ।
आप गुजरेंगे गली से तो ये चर्चा होगा ।।
वो जो बेचैन सा दिखता था यहां कुछ दिन से ।
जेहन में अक्स तेरा बारहा उभरा होगा ।।
रोशनी कुछ तो दरीचों से निकल आयी जब ।
तज्रिबा कहता है वो चाँद का…
Added by Naveen Mani Tripathi on December 31, 2018 at 8:20pm — 5 Comments
संस्कार की नींव दे, उन्नति का प्रासाद
हर मन बंदिश में रहे, हर मन हो आजाद।१।
महल झोपड़ी सब जगह, भरा रहे भंडार
जिस दर भी जायें मिले, भूखे को आहार।२।
लगे न बीते साल सा, तन मन कोई घाव
राजनीति ना भर सके, जन में नया दुराव।३।
धन की बरकत ले धनी, निर्धन हो धनवान
शक्तिहीन अन्याय हो, न्याय बने बलवान।४।
घर आँगन सबके खिलें, प्रीत प्यार के फूल
और जले नव वर्ष मेें, हर नफरत का शूल।५।
निर्धन को नव वर्ष की, बस इतनी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2018 at 5:54pm — 8 Comments
नज़्म नया साल
इन दिनों पिछले साल आया था
पेड़ की टहनी पर नया पत्ता
वक्त की मार से हुआ बूढ़ा
आज आखिर वह शाख से टूटा ।
जन्मदिन हर महीने आता था
और वो और खिलखिलाता था
वो मुझे देख मुस्कुराता था
मैं उसे देख मुस्कुराता था ।
जिन दिनों वो जवान होता था
पेड़ पौधों की शान होता था
उस तरफ सबका ध्यान होता था
और वो आंगन की शान होता था ।
उसके चेहरे में ताब होता था
मुस्कुराना गुलाब होता…
Added by सूबे सिंह सुजान on December 31, 2018 at 2:30pm — 5 Comments
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