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ग़ज़ल (रब से कीजिए दुआएं नए साल में)

ग़ज़ल (रब से कीजिए दुआएं नए साल में)
(फाइ लुन _फाइ लुन _फाइ लुन _फाइ लुन _)

रब से कीजिए दुआएं नए साल में l
अच्छे दिन लौट आएँ नए साल में l

पास आएं न आएं नए साल में l
पर न हम को भुलाएं नए साल में l

जिन अज़ी ज़ों ने उनको किया बद गुमां
उनको मत मुँह लगाएँ नए साल में l

उस पे फिरक़ा परस्तों की है बद नजर
भाई चारा बचाएँ नए साल में l

इम्तहाने वफ़ा तो बहुत हो चुके
और मत आज़मा एँ नए साल में l

नज़रें मँहगाई घर की ख़ुशी हो गई
जश्न कैसे मनाएँ नए साल में l

जाने जां दिल भी इक रोज़ मिल जाएंगे
हाथ हम से मिलाएँ नए साल में l

मुझको तरसाया पिछ्ले बरस आपने
अब तो जलवा दिखाएँ नए साल में l

ये गवारा है तस्दीक दुनिया को कब
उनके घर आएं जाएँ नए साल में l

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by Tasdiq Ahmed Khan on January 5, 2019 at 1:06pm

जनाब महेंद्र कुमार साहिब, ग़ज़ल पर आपकी सुंदर प्रतिक्रिया और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I 

Comment by Mahendra Kumar on January 4, 2019 at 7:24pm

ये गवारा है तस्दीक दुनिया को कब
उनके घर आएं जाएँ नए साल में l

नए साल पर इस बढ़िया ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीय तस्दीक अहमद खान जी. सादर.

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on January 4, 2019 at 8:52am

जनाब ब्रजेश कुमार साहिब, ग़ज़ल में आपकी शिर्कत और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 3, 2019 at 3:49pm

वाह बहुत ही खूब आदरणीय तस्दीक़ जी..

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on January 2, 2019 at 9:06am

जनाब भाई लक्ष्मण धा मी साहिब, ग़ज़ल में आपकी शिर्कत और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on January 2, 2019 at 9:04am

मुहतरम जनाब समर साहिब आ दाब, ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I

पढ़ने में "कीजै  " ही आएगा, सही "नज्र _ए" ही है जो टाइप के वक़्त ग़लत हो गया l सादर 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 2, 2019 at 7:32am

आ. भाई तस्दीक अहमद जी, नववर्ष पर सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Samar kabeer on January 1, 2019 at 10:43pm

जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'रब से कीजिए दुआएं नए साल में l
अच्छे दिन लौट आएँ नए साल में'

मतले के ऊला मिसरे में 'कीजिये' को "कीजै" करलें और दोनों मिसरों में 'आएं' क़वाफ़ी पर भी ग़ौर करें ।

'नज़रें मँहगाई घर की ख़ुशी हो गई'

नज़रें--या नज़्र-ए-?

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on January 1, 2019 at 9:10pm

जनाब सुरेन्द्र नाथ साहिब, ग़ज़ल में आपकी शिर्कत और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I नए साल की मुबारक बाद क़ुबुल फरमाएं l

Comment by नाथ सोनांचली on January 1, 2019 at 8:57pm

आद0तस्दीक अहमद खान साहब सादर अभिवादन। नए साल की शुभकामनाएं प्रेषित करती बेहतरीन ग़ज़ल पर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ

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