दुर्दशा हुई मातृ भूमि जो, गंगा ...हुई... .पुरानी है
पावन देवि सरस्वती तुझे, कविता-कथा सुनानी है !
दोहा ..सोरठा ..सवैया तज, कवि मुक्त काव्य लिखता है ।
सिद्ध छंद छोड़ काव्य वह अब, भार गिरा कर पढ़ता है ।।
ग़ज़ल उसे बहुत भाती रही, याद ,.,कविता.. दिलानी है ।
कविता का ..मर्म नहीं.. जाने , घुट्टी ..उन्हें ...पिलानी है ।।
पावन देवि सरस्वती तुझे, कविता - कथा.. सुनानी है !
माँ शारदे .. सुन, वरदान दे, दास काव्य का..बन…
ContinueAdded by Chetan Prakash on June 1, 2023 at 7:35am — 1 Comment
जलते दीपक कर रहे, नित्य नये पड्यंत्र।
फूँका उन के कान में, तम ने कैसा मंत्र।१।
*
जीवनभर बैठे रहे, जो नदिया के तीर।
भाँणों ने उनको लिखा, मझधारों के वीर।२।
*
करती हो पतवार जब, दुश्मन सा व्यवहार।
कौन करे उम्मीद फिर, नाव लगेगी पार।३।
*
दुख के अपने रंग हैं, दुख की अपनी चाल।
जिसके चंगुल में हुए, जग में सभी निढाल।४।
*
लूले-लँगड़े सुख सकल, साध रहे नित मौन।
आगे बढ़कर फिर भला, दुख को कुचले कौन।५।
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दुख के जनपद हैं बहुत, सुख…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 30, 2023 at 10:25pm — 2 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
*
अब न काली रातों में ही चूमती फिरती है लब
भोर में भी यह उदासी चूमती फिरती है लब।१।
*
वो जमाना और था जब प्यार था पर्दानशीं
आज तो हर बेहयायी चूमती फिरती है लब।२।
*
जेब खाली की न घर में पूछ होती आजकल
धन मिले तो स्वर्ग दासी चूमती फिरती है लब।३।
*
मोल रोटी का उसी को हम से बढ़कर ज्ञात है
नित्य जिसके सिर्फ बासी चूमती फिरती है लब।४।
*
हर थकन से मुक्ति पाती देह जर्जर आज भी
जब गले लग झट से बच्ची…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 29, 2023 at 11:00am — 2 Comments
1212 1122 1212 22
है ज़हर आज हवाओं में, दिल दहलते हैं
मुनाफ़िकों की है बस्ती कि वो टहलते हैं
के चार सू यहाँ मरते हैं लोग तनहाई
बुझे- बुझे से हैं बूढ़े कहीं निकलते हैं
कि ख़ौफनाक है मंज़र ये नफ़रतों दुनिया
ये ज़ालिमों की है बस्ती खला बहलते हैं
वो शर्म मर गयी आँखों की ग़मज़दा हम हैं
करें भी क्या अदब वाले यहाँ से चलते हैं
गुलाम देते सलामी वो शाह भी खुश हैं
कि मार डाले हैं दुश्मन जहाँ जो…
Added by Chetan Prakash on May 29, 2023 at 7:30am — No Comments
Added by Madan Mohan saxena on May 23, 2023 at 11:06am — No Comments
बारहा साहिल की जानिब लह’र क्यूँ आती रही
सर पटकती पाँव पड़ती रोती चिल्लाती रही.
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ओस में भीगे हुए इक गुल को नज़ला हो गया
देर तक तितली लिपटकर उस को गर्माती रही.
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इक नदी की चाह में रोया समुन्दर ज़ार…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 22, 2023 at 1:08pm — 4 Comments
एक जीवन मे नारी का तीन जन्म होता है
लेकिन हर जनम मे उसका कर्म अलग होता है
पहला रूप है पुत्री का, पिता के घर वो आती है
संग में अपने मात-पिता का स्वाभिमान भी लाती है
यहाँ कर्म हैं मात-पिता की सेवा निशदिन करते रहना …
ContinueAdded by AMAN SINHA on May 21, 2023 at 6:00am — No Comments
2122 2122 2122
1
वो ज़रा-सा सिरफ़िरा कुछ मनचला है
जो महब्बत के सफ़र पर चल पड़ा है
2
मेरे दिल ने जो कहा मैंने किया है
काम फिर चाहे वो अच्छा या बुरा है
3
अक़्स आँखों में हमारी जो छिपा है
इस जहाँ के सबसे प्यारे शख़्स का है
4
है महब्बत एक चिंगारी कुछ ऐसी
दिल लगाने वाला ही इसमें जला है
5
बाद मुद्दत के मिला उससे तो जाना
वो मुझे ग़ैरों में शामिल कर चुका है
6
कुछ कहे बिन और…
ContinueAdded by Rachna Bhatia on May 17, 2023 at 11:30am — 7 Comments
2122--1122--1122--22
मेरी क़िस्मत में अगरचे नहीं धन की रौनक़
सब्र-ओ-तस्लीम से हासिल हुई मन की रौनक़
एक दूजे की तरक़्क़ी में करें हम इमदाद
भाई-चारा ही बढ़ाता है वतन की रौनक़
किसको फ़ुर्सत है जो देखे, तेरी सीरत का जमाल
हर तरफ़ जल्वा-नुमा अब है बदन की रौनक़
मुश्किलें कितनी भी पेश आएं तेरी राहों में
जीत की शक्ल में चमकेगी जतन की रौनक़
ये परखते हैं ग़ज़लगो के तख़य्युल की उड़ान
सामईन अस्ल में हैं बज़्म-ए-सुख़न की…
Added by दिनेश कुमार on May 17, 2023 at 10:30am — 4 Comments
Added by AMAN SINHA on May 14, 2023 at 8:30am — 1 Comment
माँ का आँचल बाल को, सदा सुरक्षा ढाल
टलता जिसकी छाँव में, आया संकटकाल।१।
*
हीरे, मोती, स्वर्ण का, रख कितना भी तोल
माँ की ममता का नहीं, पास किसी के मोल।२।
*
माँ के आँचल के तले, मिलती ऐसी छाँव
हर्षित होकर नाचता, हर दुखियारा गाँव।३।
*
चाहे मन से हो स्वयं, माँ यूँ बहुत उदास
बच्चों को देती मगर, सदा खुशी की आस।४।
*
अपने सब दुख भूलकर, देती सबको हर्ष
माता जीवन नींव है, माता ही उत्कर्ष।५।
*
रग-रग में माँ के भरे, ममता, करुणा,…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 13, 2023 at 10:10pm — 2 Comments
गुफ़्तगु तो बहुत हैं मगर क्या बात करें,
ग़म ए ज़िंदगी बहुत है, मगर क्या बात करें।
कहते हैं दुःख बांटने से कम हो जाता है ,
मगर शब्द ही मुंह से न निकलें , फिर क्या बात करें।
ज़िंदगी ने सिखाया कि रोना नहीं है ,
मगर अश्क़ ही न थम पाएं , फिर क्या बात करें।
आप उनकी ख़ातिर मर-मर के जिये हैं ,
वो फिर भी न समझ पाएं , फिर क्या बात करें।
है बड़ी कुंद सी मेरी ये ज़िन्दगी ,
झूठे ही मुस्कुराये ,फिर क्या बात करें।
नाहक़ ही उन्हें कोई कुछ भी ना बताये,…
Added by Sudhir Thakur on May 12, 2023 at 12:20pm — 1 Comment
धूल में खेले हुए, कितने ज़माने हो गए।
ये पता ही ना चला, कब हम सयाने हो गए।।
अब मुहल्ले में नई, दास्तान हैं बनने लगीं।
इश्क़ के किस्से सभी मेरे, पुराने हो गए।।
शब्द कुछ यूँ ही पिरोकर, इक बहर में रख लिए।
आपके होंठों से…
ContinueAdded by प्रशांत दीक्षित 'प्रशांत' on May 10, 2023 at 10:19pm — 5 Comments
बाहर तपती धूप है , हवा चले , ले रेत
मनुज न फिर भी चेतता,होता जीव अचेत
भीषण बाढ़ें कर रहीं घर संग फसल तबाह
मेहनतकश किसान का,किस विधि हो निर्वाह?
शब्दों कर्मों में नहीं दिखता सामंजस्य
धरती जो है उर्वरा, कहते ऊसर व्यर्थ
उस पर वह बनवा रहे सुखद, मनोरम 'स्यूट'
बिल्डर , माननीय मिल,जमकर करते लूट
अभिभाषण में कह रहे पर्यावरण बचाव
कटवाएँ खुद तरु,विटप, देते नित्य सुझाव
कथनी करनी में बड़ा अन्तर…
ContinueAdded by Usha Awasthi on May 9, 2023 at 4:00pm — 1 Comment
मेरी खूबसूरती श्राप है
मेरे पूर्व जन्म का पाप है
जितनों को मैंने छला होगा
ये उन सबका अभिशाप है
घर से निकल ना पाऊँ मैं
रास्ते पर चल ना पाऊँ मैं
कपड़े गहनों की बात हीं…
ContinueAdded by AMAN SINHA on May 7, 2023 at 6:39am — 1 Comment
दोहा पंचक
विषय : संगत
संगत सच्चे मित्र की, उन्नत करे चरित्र ।
ऐसे मित्रों के सदा, पूजे जाते चित्र ।।
ओछी संगत के सदा, ओछे होते रंग ।
कटे सदा फिर जिंदगी, बदनामी के संग ।।
अच्छे बुरे हर कर्म का, संगत है आधार ।
संगत के अनुरूप ही, जीव करे व्यवहार ।।
कहाँ निभा है आज तक, केर बेर का संग ।
संगत सज्जन की सदा, मन में भरे उमंग ।।
भला बुरा हर आचरण , संगत के आधीन ।
जैसी संगत जीव की, वैसी बजती बीन…
Added by Sushil Sarna on May 4, 2023 at 1:51pm — 4 Comments
मैं जिया हूँ दो दफा और दो दफा हीं मैं मरा हूँ
पर अधूरी ख्वाहिशो संग हर दफा हीं मैं रहा हूँ
चाह मेरी जो भी थी वो मेरे पास थी सदा
पर मेरे पहुँच से देखो दूर थी वो सर्वदा
राह जो चुनी थी मैंने पूरी तरह सपाट थी
पर मेरे लिए हमेशा बंद उसकी कपाट थी
मैंने जो गढ़ी इमारत दीवार जो बनाई थी
उसकी नींव में हमेशा हो रही खुदाई थी
मैं चला था साथ जिसके मंज़िलों के प्यास में
वो रहा था पास मेरे किसी दूसरे के आस में
साथ…
ContinueAdded by AMAN SINHA on May 1, 2023 at 5:30am — 2 Comments
थकन भले ही देह में, किन्तु न माने हार
स्वर्ग श्रम से नित करे, वह नीरस संसार।१।
*
लहू देह से बन बहे, जिसके पलपल स्वेद
जग में बाँटे हर्ष जो, सब से लेकर खेद।२।
*
कर्मलीन जो हर समय, दिवस रात्रि में जाग
जगने देते पर नहीं, शोषक उस का भाग।३।
*
श्रम से उस के हो गये, चन्द लोग धनवान
जिसकी हालत को कहे, जग दोषी भगवान।४।
*
हिस्से में ले जी रहा, भले भूख मजदूर
गाली, लाठी, गोलियाँ, मिलें उसे भरपूर।५।
*
गुजर किया मजदूर ने,…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 30, 2023 at 11:50am — 2 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
*
बातों में सिर्फ देश का उद्धार हो रहा
बाँकी स्वयं के वास्ते व्यापार हो रहा।१।
*
चमकेगी उनकी और सियासत पता उन्हें
बेवश युवा यहाँ का जो मिस्मार हो रहा।२।
*
कीमत बढ़े ही जा रही हर एक चीज की
निर्धन का जीना रोज ही दुश्वार हो रहा।३।
*
कुर्सी पे जब से बैठे हैं ईमानदार ढब
नेता वतन का और भी मक्कार हो रहा।४।
*
आँधी चली है देश में कैसी विकास की
लाचार अब तो और भी लाचार हो रहा।५।
*…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 28, 2023 at 9:55pm — 2 Comments
उषा अवस्थी
क्षमाशीलता प्रेम की नदी बहे जिस गाँव
जिसको जो भी चाहिए, मिले वहीं उस ठाँव
करुणा औ वैराग्य का जिसमें जगा विवेक
जन्म उसी का इस धरा पर सार्थक,नि:शेष
जीवन अभिनय की विधा,चले श्रॄंखलाबद्ध
इच्छाओं , आशाओं की उलझन से सन्नद्ध
जिसने तोड़ी यह कड़ी , हुआ सत्य,उन्मुक्त
पार सभी सीमाओं से जाग्रत ,शुद्ध , प्रबुद्ध
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on April 28, 2023 at 10:00am — 1 Comment
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