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ग़ज़ल - मुझे ग़ैरों में शामिल कर चुका है

2122 2122 2122

1

वो ज़रा-सा सिरफ़िरा कुछ मनचला है

जो महब्बत के सफ़र पर चल पड़ा है

2

मेरे दिल ने जो कहा मैंने किया है

काम फिर चाहे वो अच्छा या बुरा है

3

अक़्स आँखों में हमारी जो छिपा है

इस जहाँ के सबसे प्यारे शख़्स का है

4

है महब्बत एक चिंगारी कुछ ऐसी

दिल लगाने वाला ही इसमें जला है

5

बाद मुद्दत के मिला उससे तो जाना

वो मुझे ग़ैरों में शामिल कर चुका है 

6

कुछ कहे बिन और कुछ पूछे बिना ही 

मेरे दिल पर नाम उसने लिख लिया है

7

क्यों नहीं बेख़ौफ़ हो कर मैं बढ़ूँ जब

हाथ थामे साथ जब चलता ख़ुदा है 

दे रहा जब साथ हर इक पल ख़ुदा है

8

वक़्त से "निर्मल" यही सीखा है मैंने

सच हमेशा आख़िरीदम तक लड़ा है

मौलिक व अप्रकाशित 

रचना निर्मल

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Comment by Rachna Bhatia on May 29, 2023 at 1:18pm

आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी नमस्कार। भाई हौसला बढ़ाने के लिए हार्दिक धन्यवाद।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 28, 2023 at 10:51pm

आ. रचना बहन, सादर अभिवादन। सुन्दर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।

Comment by Rachna Bhatia on May 21, 2023 at 11:08am

आदरणीय समर कबीर सर् सादर नमस्कार।सर् ग़ज़ल तक आने व इस्लाह देने के लिए आपका बेहद बेहद शुक्रिय:।

Comment by Samar kabeer on May 20, 2023 at 11:48am

मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल कही आपने, बधाई स्वीकार करें ।

'अक़्स आँखों में हमारी जो छिपा है'

इस मिसरे में 'अक़्स' को "अक्स" कर लें ।

Comment by Rachna Bhatia on May 17, 2023 at 5:19pm

आदरणीय नीलेश शेवगांवकर जी नमस्कार। आदरणीय 7 शे'र के सानी पर अपनी राय देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। आदरणीय अशोक गोयल जी ने सहीह टोका था ।ऊला में कुछ लिखना रह गया था। मुझसे ग़लती यह हुई कि उनको कमेंट का उत्तर देने से  पहले मैंने ग़ज़ल में सुधार कर दिया जिससे ग़ज़ल मंच से हटकर एप्रूवल में चली गई और मैं समय रहते जवाब नहीं दे पाई।आगे से ध्यान रखूँगी। सादर।

Comment by Rachna Bhatia on May 17, 2023 at 5:14pm

आदरणीय अशोक गोयल जी हौसला बढ़ाने के लिए हार्दिक धन्यवाद। आपने ठीक कहा था कि 4मिसरा बेबह्र था। ठीक करके आपको दिखाना चाहा था तो देखा ग़ज़ल एप्रूवल के लिए चली गई। इसलिए कमेंट नहीं कर पाई। ग़लती इंगित करने व हौसला बढ़ाने के लिए कोटिश आभार।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 17, 2023 at 4:13pm

आ. रचना जी,

अच्छी ग़ज़ल हुई है. बधाई स्वीकार करें ..
7 th शेर में तीन मिसरे हो गए हैं.. कोई एक सानी रख लें .. मुझे दे रहा पसंद आ रहा है ...
आ. अशोक सर,
4 थे शेर में कुछ ऐसी को अलिफ़-वस्ल के साथ कुछैसी पढ़ा है जो ठीक ही प्रतीत हो रहा है. 
कोई और बारीक बात हो तो मार्गदर्शन करें..
सादर 
पुन: बधाई रचना जी 

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