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पाँच दोहे - संगत

दोहा पंचक
विषय : संगत

संगत सच्चे मित्र की, उन्नत करे चरित्र ।
ऐसे मित्रों के सदा, पूजे जाते चित्र ।।

ओछी संगत के  सदा, ओछे होते रंग ।
कटे सदा फिर जिंदगी, बदनामी के संग ।।

अच्छे बुरे हर कर्म का, संगत है आधार ।
संगत के अनुरूप ही, जीव करे व्यवहार ।।

कहाँ निभा है  आज तक, केर बेर का संग ।
संगत सज्जन की सदा, मन में भरे उमंग ।।

भला बुरा हर आचरण , संगत के आधीन ।
जैसी संगत जीव की, वैसी बजती  बीन ।।

सुशील सरना / 4-5-23

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by Sushil Sarna on May 19, 2023 at 2:17pm
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी ऊर्जावान प्रतिक्रिया का दिल से आभार

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 16, 2023 at 12:50am

आदरणीय सुशील सरना जी, बढ़िया नीति के दोहे. हार्दिक बधाई. सादर 

Comment by Sushil Sarna on May 10, 2023 at 2:52pm
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 8, 2023 at 6:59pm

आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।

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"सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
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