है मुश्किल आई बड़ी , सारी दुनिया त्रस्त
मिल कर साथ खड़े रहें , कहता है यह वक्त
परमपिता का न्याय तो सबके लिए समान
अरबों के मालिक भले हों कोई श्रीमान
ईश्वर पर विश्वास का व्यर्थ मुलम्मा ओढ़
कर ना भ्रष्टाचार तू , जीवन यह अनमोल
प्रकृति हमें समझा रही , पर हित लें संकल्प
अन्य बचें तब हम बचें , दूजा नहीं विकल्प
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on March 28, 2020 at 5:30pm — 4 Comments
Added by Dr Vandana Misra on March 28, 2020 at 5:19pm — 1 Comment
(2122 1122 1122 22 /112 )
बोल उठी सच हैं लकीरें तेरी पेशानी की
इस जवानी ने बहुत जिस्म की मेहमानी की
**
क्या दिया कोई किसी अपने को धोका तूने
वज्ह आख़िर तो कोई होगी पशेमानी की
**
वक़्त का पहिया लगातार चले मर्ज़ी से
फ़िक्र उसको नहीं दुनिया की परेशानी की
**
आब जिस रूप में हो उसकी बशर है क़ीमत…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 27, 2020 at 11:00pm — 4 Comments
गांव मुहल्लों के लोग कोरोना के कहर के भय से मुक्त अब राहती राशन की आस में खुश हैं।मुखिया, सरपंच और गांव के अगहरिया लोगों के सभी लोग राशन कार्ड धारी हैं ही,लाल कार्ड वाले भी हो गए हैं।भले ही साधन संपन्न हों,तो क्या हुआ?एक बार कुछ ले देकर नाम शामिल हो गए,तो फिर चांदी ही चांदी है।मुफ्त का माल खाते रहिए।पूछता ही कौन है? वातावरण इसी मुआफिक बना हुआ है।कल्लू खेतिहर की बीवी बगल के घर आई है।
" कल अनाज लेने जाना होगा", कल्लू की बहुरिया इतराती हुई बोली।
" कहा से?"अनजान बनती हुई मास्टर भोला…
Added by Manan Kumar singh on March 27, 2020 at 7:06pm — 2 Comments
ऐ पागल पथिक ! ठहरो जरा ,
रुको जरा , सांस लो तनिक ,
सम्भलो जरा I
सब कुछ पाने की चाह में ,
कुछ टूट गया उस आशियाने में,
कुछ छूट गया उस हसीं फ़सानें में ,
ठहरों, रुको, उसे सवारों, उसे खोजो जरा I
रुको जरा ........
घर पर नन्हों की आस में ,
और बुजुर्गों की लम्बी प्यास में ,
छूटे किसी साज और रियाज़ में ,
वक्त की चीनी घोलो जरा, कोई सुर ताल छेड़ो जरा I
रुको जरा ........
लूडो की गोटियाँ खोजो ,
शतरंज की बिसात बिछाओ जरा ,
कैरम की धूल…
Added by Dr. Geeta Chaudhary on March 27, 2020 at 3:32pm — 2 Comments
कोई भी भाषा हो , लेकिन
हिन्दी सी भला मिठास कहाँ ?
जो दिल से भाव निकलते हैं
वह कोमल सा अहसास कहाँ ?
है नर्तन मधुर तरंगों सा
अपना ' प्रणाम ' अन्यान्य कहाँ ?
जिससे झंकृत हृद - तार मृदुल
वह सुन्दरता , उल्लास कहाँ
जब बच्चा ' अम्मा , कहकर के
जा , माँ के गले लिपटता है
इस नैसर्गिक उद्बोधन में
अद्भुत आनन्द , हुलास कहाँ ?
कोई भी भाषा हो , लेकिन
हिन्दी सी भला मिठास कहाँ…
ContinueAdded by Usha Awasthi on March 27, 2020 at 9:33am — 10 Comments
पंख कटे पंछी हुए ,सीमित हुयी उड़ान
सर पे अम्बर था जहाँ, छत है गगन समान
सारी दुनिया सिमट कर कमरे में है कैद
घर के बाहर है पुलिस, खड़ी हुई मुश्तैद
जिनकी शादी ना हुयी , उनकी मानो खैर
और हुयी जिनकी न लें, घर वाली से बैर
घर के कामो में लगें, हर विपदा लें टाल
साँप छुछूंदर गति न हो, करफ्यू या भूचाल
भागवान से लड़ नहीं, बात ये मेरी मान
भागवान के केस में, चुप रहते भगवान
प्रथम दिवस आखिर कटा, साँसों में थे…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on March 26, 2020 at 7:54pm — 2 Comments
Added by Bhupender singh ranawat on March 26, 2020 at 7:48pm — 1 Comment
हज़ज मुसम्मन महज़ूफ़
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन
1222 / 1222 / 1222 / 122
अभी भी है तुम्हें उस बेवफ़ा से प्यार? जी हाँ
निभाने को ये ग़म ता-उम्र हो तय्यार? जी हाँ [1]
उसे देखे बिना इक पल नहीं था चैन दिल को
उसे फिर देखना चाहोगे तुम इक बार? जी हाँ [2]
सिवा ज़िल्लत मिला कुछ भी नहीं कूचे से उसके
अभी भी क्या तुम्हें जाना है कू-ए-यार? जी हाँ [3]
पता तो है तुम्हें सर माँगती है ये मुहब्बत
तो क्या जाओगे हँसते हँसते…
Added by रवि भसीन 'शाहिद' on March 26, 2020 at 3:38pm — 5 Comments
कोरोना का संक्रमण सारे देश , जहान
है दुस्साध्य परिस्थिति , मुश्किल में है जान
इस संकट की घड़ी में हमको रहना एक
दृढ़ संकल्पित हों खड़े , भुला सभी मतभेद
सर्व हिताय खड़े हुए डा0 नर्स तमाम
पुलिस महकमे के लिए है आराम हराम
नित सफाई कर्मी करें बिना शिकन के काम
इनके सेवा भाव को शत , शत मेरा प्रणाम
आई है , टल जाएगी , यह जो बड़ी विपत्ति
अनुशासित घर में रहें बिना किसी आपत्ति
सब निरोग , सब हों सुखी , करना यही…
ContinueAdded by Usha Awasthi on March 25, 2020 at 5:32pm — 2 Comments
(1222 1222 1222 1222 )
ज़रा सोचें अगर इंसान सब लोहा-बदन होते
यक़ीनन फिर क़ज़ा आने पे पत्थर के क़फ़न होते
**
निज़ामत ग़ौर करती गर ग़रीबों की तरक़्क़ी पर
वतन में अब तलक भी लोग क्या नंगे बदन होते ?
**
फ़िरंगी की अगर हम नक़्ल से परहेज़ कर लेते
नई पीढ़ी के फ़रसूदा भला क्या पैरहन होते ?
**
जूँ लुटती आज है लुटती इसी मानन्द गर क़ुदरत
तो क्या दरिया शजर बचते कहीं पर कोई बन होते ?
**
अगर इन्सां न मज़हब और फिरकों में बँटा…
ContinueAdded by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 25, 2020 at 5:00pm — 3 Comments
Added by Bhupender singh ranawat on March 25, 2020 at 2:11pm — 1 Comment
Added by Dr Ashutosh Mishra on March 25, 2020 at 1:43am — 3 Comments
कोरोनामय जग हुआ, फीका पड़ा बसन्त
माँगे खुद की खैर अब, राजा, रंक, महन्त।१।
**
जन्मा चाहे चीन में, लाये अपने लोग
जिससे सारे देश में, फैल रहा यह रोग।२।
**
विकट घड़ी में आपदा, आयी सबके द्वार
घर के बाहर आ मगर, करो नहीं सत्कार।३।
**
घर में बैठो चन्द दिन, ढककर खिड़की द्वार
कोरोना पर वार को, यही सफल हथियार।४।
**
आज चिकित्सक का कहा, थोड़ा मानव मान
घर में चुपके बैठ कर, होगा रोग निदान।५।
**
करो नमस्ते दूर से , नहीं मिलाओ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 24, 2020 at 8:04pm — 2 Comments
प्रणय-परीक्षा
सुना है कुछ ऐसा केवल
स्वप्न-लोक में
या परियों की कहानी में होता है
सात समुद्र पार से आता है
घोड़े पर सवार
सात युगों का प्यार
पर हवा-सी झूमती
शैतानी-भरी हँसी हँसती
भरे आँखों में खुमारी की लालिमा
ऐसी गुड़िया से मिलना
मेरे जीवन के रंग-मंच पर
यह कोई सपना नहीं था
काट रही थी कब से मुझको
समय की तेज़ धार
मिला हवा की लहर-सा…
ContinueAdded by vijay nikore on March 23, 2020 at 12:30pm — 2 Comments
एक ताज़ा गीत
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क्यों चलते औरों के पथ पर
स्वयं बनाओ अपनी राहें |
**
माँ की उँगली थाम बहुत तुम
सीख गए पाँवोँ पर चलना |
लेकिन अब काँटों के पथ पर
खुद ही गिरना और सँभलना |
जीवन-रण से बचना मुश्किल
लड़कर करनी जीत सुनिश्चित,
भाग नहीं सकता है कोई
मित्र भागना खुद को छलना |
तुम अपने जीवन के नायक
कोई काम करो अब ऐसा,
जिससे तुम पर दुनिया भर के
सब लोगों की टिके निगाहें…
ContinueAdded by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 23, 2020 at 12:00am — 2 Comments
जीवन का कर्फ्यू
रोजमर्रा की तरह टहलते हुये रामलाल उद्यान में गोपाल से मिला तो उसके चेहरे की झाईयां से झलकती खुशी कुछ और ही बयां कर रही थी।इससे पहले मैं कुछ पूछता कि उसने कहा, 'यार,कल जैसा दिन गुजारे जमाना हो गया।'
'पर यार कल तो कर्फ्यू लगा था।न किसी से मिलना-जुलना हुआ।कितना बोरियत भरा दिन था?'
'तेरे लिए था।पर इसने मेरी जिन्दगी के कर्फ्यू को हटा दिया।'
'कुछ समझा नही?'प्रश्न भरी निगाह से रामलाल ने गोपाल की तरफ देखकर कहा।
गोपाल ने पास पङी बेंच पर उससे बैठने का इशारा…
Added by babitagupta on March 22, 2020 at 11:33pm — 2 Comments
ख़ुद ही ख़ुद को निहारते हैं हम
आरती ख़ुद उतारते हैं हम
फिर भी वैसे के वैसे रहते हैं
ख़ुद को कितना सँवारते हैं हम
दूसरों का मजाक करते हैं
ख़ुद की शेखी बघारते हैं हम
सिर्फ़ अपनी किसी जरूरत में
दूसरों को पुकारते हैं हम
डाल कर दूसरों में अपनी कमी
दूसरों को विचारते हैं हम
जीतने से ज़ियादा आये मज़ा
जब महब्बत में हारते हैं हम
इस खुशी…
ContinueAdded by सूबे सिंह सुजान on March 22, 2020 at 2:02pm — 6 Comments
एक गीत
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बाहर के डर से लड़ लेंगे
भीतर का डर कैसे भागे |
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बचपन से देखा है हमने
अक्सर खूब डराया जाता |
दुःख यही है अपनों द्वारा
ऐसा क़दम उठाया जाता |
छोटी छोटी गलती पर भी
बंद किया जाता कमरे में,
फिर शाला में अध्यापक का
डण्डा हमें दिखाया जाता |
एक बात है समता का यह
लागू रहता नियम सभी पर,
निर्धन या धनवान सभी के
बच्चे रहते सदा…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 21, 2020 at 11:30am — 4 Comments
एक अवसर सा मानो हाथ आया जबरन
Added by amita tiwari on March 20, 2020 at 7:00pm — 1 Comment
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