एक ताज़ा गीत
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क्यों चलते औरों के पथ पर
स्वयं बनाओ अपनी राहें |
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माँ की उँगली थाम बहुत तुम
सीख गए पाँवोँ पर चलना |
लेकिन अब काँटों के पथ पर
खुद ही गिरना और सँभलना |
जीवन-रण से बचना मुश्किल
लड़कर करनी जीत सुनिश्चित,
भाग नहीं सकता है कोई
मित्र भागना खुद को छलना |
तुम अपने जीवन के नायक
कोई काम करो अब ऐसा,
जिससे तुम पर दुनिया भर के
सब लोगों की टिके निगाहें |
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क्यों चलते औरों के पथ पर
स्वयं बनाओ अपनी राहें |
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अपनी राहों पर चलने में
कुछ भटकावों का भी सहरा |
और साथ में थोड़ा रहता
राह भटकने का भी ख़तरा |
इसी लिए यह बहुत ज़रूरी
राह सुनिश्चित करें समझ कर,
सदा आचरण रखना निर्मल
और जीभ पर रहे शर्करा |
वर्ना ऐसा भी संभव है
चालें सब पड़ जाएँ उल्टी,
और ज़िंदगी भर की खातिर
मित्र गले पड़ जाएँ आहें |
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क्यों चलते औरों के पथ पर
स्वयं बनाओ अपनी राहें |
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भला लकीरों पर चलने से
नूतन पथ किसने पाया है?
सच में उसने केवल अपना
जग में वक़्त किया ज़ाया है |
अब तक की तारीख़ बताती
उसने ही इतिहास बनाया,
काम लीक से हटकर करना
जब जब भी जिसको भाया है |
याद रहे उगते सूरज को
लोग सदा पूजा करते हैं,
और सफल लोगों से मिलता
नित्य जगत फैलाकर बाहें |
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क्यों चलते औरों के पथ पर
स्वयं बनाओ अपनी राहें |
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गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
सादर आभार आदरणीय Samar kabeer साहेब इस उत्साहवर्धन के लिए
जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब, अच्छा गीत लिखा आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
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