जब नहीं था
समय
तब तुम घूमती थी
और मंडराती थी
हमारे इर्द-गिर्द
करती थी परिक्रमा
और मैं देता था झिडक
अब मैं
हूँ घर पर मुसलसल
साथ तुम भी हो
व्यस्तता भी अब नहीं कोई
कितु मेरे पास तुम आती नहीं
परिक्रमा तो दूर की है बात
ढंग से मुसक्याती नहीं
नहीं होता
यकीं इस बदलाव पर
नहीं आ सकतीं
किसी बहकावे में तुम
और फिर अफवाह की भी बात क्या…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 10, 2020 at 1:51pm — 2 Comments
असाधारण सवाल
यह असाधारण नहीं है क्या
कि डूबती संध्या में
ज़िन्दगी को राह में रोक कर
हार कर, रुक कर
पूछना उससे
मानव-मुक्ति के साधन
या पथहीन दिशा की परिभाषा
असाधारण यह भी नहीं है कि
ज़िन्दगी के पाँच-एक वर्ष छिपाते
भीगते-से लोचन में अभी भी हो अवशेष
नूतन आशा का संचार
चिर-साध हो जीवन की
सच्चे स्नेह की सुकुमार अभिलाषा
पर असाधारण है,…
ContinueAdded by vijay nikore on April 10, 2020 at 5:00am — 2 Comments
कोरोना के चक्र की, बड़ी वक्र है चाल।
लापरवाही से बने, साँसों का ये काल।।
निज सदन को मानिए, अपनी जीवन ढाल।
घर से बाहर है खड़ा ,संकट बड़ा विशाल।।
मिलकर देनी है हमें, कोरोना को मात।
काल विभूषित रात की, करनी है प्रभात।।
निज स्वार्थ को छोड़कर, करते जो उपकार।
कोरोना की जंग के ,वो सच्चे किरदार।।
हाथ जोड़ कर दूर से, कीजिये नमस्कार।
हर किसी पर आपका, होगा ये उपकार।।
सुशील सरना
मौलिक एवं…
Added by Sushil Sarna on April 9, 2020 at 8:00pm — 2 Comments
संस्कार - लघुकथा -
"रोहन यह क्या हो रहा है सुबह सुबह?"
"भगवान ने इतनी बड़ी बड़ी आँखें आपको किसलिये दी हैं?"
रोहन का ऐसा बेतुका उत्तर सुनकर मीना का दिमाग गर्म हो गया। उसने आव देखा न ताव देखा तड़ातड़ दो तीन तमाचे धर दिये रोहन के मुँह पर।सात साल का रोहन माँ से इस तरह की प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं कर रहा था।
वह फ़ट पड़ा और जोर जोर से दहाड़ मार कर रोने लगा। उसका बाप दौड़ा दौड़ा आया।
रोहन को गोद में उठाकर पूछा,"क्या हुआ?"
"माँ ने मारा।"
रोहन के पिता ने मीना…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on April 9, 2020 at 10:47am — 4 Comments
(1222 1222 122 )
सलाखों में क़फ़स के गर लगा ज़र
रहेंगे क्या उसी में ज़िंदगी भर ?
**
किसी की ज़िंदगी क्या ज़िंदगी है
अगर ता-उम्र उसका ख़म रहे सर ?
**
तुम्हारी ज़िंदगी से कौन खेले
किसानों ख़ुदक़ुशी की रह दिखा कर ?
**
सियासत के मिलेंगे ख़ूब मौक़े
ज़रा हालात को होने दो बेहतर
**
तलातुम आजकल ख़बरों के आते
भरोसा कीजिए मत हर ख़बर पर
**
महामारी सुबूत अब दे…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 9, 2020 at 8:00am — No Comments
2×15
एक ताज़ा ग़ज़ल
मैं अक्सर पूछा करता हूँ कमरे की दीवारों से,
रातें कैसे दिखती होंगी अब तेरे चौबारों से.
सौंप के मेरे हाथों में ये दुनिया भर का पागलपन,
चुपके चुपके झाँक रहा है वो मेरे अशआरों से.
नफरत ,धोखा ,झूठे वादें और सियासत के सिक्के,
कितने लोगों को लूटा है तूने इन हथियारों से.
प्यार, सियासत, धोखेबाजी और विधाता की माया,
मानव जीवन घिरा हुआ है दुनिया में इन चारों से.
घोर अंधेरा करके घर में…
ContinueAdded by मनोज अहसास on April 8, 2020 at 12:04am — No Comments
चाहते हो तुम मिटाना नफ़रतों का गर अँधेरा
हाथ में ले लो किताबें जल्द आएगा सवेरा
है जहालत का कुआँ गहरा बहुत मत डूबना तू
लोग हों खुशहाल गुरबत ख़त्म हो ये काम तेरा
ज़ह्र भी अमृत बने जो प्यार की ठंढी छुअन हो
नाचती नागिन है बेसुध जब सुनाता धुन सपेरा
गुफ़्तगू के चंद लमहों ने बदल दी ज़िंदगी अब
बन गया सूखा शजर फिर से परिन्दों का बसेरा
आग का मेरा बदन मैं आँख में सिमटा धुआँ हूँ
इश्क़ में अब बन गया सुख चैन का ख़ुद मैं…
Added by Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha) on April 7, 2020 at 9:00pm — No Comments
क्षणिकाएँ :
थरथराता रहा
एक अश्क
आँखों की मुंडेर पर
खंडित हुए स्पर्शों की
पुनरावृति की
प्रतीक्षा में
बहुत सहेजा
अंतस के बिम्बों को
अंतर् कंदरा में
जाने
किस बिम्ब के प्रहार से
बह निकला
आँखों के
स्मृति कलश से
गुजरे पलों का सैलाब
तुम्हें
पता ही नहीं चला
तुम जन्मों से
कर रहे हो
वरण
सिर्फ़
मृत्यु का
हर कदम से पहले
हर कदम के बाद
सुशील सरना…
ContinueAdded by Sushil Sarna on April 7, 2020 at 7:23pm — 1 Comment
विश्व आपदा में ईश्वर से प्रार्थना
हे मनुष्यता के पृतिपालक हे प्रति पालक हे मनुष्यता
क्या भूल हुई क्या गलती है अब क्षमा करो हे परमपिता।
अब राह दिखाओ दुनिया को मुश्किल सबकी आसान करो
हे कायनात के संचालक सारे जग का कल्याण करो।
ये कैसी विपदा है भगवन कैसा ये शोर धरा पर है
जो सदियों से जीवित है अब संकट उस परम्परा पर है।
जग त्राहि माम कर बैठा है नेतृत्व विफल है प्राणनाथ
शाखों के परिंदों को अपने इन्द्रियातीत मत कर…
Added by atul kushwah on April 6, 2020 at 10:30pm — No Comments
आज आंखें नम हुईंं तो क्या हुआ
रो न पाए हम कभी अर्सा हुआ
आपबीती क्या सुनाऊंगा उसे
आज भी तो है गला बैठा हुआ
ढूंढता हूँ इक सितारे को यहाँ
दूर तक है आसमां फैला हुआ
क्यों क़रीने से रखें सामान को
घर को रहने दीजिये बिखरा हुआ
नींद पलकों पर कहीं ठहरी हुई
ख़्वाब आंखों में वहीं सहमा हुआ
जी रहा हूँ बस इसी उम्मीद से
लौट आएगा समय बीता हुआ
हादसे ऐसे भी तो होते रहे…
Added by सालिक गणवीर on April 6, 2020 at 8:29pm — 4 Comments
रौशनी दिल में नहीं हो तो ख़तर बनता है,
आग सीने में लगी हो तो शरर बनता है।
जिसको ढाला न गया हो किसी भी साँचे में,
इब्ने आदम यूं ही हरगिज़ न बशर बनता है।
टूट जाते हैं कई रिश्ते ग़लत फ़हमी से,
रंजिशें ख़ुद ही भुला दे जो, बशर बनता है।
बात जो निकली ज़बां से न वो फिर रुकती है,
राज़ हो जाए अ़यां गर, तो ज़ह'र बनता है।
अदबियत जिसको विरासत में ही मिल जाती हो,
तब कहीं जा के 'अ़ली' कोई 'जिगर'…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on April 6, 2020 at 6:26pm — 5 Comments
सुख-दुख में साथ निभाएं अपनों का |
आओ, इक देश बनाएं सपनों का ||
फसलों पर, ना मौसम की मार पड़े |
कृषि हो उन्नत, ना हों परिवार बड़े |
घर-घर नलका, बिजली, शौचालय हो |
गाँव-गाँव रुग्णालय, विद्यालय हो |
तजि कुरीति, संग धरें नव चलनों का |
आओ, इक गांव बसाएं सपनों का ||
जन-जन को, उपयुक्त रोजगार मिले |
जीवन को, सुरभित स्वच्छ बयार मिले |
सुलभ निवास, सुविधाजनक प्रवास हो |
धवल सादगी का बिखरा प्रकाश हो |
फीकी जो करे चमक, नव…
Added by Dharmendra Kumar Yadav on April 6, 2020 at 4:00pm — 4 Comments
अतुकांत कविता : निर्लज्ज
=================
उसने कहा,
मेरे पास गाड़ी है, बंगला है
बैंक बैलेंस है
तुम्हारे पास क्या है ?
मैने कहा,
मेरे पास हैं...
फेसबुकिये दोस्त
जो नियमित भेजते रहते हैं
गुड मॉर्निंग, गुड इवनिंग,
गुड नाईट, स्वीट ड्रीम वाले संदेश
उसने कहा,
मूर्ख हो तुम
निपट अज्ञानी हो
मैंने कहा,
हाँ, हो सकता है मैं हूँ
किंतु...
सक्रिय हो जाती है छठी इंद्रीय
जब…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 6, 2020 at 12:30pm — 2 Comments
(1212 1122 1212 22 /112 )
जुबान इतनी तेरी दोस्त आतिशीं मत रख
कि जिसमें मार* पले ऐसी आस्तीं मत रख (*सॉंप )
**
मैं तज़र्बें की बिना पर ये बात कहता हूँ
बहुत दिनों के लिए कोई दिलनशीं मत रख
**
सजाने ज़ुल्फ़ को कुछ देर यासमीं काफ़ी
तवील वक़्त की ख़ातिर तू यासमीं*मत रख
**
फिसलते दस्त हैं जब हमकिनार करता हूँ
क़बा पहन के नई यार रेशमीं मत रख
**…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 5, 2020 at 5:30pm — 2 Comments
मीठे दोहे :
चौखट से बाहर नहीं, रखना अपने पाँव।
घर के अंदर स्वर्ग से, सुंदर अपना गाँव।।
घर के अंदर स्वर्ग से, सुंदर अपना गाँव।
मीठे रिश्तों की यहाँ, मीठी लगती छाँव।।
मीठे रिश्तों की यहां,मीठी लगती छाँव।
बार-बार मिलती नहीं,ऐसी मीठी ठाँव।।
बार बार मिलती नहीं, ऐसी मीठी ठाँव।
अंतस की दूरी मिटे, नफ़रत हारे दाँव।।
अंतस की दूरी मिटे, नफ़रत हारे दाँव।
घर के अंदर स्वर्ग से, सुंदर अपना…
Added by Sushil Sarna on April 4, 2020 at 4:54pm — 4 Comments
मृदु-भाव
प्रात की शीतल शान्त वेला
हवा की लहर-सी तुम्हारी मेरे प्रति
मृदु मोह-ममता
मैं बैठा सोचता मेरे अन्तर में अटका
कोलाहल था बहुत
क्यूँ किस वातायन से किस द्वार से कैसे
चुपके से आकर मेरे जीवन में
घोल दिए सरलता से तुमने मुझमें
प्रणय के पावन गीत
किसी सपने की मधुरिमा-सी
सच, प्यारी है मुझको तुम्हारी यह प्रीत
नए प्यार के नवजात गीत की नई प्रात
तुम आई,…
ContinueAdded by vijay nikore on April 4, 2020 at 4:31pm — 4 Comments
(1212 1122 1212 22 /112 )
ग़रीब हूँ मैं मगर शौक इक नवाबी है
ख़िज़ाँ की उम्र में भी दिल मेरा गुलाबी है
**
अधूरा काम कोई छोड़ना नहीं आता
कि मुझ में बचपने से एक ये ख़राबी है
**
मेरे लिए ही सनम क्यों हया का है…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 4, 2020 at 12:30pm — 8 Comments
नहीं हमारी नहीं तुम्हारी
अखिल विश्व में महा-बिमारी
आई पैर पसार
भैया मत छोड़ो घर-द्वार
भैया मत छोड़ो घर-द्वार
निकल चीन से पूर्ण जगत में डाल दिया है डेरा
यह विषाणु से जनित बिमारी, खतरनाक है घेरा
रहो घरों में रहो अकेले
नहीं लगाओ जमघट मेले
कहती है सरकार
भैया मत छोड़ो घर-द्वार
नहीं आम यह सर्दी-खाँसी इसका नाम कोरोना
नहीं दवाई इसकी, होने पर केवल है रोना
इसीलिए मत घर से निकलो
धीर धरो पतझड़ से निकलो
मानो…
Added by आशीष यादव on April 4, 2020 at 11:33am — 2 Comments
1222 1222 122
यूँ तुझपे हक़ मेरा कुछ भी नहीं है
मगर दिल भूलता कुछ भी नहीं है
तेरी बातें भी सारी याद है पर
कहा तेरा हुआ कुछ भी नहीं है
तेरी आंखों में है गर कोई मंजिल
तो फिर ये रास्ता कुछ भी नहीं है
ग़ज़ल अपनी कलम से खुद ही निकली
तसल्ली से लिखा कुछ भी नहीं है
मेरा अफसाना जो तुम पढ़ रहे हो
ये कुछ लायक है या कुछ भी नहीं है
नज़र जिसमें तेरी…
ContinueAdded by मनोज अहसास on April 4, 2020 at 12:30am — 2 Comments
ग़ज़ल
1222 1222 1222 1222
कोई कातिल सुना जो शहर में है बेजुबाँ आया
किसी भी भीड़ में छुप कर मिटाने गुलिस्तां आया
धरा रह जायेगा इन्सान का हथियार हर कोई
हरा सकता नहीं कोई वह होकर खुशगुमां आया
घरों में कैद होकर रह गए हैं सब के सब इंसाँ
करें कैसे मदद अपनों की कैसा इम्तिहाँ आया
अवाम अपने को आफत से बचाने में हुकूमत को
अडंगा दीं लगाए कैसा यह दौर-ए-जहाँ आया
अगर महफूज रखना है बला…
ContinueAdded by कंवर करतार on April 3, 2020 at 6:00pm — 6 Comments
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