"लोकतंत्र ख़तरे में है!
कहां
इस राष्ट्र में
या
उस मुल्क में!
या
उन सभी देशों में
जहां वह किसी तरह है!
या जो कि
कठपुतली बन गया है
तथाकथित विकसितों के मायाजाल में,
तकनीकी, वैज्ञानिकी विकास में! या
ब्लैकमेलिंग- व्यवसाय में!
धरातल, स्तंभों से दूर हो कर
खो सा गया है
कहीं आसमान में!
दिवास्वप्नों की आंधियों में,
अजीबोग़रीब अनुसंधानों में!
"इंसानियत ख़तरे में है!
कहां
इस मुल्क में
या
उस राष्ट्र…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on April 21, 2018 at 2:35pm — 14 Comments
Added by Kumar Gourav on April 21, 2018 at 9:15pm — 9 Comments
सोने की बरसात करेगा
सूरज जब इफ़रात करेगा
बादल पानी बरसाएंगे
राजा जब ख़ैरात करेगा
जो पहले भी दोस्त नहीं था
वो तो फिर से घात करेगा
कुर्सी की चाहत में फिर वो
गड़बड़ कुछ हालात करेगा
जो संवेदनशील नहीं वो
फिर घायल जज़्बात करेगा
जो थोड़ा दीवाना है वो
अक्सर हक़ की बात करेगा
नंद कुमार सनमुखानी.
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"मौलिक और अप्रकाशित"
Added by Nand Kumar Sanmukhani on April 23, 2018 at 10:00am — 21 Comments
212 212 212 212
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उससे नज़रें मिलीं हादसा हो गया,
एक पल में यहाँ क्या से क्या हो गया ।
ख़त दिया था जो कासिद ने उसका मुझे,
"बिन अदालत लगे फ़ैसला हो गया" ।
दरमियाँ ही रहा दूर होकर भी गर,
जाने फिर क्यूँ वो मुझसे ख़फ़ा हो गया ।
गर निभाने की फ़ुर्सत नहीं थी उसे,
खुद ही कह देता वो बेवफ़ा हो गया।
दर्द सीने में ऱख राज़ उगला जो वो,
यूँ लगा मैं तो बे-आसरा हो गया…
Added by Harash Mahajan on April 27, 2018 at 7:00pm — 13 Comments
आपने भी तो कहाँ ठीक से जाना मुझ को
खैर जो भी हो, मुहब्बत से निभाना मुझ को.
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जीत कर मुझ से, मुझे जीत नहीं पाओगे
हार कर ख़ुद को है आसान हराना मुझ को.
.
मैं भी लुट जाने को तैयार मिलूँगा हर दम
शर्त इतनी है कि समझें वो ख़ज़ाना मुझ को.
.
आप मिलियेगा नए ढब से मुझे रोज़ अगर
मेरा वादा है न पाओगे पुराना मुझ को.
.
ओढ़ लेना मुझे सर्दी हो अगर रातों में
हो गुलाबी सी अगर ठण्ड, बिछाना मुझ को.
.
मुख़्तसर है ये तमन्ना कि अगर जाँ निकले…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 30, 2018 at 10:42am — 26 Comments
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
मेरी सारी वफ़ा ओबीओ के लिये
काम करता सदा ओबीओ के लिये
दिल यही चाहता है मेरा दोस्तो
जान करदूँ फ़िदा ओबीओ के लिये
आठ क्या,आठ सो साल क़ाइम रहे
है यही इक दुआ ओबीओ के लिये
मेरे दिल में कई साल से दोस्तो
जल रहा इक दिया ओबीओ के लिये…
Added by Samar kabeer on April 2, 2018 at 3:00pm — 40 Comments
ओ बी ओ में हो रहा, उत्सव का आगाज |
आठ वर्ष तक का सफ़र,साक्ष्य बना है आज ||
दूर दृष्टि बागी लिए, खूब बिछया साज |
योगराज के यत्न से, बना खूब सरताज | |
काव्य विधा को सीखते, विद्वजनों…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 2, 2018 at 2:30pm — 27 Comments
फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फेलुन
लोग हैरान थे,रिश्ता सर-ए-महफ़िल बाँधा
उसने जब अपनी रग-ए-जाँ से मेरा दिल बाँधा
हर क़दम राह मलाइक ने दिखाई मुझ को
मैंने जब अज़्म-ए-सफ़र जानिब-ए-मंज़िल बाँधा
जितने हमदर्द थे रोने लगे सुनकर देखो
अपने अशआर में जब मैंने ग़म-ए-दिल बाँधा
जल गये जितने सितारे थे फ़लक पर यारो
अपनी ज़ुल्फ़ों में जब उसने मह-ए-कामिल बाँधा
शुक्र तेरा करें किस मुंह से…
ContinueAdded by Samar kabeer on March 27, 2018 at 12:31pm — 35 Comments
मुतदारिक सालिम मुसम्मन बहर
212 212 212 212
आँख आँसू बहाती रही रात भर
दर्द का गीत गाती रही रात भर
आसमां के तले भाव जलते रहे
बेबसी खिलखिलाती रही रात भर
बाम पे चाँदनी थरथराने लगी
हर ख़ुशी चोट खाती रही रात भर
रूह के ज़ख्म भी आह भरने लगे
आरजू छटपटाती रही रात भर
प्यार की राह में लड़खड़ाये कदम
आशकी कसमसाती रही रात भर
आह भरते हुये राह तकते रहे
राह भी मुँह चिढ़ाती रही रात भर …
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 6, 2018 at 5:30pm — 31 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on November 30, 2017 at 11:42pm — 16 Comments
2122 2122 2122
एक क़तरा था समंदर हो गया हूँ।
मैं समय के साथ बेहतर हो गया हूँ।।
कल तलक अपना समझते थे मुझे जो।
उनकी ख़ातिर आज नश्तर हो गया हूँ।।
मैं बयां करता नहीं हूँ दर्द अपना।
सब समझते हैं कि पत्थर हो गया हूँ।।
ज़िन्दगी में हादसे ऐसे हुए कुछ।
मैं जरा सा तल्ख़ तेवर हो गया हूँ।।
जख़्म दिल के तो नहीं अब तक भरे हैं।
हां मगर पहले से बेहतर हो गया हूँ।।
सुरेन्द्र इंसान
मौलिक व अप्रकाशित
Added by surender insan on December 2, 2017 at 1:00pm — 23 Comments
Added by पंकजोम " प्रेम " on December 3, 2017 at 1:23pm — 15 Comments
२१२२ १२१२ २२
कोंचती है ये धूल कहता है
किस नफ़ासत से फूल कहता है
मख़मली ये लिबास चुभते हैं
रास्ते का बबूल कहता है
जिन्दगी से निबाह करती हूँ
आइना जब क़ुबूल कहता है
अपने दम पे मक़ाम हासिल कर
मुझसे मेरा उसूल कहता है
चाहो मंजिल तो आबले न गिनो
हर कदम पे रसूल कहता है
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by rajesh kumari on November 21, 2017 at 11:46am — 25 Comments
Added by Hariom Shrivastava on November 3, 2017 at 3:23pm — 10 Comments
Added by Ram Awadh VIshwakarma on November 3, 2017 at 10:39pm — 14 Comments
Added by Gajendra shrotriya on November 5, 2017 at 7:00pm — 20 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 5, 2017 at 10:35pm — 6 Comments
Added by Balram Dhakar on November 6, 2017 at 6:32pm — 26 Comments
मृत्यु...
जीवन का वह सत्य
जो सदियों से अटल है
शिला से कहीं अधिक।
मृत्यु पूर्व...
मनुष्य बद होता है
बदनाम होता है
बुरी लगती हैं उसकी बातें
बुरा उसका व्यवहार होता है।
मृत्यु पूर्व...
जीवन होता है
शायद जीवन
नारकीय
यातनीय
उलाहनीय
अवहेलनीय।
मृत्यु पूर्व...
मनुष्य, मनुष्य नहीं होता
हैवान होता है
हैवान, जो हैवानियत की सारी हदें
पार कर देना चाहता…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on October 22, 2017 at 9:33am — 18 Comments
Added by Samar kabeer on October 22, 2017 at 10:56am — 45 Comments
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