(122 122 122 122)
करोगे कहां तक सबब की वज़ाहत
अंधेरों की कब तक करोगे इबादत
यक़ीं रख के सर को झुकाते रहे हो
दिखाते रहे हो ये कैसी शराफ़त
नहीं ठीक है जो तुम्हारी नज़र में
उसी की ही करते रहे हो वकालत
नई प्रेम नदियां बहा दो जहां में
यहां पर दिखाओ ज़रा सी सख़ावत
भले ख्वाब हों पर हक़ीक़त बनेंगे
मिटेगी यहां नफरतों की रिवायत
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- नंद कुमार सनमुखानी
- मौलिक और अप्रकाशित
Posted on May 3, 2018 at 9:00pm — 13 Comments
लोकशाही क़माल है साहिब
लोक में ही बवाल है साहिब
काम इनके कभी नहीं रुकते
कौन इनका दलाल है साहिब
फिर से मिलने लगे हैं झुक झुक के
खेल करने का साल है साहिब
पूछने पर हमेशा कहते हैं
नेक सा ही ख़्याल है साहिब
अनगिनत हैं सवाल आंखों में
दिल में थोड़ा मलाल है साहिब
- -नंद कुमार सनमुखानी
"मौलिक व अप्रकाशित"
Posted on April 23, 2018 at 10:00am — 7 Comments
सोने की बरसात करेगा
सूरज जब इफ़रात करेगा
बादल पानी बरसाएंगे
राजा जब ख़ैरात करेगा
जो पहले भी दोस्त नहीं था
वो तो फिर से घात करेगा
कुर्सी की चाहत में फिर वो
गड़बड़ कुछ हालात करेगा
जो संवेदनशील नहीं वो
फिर घायल जज़्बात करेगा
जो थोड़ा दीवाना है वो
अक्सर हक़ की बात करेगा
नंद कुमार सनमुखानी.
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"मौलिक और अप्रकाशित"
Posted on April 23, 2018 at 10:00am — 21 Comments
ख़ामोश रहें तो भी मुश्किल
कुछ बात कहें तो भी मुश्किल..
जो राज़ छुपे हैं सीने में
खुल जाएं तहें, तो भी मुश्किल..
वादा था किया ख़ुश रहने का
आंसूं जो बहें तो भी मुश्किल..
वो दर्द मुसलसल दें चाहे
हम दर्द सहें तो भी मुश्किल ..
विपरीत बहें हम धारों के
जो साथ बहें तो भी मुश्किल ..
- नंद कुमार सनमुखानी
"मौलिक और अप्रकाशित"
Posted on April 23, 2018 at 10:00am — 11 Comments
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