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Dayaram Methani
  • Male
  • Bhilwara - rajsthan
  • India
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Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
58 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी, आपका टिप्पणी व सुझाव के लिए हार्दिक आभार। एक निवेदन है कि — काम की कोई मानता है क्या — यदि ऐसा करता तो रदीफ बदल जाता। इसलिए गलती हो गई। भविष्य में वाक्य का ध्यान रखने का प्रयास करुंगा। सादर।"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
9 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
" आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
9 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय शुक्ला जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
9 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय प्रेम चंद गुप्ता जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
9 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
9 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय।"
9 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय।"
9 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी, सबसे पहले ग़ज़ल पोस्ट करने व सुंदर ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें।"
9 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"ग़ज़ल 2122 1212 22..इश्क क्या चीज है दुआ क्या हैंहम नहीं जानते अदा क्या है..पूछ मत हाल क्यों छिपाता हूँ दर्दे दिल की बता दवा क्या है..जान जिस पर निसार करता हूँ वो नहीं जानता वफा क्या है..मुफ्त मिलती नसीहतें तो क्याकाम की कोई मानता क्या है..इक परी दिल…"
10 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकार करें। सादर।"
Apr 21
Dayaram Methani replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय प्रतिभा पांडे जी, चित्रानुकूल सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकार करें। सादर।"
Apr 21
Dayaram Methani replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, रोला छंद में सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकार करें। सादर।"
Apr 21
Dayaram Methani replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडे जी, आपकी टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार। आपने जो इंगित किया है उसके लिए भी आभार। दरअसल द्वारे में गलती तो टंकण में हुई होगी और पेट के बारे ध्यान नही रहा। भविष्य में प्रयास रहेगा कि त्रुटि न ​हो। मार्ग दर्शन करते रहें। सादर।"
Apr 21
Dayaram Methani replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। द्वारे में अनुस्वार बिन्दु कैसे लग गया यह तो मैं भी समझ नहीं पा रहा हूँ। खैर गलती तो गलती है, चाहे वो जाने में हो या अनजाने में। इस ओर ध्यान दिलाने के लिए भी आभार।"
Apr 21

Profile Information

Gender
Male
City State
BHILWARA
Native Place
BHILWARA
Profession
journlist and writer
About me
I like to read and write kavita, gazal, short stories and artical.

Dayaram Methani's Blog

गज़ल

गज़ल

2122 2122 2122 212

आजकल हर बात पर लड़ने लगा है आदमी,

क्रोध के साये तले पलने लगा है आदमी।

चाह झूठी शान की अब बढ़ गई है बहुत ही,

इस लिये बेचैन सा रहने लगा है आदमी।

आग हिंसा की बहुत झुलसा रही है देश को,

खूब धोखा दल बदल करने लगा है आदमी।

धन कमाया पर बचाया कुछ नहीं अपने लिये,

अब बुढ़ापे में छटपटाने लगा है आदमी।

जिन्दगी भर झगड़ने से क्या मिला इंसान को,

देख ’’मेठानी‘‘ बहुत रोने लगा है आदमी।

मौलिक…

Continue

Posted on January 30, 2022 at 12:16pm — 2 Comments

ग़ज़ल

2122 2122 2122 2



ज़िन्दगी में हर कदम तेरा सहारा हूँ

नाव हो मझधार तो तेरा किनारा हूँ

तुम भटक जाओ अगर अनजान राहों में

पथ दिखाने को तुम्हें रौशन सितारा हूँ

ज़िन्दगी का खेल खेलो तुम निडरता से

हर सफलता के लिए मैं ही इशारा हूँ

राह जीने की सही तुमको दिखाऊंगा

ज़िन्दगी के सब अनुभवों का पिटारा हूँ

साथ क्यों दूं मैं तुम्हारा सोच मत ऐसा

अंश तुम मेरे पिता मैं ही तुम्हारा हूँ

- दयाराम मेठानी…

Continue

Posted on November 6, 2021 at 10:00pm — 6 Comments

ग़ज़ल

 2122 2122 2122 212

नाव है मझधार में नाविक नशे में चूर है

सांझ है होने लगी मंजिल नज़र से दूर है

संकटों से आदमी क्या देव भी बचते नहीं

वक्त के आगे सभी होते यहां मजबूर है

जिन्दगी की कशमकश में जीना’ जिसको आ गया

यों समझ लो हौसलों से वो बहुत भरपूर है

दोष है अपना समय के साथ चल पाये नहीं

बंद मुट्ठी से फिसलना वक्त का दस्तूर है

हाल ‘‘मेठानी’’ बतायंे क्या किसी को अब यहां

आदमी सुनता नहीं अब हो गया मगरूर…

Continue

Posted on August 27, 2019 at 10:00pm — 2 Comments

गज़ल सीख लो

2122 2122 212

दर्द को दिल में दबाना सीख लो

ज़िन्दगी में मुस्कराना सीख लो

आंख से आंसू बहाना छोड़िये

हर मुसीबत को भगाना सीख लो

ज़िन्दगी है खेल, खेलो शान से

खेल में खुद को जिताना सीख लो

फूल को दुनिया मसल कर फैंकती

खुद को कांटों सा दिखाना सीख लो

छोड़ दें अब गिड़गिड़ाना आप भी

कुछ तो कद अपना बढ़ाना सीख लो

थी जवानी जोश भी था स्वप्न भी

दिन पुराने अब भुलाना सीख लो

कौन…

Continue

Posted on July 4, 2019 at 9:30pm — 8 Comments

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"आदरणीय दयाराम जी सादर नमस्कार। हौसला बढ़ाने हेतु आपका बहुत बहुत शुक्रियः"
3 hours ago

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