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Dayaram Methani
  • Male
  • Bhilwara - rajsthan
  • India
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Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-152
"आदरणीय अमित कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Feb 25
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-152
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, सुंदर गज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
Feb 25
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-152
"आदरणीय अमित जी, सुंदर गज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
Feb 25
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-152
"आदरणीय रिचा यादव जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
Feb 25
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-152
"आदरणीय अजय गुप्ता जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार कीजिये।"
Feb 25
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-152
"आदरणीय रिचा यादव जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।"
Feb 25
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-152
"आदरणीय समर कबीर जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार। प्रयास जारी रखूंगा।"
Feb 25
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-152
"आदरणीय अमित जी, प्रोत्साहन एवं सुझाव के लिए आपका हार्दिक आभार।"
Feb 25
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-152
"आदरणीय अजय गुप्ता जी, प्रोत्साहन के लि हार्दिक आभार।"
Feb 25
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-152
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार कीजिये।"
Feb 25
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-152
"ग़ज़ल झूठ के व्यवहार से वो राजदाँ बनता गयापूछते जब तो सदा ही बेजुबाँ बनता गया जिन्दगी में कौन किसका साथ देता है यहाँहो गये हम भी जुदा जब ख़ामियाँ बनता गया क्या इरादा था कभी हम तो समझ पाये नहींखोट थी कुछ इसलिए तो बदगुमाँ बनता गया दर्द दिल को दे…"
Feb 24
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-148
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।"
Feb 11
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-148
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रदत्त विषय पर सुन्दर गीत हेतु बहुत बहुत बधाई।"
Feb 11
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-148
"छंद मुक्त रचना प्यार का मौसमक्या होता हैये कहाँ होता हैहमने कभी सुना नहींकभी कहीं देखा भी नहींहमने तो देखे हैनफरत के बड़े बड़े बागपेड़ पौधे और उनकी घास। घर घर में तकरार हैवतन का भी बंटाढार हैसारा विश्व नफरत के आगे लाचार है।जो भी मुँह खोलता हैजहर भरे…"
Feb 11
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-151
"आदरणीय रचना भाटिया जी, प्रोत्साहन के ​लिए हार्दिक धन्यवाद।"
Jan 28
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-151
"आदरणीय आशीष यादव जी, प्रोत्साहन के ​लिए हार्दिक आभार।"
Jan 28

Profile Information

Gender
Male
City State
BHILWARA
Native Place
BHILWARA
Profession
journlist and writer
About me
I like to read and write kavita, gazal, short stories and artical.

Dayaram Methani's Blog

गज़ल

गज़ल

2122 2122 2122 212

आजकल हर बात पर लड़ने लगा है आदमी,

क्रोध के साये तले पलने लगा है आदमी।

चाह झूठी शान की अब बढ़ गई है बहुत ही,

इस लिये बेचैन सा रहने लगा है आदमी।

आग हिंसा की बहुत झुलसा रही है देश को,

खूब धोखा दल बदल करने लगा है आदमी।

धन कमाया पर बचाया कुछ नहीं अपने लिये,

अब बुढ़ापे में छटपटाने लगा है आदमी।

जिन्दगी भर झगड़ने से क्या मिला इंसान को,

देख ’’मेठानी‘‘ बहुत रोने लगा है आदमी।

मौलिक…

Continue

Posted on January 30, 2022 at 12:16pm — 2 Comments

ग़ज़ल

2122 2122 2122 2



ज़िन्दगी में हर कदम तेरा सहारा हूँ

नाव हो मझधार तो तेरा किनारा हूँ

तुम भटक जाओ अगर अनजान राहों में

पथ दिखाने को तुम्हें रौशन सितारा हूँ

ज़िन्दगी का खेल खेलो तुम निडरता से

हर सफलता के लिए मैं ही इशारा हूँ

राह जीने की सही तुमको दिखाऊंगा

ज़िन्दगी के सब अनुभवों का पिटारा हूँ

साथ क्यों दूं मैं तुम्हारा सोच मत ऐसा

अंश तुम मेरे पिता मैं ही तुम्हारा हूँ

- दयाराम मेठानी…

Continue

Posted on November 6, 2021 at 10:00pm — 6 Comments

ग़ज़ल

 2122 2122 2122 212

नाव है मझधार में नाविक नशे में चूर है

सांझ है होने लगी मंजिल नज़र से दूर है

संकटों से आदमी क्या देव भी बचते नहीं

वक्त के आगे सभी होते यहां मजबूर है

जिन्दगी की कशमकश में जीना’ जिसको आ गया

यों समझ लो हौसलों से वो बहुत भरपूर है

दोष है अपना समय के साथ चल पाये नहीं

बंद मुट्ठी से फिसलना वक्त का दस्तूर है

हाल ‘‘मेठानी’’ बतायंे क्या किसी को अब यहां

आदमी सुनता नहीं अब हो गया मगरूर…

Continue

Posted on August 27, 2019 at 10:00pm — 2 Comments

गज़ल सीख लो

2122 2122 212

दर्द को दिल में दबाना सीख लो

ज़िन्दगी में मुस्कराना सीख लो

आंख से आंसू बहाना छोड़िये

हर मुसीबत को भगाना सीख लो

ज़िन्दगी है खेल, खेलो शान से

खेल में खुद को जिताना सीख लो

फूल को दुनिया मसल कर फैंकती

खुद को कांटों सा दिखाना सीख लो

छोड़ दें अब गिड़गिड़ाना आप भी

कुछ तो कद अपना बढ़ाना सीख लो

थी जवानी जोश भी था स्वप्न भी

दिन पुराने अब भुलाना सीख लो

कौन…

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Posted on July 4, 2019 at 9:30pm — 8 Comments

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At 10:09pm on May 24, 2019, dandpani nahak said…
आदरणीय दयाराम मेथानि जी आदाब बहुत बहुत शुक्रिया जनाब
 
 
 

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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, क्या यह अब ठीक है ? जीवटता जो लिए कुटज सी, है वही समय से जीता ।हठी न जिसकी रही…"
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
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Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय."
Sunday

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Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर"
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