आशाओं , आकांक्षाओं की
जीवन की और प्रतिभाओं की
इस लोकतन्त्र के मन्दिर में
बलि नित्य चढ़ाई जाती है
कोरोना की महमारी में
त्रासद स्थिति, लाचारी में
लाशों पर राजनीति करके
जनता भरमाई जाती है
जिस समय मुसीबत ने घेरा
चँहु ओर काल का है डेरा
वीभत्स घड़ी में आन्दोलन
रैली करवाई जाती है
नज़रें गड़ाए सब वोटों पर
टिकती निगाह बस नोटों पर
शासन में भागीदारी की
कामना जगाई जाती…
ContinueAdded by Usha Awasthi on April 24, 2021 at 9:47am — 4 Comments
याद तुम्हारी क्या बतलाऊँ
कैसे कैसे आ रही है
चलने का अंदाज़ ठुमक कर
मचल-मचल कर और चहक कर
हाथों को लहरा-लहरा कर
अदा-अदा से और विहँस कर
तेरी सुंदर-सुंदर बातें
मन हर्षित है गाते-गाते
मैं कब से आवाज दे रहा
आ जाते हँसते-मुस्काते
तेरे गालों वाले डिम्पल
याद आते हैं मुझको पल-पल
मिसरी में पागे होठों के
नाज़ुक चुम्बन कोमल-कोमल
एक छवि मुस्कान बटोरे
मुझको अपने परितः घेरे
सुंदर सुखद समीर…
एक ग़ज़ल
चूड़ी भरी कलाईयाँ, कँगना बसंत है.
सिंदूर भर के मांग में सजना बसंत है.
चारों तरफ घिरी रहें यादों की बदलियाँ,
फिर उनके साथ रात में जगना बसंत है.
बिखरी हुई हो चाँदनी नदिया के तीर…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on April 22, 2021 at 8:28pm — 4 Comments
बिना बात की बात बनाते,
लोग यहाँ दिख जाते हैं
जैसे उल्लू सीधा होता,
वैसे ही बिक जाते हैं।
धर्म नहीं जानें क्या होता,
क्या जानें परिभाषा को
रिश्तों को अब मान नहीं है,
स्थान नहीं कुछ आशा को।
दशरथ घर से बाहर हैं अब,
पूत वहाँ का राजा है,
देकर वचन भूल जाना बस,
यही समय से साधा है
सरयू को अपमानित करते,
गंगा दूषित होती है
देख नज़ारा प्रतिदिन का यह,
भारत भू अब रोती है।
राम नहीं है घट में लेकिन,
झंडों पर…
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on April 21, 2021 at 2:46pm — 2 Comments
जो पहले मौत दे, फिर जिंदगानी कौन देता है
मेरे किरदार को ऐसी कहानी कौन देता है
यहां तालाब नदियां जब कई बरसों से सूखे हैं
खुदा जाने हमें पीने को पानी कौन देता है
हमारी जिंदगी ठहरी हुई इक झील है लेकिन
ये उम्मीदों के दरिया को रवानी कौन देता है
जमीं से आसमां तक का सफर हम कर चुके लेकिन
नहीं मालूम मंजिल की निशानी कौन देता है
परिंदे भी समझते हैं कि पर कटने का खतरा है
इन्हें फिर हौसला ये आसमानी कौन देता…
Added by atul kushwah on April 20, 2021 at 5:30pm — 6 Comments
नानी की कमी जीवन पर्यन्त याद आएगी ,
आंखें मेरी क्षण-क्षण अक्षुओं से भर आएंगी
खाये जिनके बनाये गर्मियों में चांवल और दाल,
छोड़ के हम नाती-पोतों को कब दूर चली जाएगी…
ContinueAdded by Rohit Dubey "योद्धा " on April 20, 2021 at 11:00am — No Comments
Added by Sushil Sarna on April 19, 2021 at 8:30pm — 4 Comments
मापनी १२२२ १२२२ १२२२ १२२
धवल हैं वस्त्र, नीयत के मगर गंदे बहुत हैं
चिरैया देख! दाने कम उधर फंदे बहुत हैं
मचा है शोर मँहगाई का चारों ओर लेकिन
यहाँ बस आदमी के भाव ही मंदे बहुत हैं
…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on April 19, 2021 at 12:35pm — 4 Comments
सुनसान सड़क, सुनसान रात है, सुनसान सबके अन्तर्मन
कैसे विपदा आन पड़ी ये, दुख, तड़प और है उलझन ||
चिराग भुझ रहे हर पल, हर क्षण, लगा दो चाहे तन, मन, धन
कड़ा समाधान न मिला अभी तक, जकड़ रहा है गहरा तम ||
भूख, प्यास और खाली है घर, रोजी रोटी भी हो गई बंद
वायु में जैसे विष घुला है, कैसा संकट ये कैसा कष्ट ||
हर पीड़ित अब यही पूछता, भूख लगने पर हो बंधन
पापी-खाली पेट तो मान रहा न, कैसे इच्छापूर्ति करेगा रंक ||
हाथ…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on April 18, 2021 at 10:00am — No Comments
कहानी ..........
पढ़ सको तो पढ़कर देखो
जिन्दगी की हर परत
कोई न कोई कहानी है
कल्पना की बैसाखियों पर
यथार्थ की हवेलियों में
शब्दों की खोलियों में
दिल के गलियारों में
टहलती हुई
कोई न कोई कहानी है
पत्थरों के बिछौनों पर
लाल बत्ती के चौराहों पर
बसों पर लटकी हुई
रोटी के लिए भटकी हुई
आँखों के बिस्तर पर बे-आवाज
कोई न कोई कहानी है
सच
पढ़ सको…
ContinueAdded by Sushil Sarna on April 16, 2021 at 5:09pm — 2 Comments
मापनी २१२२ २१२२ २१२२ २१२
उपवनों में फूल कलियाँ तितलियाँ दिखतीं नहीं
रोज कोयल खोजती अमराइयाँ दिखतीं नहीं
हो गई आँखों से ओझल ऋतु बसंती प्यार की
तप रहा मन का मरुस्थल बदलियाँ दिखतीं नहीं
कौन सा यह आवरण ओढ़ा हुआ है आपने…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on April 16, 2021 at 1:19pm — 10 Comments
कैसी फ़ितरत के लोग होते हैं ?
दूसरे की आँखों में धूल झोंकने हेतु
नम्बर वही मोबाइल पर
नाम कुछ और जोड़ लेते हैं
दुर्जनों के दुर्वचन
सहिष्णुता की परख होते हैं
अपनी नहीं खुद उनकी
औक़ात बता देते हैं
उनकी माँ नहीं थीं, मेरे पिता
वे मुझमें माँ ढूँढते रहे,मैं उनमें पिता
उन्हे ना माँ मिलीं, ना मुझे पिता
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on April 16, 2021 at 10:43am — 4 Comments
22 22 22 22 22 2
.
चेहरे पर मुस्कान बनाकर बैठे हैं
जो नकली सामान बनाकर बैठे हैं
दिल अपना चट्टान बनाकर बैठे हैं
पत्थर को भगवान बनाकर बैठे हैं
जो करते बातें तलवार बनाने की…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 14, 2021 at 9:30pm — 4 Comments
मन पर दोहे ...........
Added by Sushil Sarna on April 13, 2021 at 1:30pm — 6 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
अगर हक़ माँगते अपना कृषक, मजदूर खट्टे हैं
तो ख़ुश्बू में सने सब आँकड़े भरपूर खट्टे हैं
मधुर हम भी हुये तो देश को मधुमेह जकड़ेगा
वतन के वासिते होकर बड़े मज़बूर, खट्टे…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 12, 2021 at 10:28pm — 7 Comments
हमने तो अब ये ठाना है
कोरोना को हराना है
अब साथ न छूटेगा ये
वादा हमें निभाना है
कोरोना को हराना है... कोरोना को हराना है।
जाना हो जब ज़रूरी
सबसे दो गज़ की दूरी
कर हाथ सेनिटाइज़्ड
और मास्क भी लगाना है
कोरोना को हराना है... कोरोना को हराना है।
बाहर से जब भी आओ
अच्छी तरह नहाओ
ज्वर, छींक हो या खाँसी
डाॅक्टर को ही दिखाना है
कोरोना को …
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on April 12, 2021 at 7:02pm — 6 Comments
22 22 22 22 22 22 22 22
इक रोज़ लहू जम जायेगा इक रोज़ क़लम थम जायेगी
ना दिल से सियाही निकलेगी ना सांस मुझे लिख पायेगी
जिस रोज़ नये लब गाएंगे जिस रोज़ मैं चुप हो जाऊंगा
इक चाँद फ़लक से उतरेगा इक रूह फ़लक तक जायेगी
फिर नये नये अफ़सानों में कुछ नये नये चहरे होंगे
फिर नये नये किरदारों के किरदार नये गहरे होंगे
फिर कोई पिरोयेगा रिश्तों को नये नये अल्फाज़ों में
फिर कोई पुरानी रश्मों को ढालेगा नये रिवाज़ों…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on April 11, 2021 at 8:00pm — 7 Comments
Added by Sushil Sarna on April 11, 2021 at 12:00pm — 4 Comments
" कूड़े मल इस दुकान को मैंने खरीद लिया है, अब से एक हफ़्ते में खाली कर देना"
" क्या.... क्या बकवास कर ती हो, मैं कई वर्ष पुराना किरायेदार हूँ, मेरी रोज़ी - रोटी चलती है, यहाँ से! बिल्कुल खाली नहीं करूँगा" ! कूड़े मल कस्बे का बड़ा किराना व्यापारी था! बूढ़े, कमज़ोर राम आसरे का मूल किरायेदार था जिसको उसने किराया देना बंद कर दिया था! हारकर राम आसरे ने दबंग, झगड़ालू औरत सुनहरी देवी को आधी कीमत अग्रिम लेकर पावर आफ अटार्नी कर दी थी!
कूड़े मल अब परेशान था! भागा-भागा अपने वकील साहब के…
ContinueAdded by Chetan Prakash on April 11, 2021 at 4:00am — 1 Comment
कौन आया काम जनता के लिए
कह गये सब राम जनता के लिए।१।
*
सुख सभी रखते हैं नेता पास में
हैं वहीं दुख आम जनता के लिए।२।
*
देख पाती है नहीं मुख सोच कर
बस बदलते नाम जनता के लिए।३।
*
छाँव नेताओं के हिस्से हो गयी
और तपता घाम जनता के लिए।४।
*
अच्छे वादे और बोतल वोट को
हो गये तय दाम जनता के लिए।५।
*
न्याय के पलड़े में समता है कहाँ
भोर नेता साम …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 8, 2021 at 10:01pm — 3 Comments
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