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२२१/२१२१/१२२१/२१२
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सीमित से दायरे में न पल भर उड़ान हो
उनको भी अब तो एक बड़ा आसमान हो।१।
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दुत्कार अब न तुम लिखो हिस्से अनाथ के
राजन सभी के नाथ हो सब को समान हो।२।
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केवल हों कर्म ध्यान में नित मान के लिए
इस को नहीं जरूरी बड़ा खानदान हो।३।
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मन्जिल की दूरियों को अभी पाटना इन्हें
इतनी अधिक न पाँव के हिस्से थकान हो।४।
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जनता को खुद ही चाहिए उनको न ताज दे
जिस की भी लोकराज में कड़वी जबान हो।५।
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हिस्से में…
Posted on June 25, 2022 at 7:00am
२२१/२१२१/१२२१/२१२
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खंडित करे न देश को तलवार मजहबी
आँगन खड़ी न कीजिए दीवार मजहबी।।
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मन्शा उन्हीं की देश को हर बार तोड़ना
करते रहे हैं लोग जो व्यापार मजहबी।।
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जीवन न जाने कितने ही बर्बाद कर रहा
इन्सानियत से दूर हो सन्सार मजहबी।।
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माटी का मोल प्रेम की भाषा भी साथ हो
इन के बिना तो व्यर्थ है सँस्कार मजहबी।।
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समरसता ज्ञान और न आपस का मेल है
बच्चों को जो भी देते हैं आधार मजहबी।।
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करती नहीं है धर्म का कोई भी काम…
Posted on June 22, 2022 at 10:00am — 2 Comments
१२२२/१२२२/१२२२/१२२२
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नहीं ऐसा स्वयं यूँ ही सभी को दीप जलते हैं
दुआ माँ की फलित होती तभी तो दीप जलते हैं।।
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तमस की रात कितनी हो ये सूरज ही करेगा तय
मगर सब को उजाला हो इसी को दीप जलते हैं।।
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हवा से यारियाँ उन की उसी से साँस चलती है
सदा तूफान से लड़कर बली हो दीप जलते हैं।।
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तुम्हारे जन्म से यौवन खुशी को जो लड़े तम से
बुढ़ापे में तके पथ को वही दो दीप जलते हैं।।
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जलाया घर अमावस ने है लेकर नाम उनका ही
कहेगा कौन अब ऐसा सभी को दीप जलते…
Posted on June 21, 2022 at 5:21am
दोहे -पिता
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पिता एक उम्मीद सह, हैं जीवन की आस
वो हिम्मत परिवार की, हैं मन का विश्वास।१।
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जीवन जग में तात ही, केवल ऐसा गाँव
सघन शीत जो धूप दें, और धूप में छाँव।२।
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जो करते सुत को सरल, जीवन की हर राह
अनुभव से अर्जित हमें, देकर सीख अथाह।२।
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डाँट-डपट करते भले, भोर, दिवस या रात
सम्बल सबके पर रहे, कठिन समय में तात।४।
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नित सुख में परिवार हो, होती मन में चाह
हँसते -हँसते झेलते, इस को पीर अथाह।५।
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पत्थर से व्यवहार…
Posted on June 18, 2022 at 3:53pm — 4 Comments
अपने आतिथ्य के लिए धन्यवाद :)
मुसाफिर सर प्रणाम स्वीकार करें आपकी ग़ज़लें दिल छू लेती हैं
जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’ जी
प्रिय भ्राता धामी जी सप्रेम नमन
आपके शब्द सहरा में नखलिस्तान जैसे - हैं
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