चम्पई गंध बसे मन, स्वर्णिम हुआ प्रभात ।
कौन बसा प्राणों, प्रकृति, तन - मन के निर्वात ।।
धूप हुई मन फागुनी, रजनीगंधा रात ।
नद-नाले मचलते वन,गंगा तीर प्रपात।।
रजत रश्मियाँ हँसे नद, चाँद झील के गात ।
काँप जाय है चाँदनी, बरगद हृदय आत ।।
पोर- पोर टेसू हुआ, प्राणों बसे पलाश ।
गुलाबी रंग मन अहा, घर नीला आकाश ।।
रंग - बिरंगी छटा वन, सतरंगा आकाश ।
इन्द्रधनुष रच रहा, पत्ती फूल पलाश।।…
Added by Chetan Prakash on February 28, 2021 at 1:30pm — 4 Comments
२१२२/२१२२
मत निकल तलवार लेकर
जय मिलेगी प्यार लेकर।१।
*
युद्ध नित बर्बाद करता
जी तनिक यह सार लेकर।२।
*
जग मिटा कर दुख सुनाने
जायेगा किस द्वार लेकर।३।
*
इस भवन का क्या करूँगा
तुम गये आधार लेकर।४।
*
नेह की दुनिया अलग है
हो जा हल्का भार लेकर।५।
*
बोझ सा हरपल है लगता
दब गये आभार लेकर।६।
*
कर गया कंगाल सब को
हर भरा सन्सार लेकर।७।
*
टूटती रिश्तों की माला
जोड़ ले कुछ तार…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 26, 2021 at 10:38pm — 4 Comments
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 23, 2021 at 9:30pm — No Comments
दोहा त्रयी : वृद्ध
चुटकी भर सम्मान को, तरस गए हैं वृद्ध ।
धन-दौलत को लालची, नोचें बन कर गिद्ध । ।
लकड़ी की लाठी बनी, वृद्धों की सन्तान ।
धू-धू कर सब जल गए, जीवन के अरमान ।।
वृक्षहीन आँगन हुए, वृद्धहीन आवास ।
आशीषों की अब नहीं, रही किसी में प्यास ।।
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on February 23, 2021 at 8:24pm — 6 Comments
1212 - 1122 - 1212 - 22
घटा ग़मों की वही दिल पे छा गई फिर से
वो दास्तान ज़ुबाँ पर जो आ गई फिर से
ये उम्र कैसे कटेगी कहाँ बसर होगी
अँधेरी रात की जाने न कब सहर होगी
शिकस्त सारी उमीदें मिटा गई फिर से
घटा ग़मों की वही दिल पे छा गई फिर से
मुझे गुमाँ भी नहीं था हबीब बदलेगा
बदल गया है मगर, यूँ नसीब बदलेगा?
बहार बनके ख़िज़ाँ ही जला गई फिर से
घटा ग़मों की वही दिल पे छा गई फिर…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on February 22, 2021 at 8:30am — 6 Comments
२२१/२१२२/२२१/२१२२
वैसे तो उसके मन की बातें बहुत सरस हैं
पर काम इस चमन में फैला रहे तमस हैं।१।
*
पहले भी थीं न अच्छी रावण के वंशजों की
अब राम के मुखौटे कैसी लिए हवस हैं।२।
*
ये दौर कैसा आया मर मिट गये सहारे
चहुँदिश यहाँ जो दिखतीं टूटन भरी वयस हैं।३।
*
पसरी जो आँगनों में उन से हवा लड़ेगी
इन से लड़ेंगे कैसे जो मन बसी उमस हैं।४।
*
उस गाँव में हैं अब भी बेढब सुस्वाद…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 21, 2021 at 9:19am — 10 Comments
1222 1222 122
1
हमारे वारे न्यारे हो रहे हैं
सनम को जाँ से प्यारे हो रहे हैं
2
बसा कर दिल में शोहरत की तमन्ना
फ़लक के हम सितारे हो रहे हैं
3
नवाज़ा है खुदा ने हर खुशी से
बड़े अच्छे गुज़ारे हो रहे हैं
4
गिला शिकवा नहीं है अब किसी से
सभी दिल से हमारे हो रहे हैं
5
तुम्हारी आँखों के इन मोतियों से
समंदर ख़ूूूब ख़ारे हो रहे हैं
6
भरी महफ़िल में 'निर्मल' आज कैसे
निगाहों से इशारे हो रहे…
Added by Rachna Bhatia on February 19, 2021 at 9:30pm — 12 Comments
नेह के आंसू को सरजू कहता हूँ
अपनेपन से तुझको मैं तू कहता हूं।
**
रात छत पे जब निकल आता है तू
इन सितारों को मैं जुगनू कहता हूँ। **
ये जो तन से मेरे आती है महक़..
मैं इसे भी तेरी खुशबू कहता हूँ।
**
ये अदब,शोख़ी, नज़ाकत, लहज़े में..
मैं इसी लहज़े को उर्दू कहता हूँ।
**
सब थकन मेरी पी जाती है ये धूप
मैं सदा को तेरी…
ContinueAdded by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 19, 2021 at 7:00pm — 26 Comments
२१२२ २१२२ २१२
जिस्म चाँदी का हुआ अब क्या करें
उम्र निकली बेवफा अब क्या करें
इश्क़ पहला जो हुआ वो इश्क़ था
इश्क़ तो है गुमशुदा अब क्या करें
याद की अल्बम पलटकर देख ली
दिन हुए वो लापता अब क्या करें
किस तरह बच पाएगी अस्मत यहाँ
हर तरफ है खौफ सा अब क्या करें
उम्र की सारी तहें भी खोल दीं
खत मिले कुछ बेपता अब क्या करें
गुमनाम पिथौरगढ़ी
स्वरचित व अप्रकाशित
Added by gumnaam pithoragarhi on February 19, 2021 at 6:36pm — 6 Comments
२१२२/२१२२/२१२२
बेड़ियाँ टूटी हैं बोलो कब स्वयम् ही
मुक्ति को उठना पड़ेगा अब स्वयम् ही।१।
*
बाँधकर उत्साह पाँवों में चलो बस
पथ सहज होकर रहेंगे सब स्वयम् ही।२।
*
पहरूये ही सो गये हों जब चमन के
है जरूरत जागने की तब स्वयम् ही।३।
*
अब न आयेगा यहाँ अवतार हमको
करने होंगे मान लो करतब स्वयम् ही।४।
*
कल जो सेवक हैं कहा करते थे देखो
हो गये है आज वो साहब स्वयम्…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 19, 2021 at 7:30am — 14 Comments
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
ज़िन्दगी में सिर्फ़ ग़म हैं और तुम हो
आज फिर से आँखें नम हैं और तुम हो
लग रहा है अब मिलन संभव नहीं है
वक़्त से लाचार हम हैं और तुम हो
रात चुप, है चाँद तन्हा, साँस मद्धम
इश्क़ में लाखों सितम हैं और तुम हो
दिल की बस्ती में अकेला तो नहीं हूँ
नींद से बोझिल क़दम हैं और तुम हो
क्या बताऊँ किसलिये है 'ब्रज' परेशां
वस्ल के आसार कम हैं और तुम हो
(मौलिक एवं अप्रकाशित)…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 18, 2021 at 9:30pm — 11 Comments
बह्र - मुतक़ारिब मुसम्मन सालिम
अरकान - 122 122 122 122
किसी को मुकम्मल जहाँ देने वाले
किसी को नया आसमां देने वाले
**
कि बहती हवा…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on February 17, 2021 at 4:30am — 3 Comments
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 16, 2021 at 10:00pm — 6 Comments
बह्र ~ "बह्र-ए- वाफिर मुरब्बा सालिम"
12112 12112 12112 12112
न चैन पाये है की न सुकूँ .....................ही पाये कोई
ऐसे ले के दर्द ए दिल है जिये.................ही जाये कोई
के चोट जो खाये अपनो से ही ...............अगर
तो ले के भी दिल को अपने कहाँ.............ही जाये कोई
अज़ीब है हाल इश्क में भी.....................सनम है न दवा दिल…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on February 16, 2021 at 10:00am — No Comments
झुक आई है एक और शाम
ग्रभ में गहरी-भूरी स्तब्धता लिए
कुछ फ़ासले, कुछ फ़ैसले
लगते थे जो कभी
थे हमारे लिए नहीं
हर किसी और के लिए
खड़े हैं अब वही फ़ासले
वही फ़ैसले
घूर रहे हैं सवाल बने बड़े-बड़े
सवालों के उत्तर की प्रत्याशा
ले आती एक और गंभीर शाम
और फिर एक और ...
मंज़िल तो लगती ही थी हमेशा
पकड़ के बाहर, पहुँच से दूर बहुतं
लेकिन उस आखरी शाम
कुछ तुमने कहा, जो मैंने सुना
"मेरे…
ContinueAdded by vijay nikore on February 16, 2021 at 7:00am — 5 Comments
2122 - 1122 - 112
कब से बैठे हैं तेरे दर पे सनम
अब तो हो जाए महरबान करम......1
ग़ैर समझो न हमें यार सुनो
हम तुम्हारे हैं तुम्हारे ही थे हम....... 2
बात चाहे न मेरी मानो, सुनो!
कीलें राहों में उगाओ न सनम....... 3
देके हमको भी अज़ीयत ये सुनो
दर्द तुमको भी तो होगा नहीं कम... 4
हम भी इन्सान हैं समझो तो ज़रा
देखो अच्छे नहीं इतने भी सितम....5
जिस्म से जान जुदा होती…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on February 15, 2021 at 9:32pm — 5 Comments
122 2122 2122 2122 2
उखाड़ेंगीं भी क्या मिलकर हज़ारों आँधियाँ अपना
पहाड़ों से भी ऊँचा सख़्सियत का है मकां अपना
मिटाकर क्या मिटायेगा कोई नाम-ओ-निशाँ अपना
मुक़ाम ऐसा बनाएंगे ज़मीं पर मेरी जाँ अपना
चला है गर चला है डूबकर मस्ती में कुछ ऐसे
नहीं रोके रुका है फिर किसी से कारवाँ अपना
पहुँचने में जहाँ तक घिस गये हैं पैर लोगों के
वहाँ हम छोड़ आये हैं बनाकर आशियाँ…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on February 15, 2021 at 3:30pm — 3 Comments
2122 1212 22 (112)
मुझको तू गर मिला नहीं होता
इश्क़ है क्या पता नहीं होता।
**
एक पल को जुदा नहीं होता.
ग़म तेरा बेवफ़ा नहीं होता।
**
रोज इक ख़त मैं लिखता हूँ तुझको
और तेरा 'पता' नहीं होता।
**
दो जहाँ हमने एक कर डाले
दर्द बढ़कर दवा नहीं होता।
**
इश्क़ है गर तो सोचता है क्या?
इश्क़ होता है या नहीं होता।
…
ContinueAdded by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 15, 2021 at 3:00pm — 9 Comments
1212 1122 1212 112/22
पुराने ख़त मेरे अब भी जो सामने होंगे,
तो पढ़के होंठ यकीनन ही कांपते होंगे।
सफर उदास रहा जिनकी आस में अपना,
किसी के साथ वो चुपचाप चल पड़े होंगे।
तुम्हारे होठों को छूकर करार पाएंगे,
इसी ख्याल से मिसरे बहक रहे होंगे।
बिछड़ के उनसे मैं कितना उदास रहता हूँ,
मैं सोचता हूँ वो अक्सर ये सोचते…
Added by मनोज अहसास on February 14, 2021 at 11:07pm — 5 Comments
2122 1212 22/112
यार कब तक डरा करे कोई
मौत का सामना करे कोई (1)
मैं तो उनके क़रीब रहता हूँ
दूर मुझसे रहा करे कोई (2)
मुफ़्त में गर किसी को देना हो
मशविर: दे दिया करे कोई (3)
मयकदे से बताओ ऐ यारो
दूर कब तक रहा करे कोई (4)
क्या ज़मींदोज़ करके मानेगा
और कितना दबा करे कोई (5)
वक्त के साथ भर ही जाएँगे
ज़ख़्म जितने दिया करे कोई (6)
यार "सालिक" की अब ये ख़्वाहिश…
ContinueAdded by सालिक गणवीर on February 14, 2021 at 10:30pm — 8 Comments
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