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December 2016 Blog Posts (132)


सदस्य कार्यकारिणी
लेकिन आगे कैसे बढ़ लें? - (गीत) - मिथिलेश वामनकर

नई नई कुछ परिभाषाएँ, राष्ट्र-प्रेम की आओ गढ़ लें।

लेकिन आगे कैसे बढ़ लें?

 

मातृभूमि के प्रति श्रद्धा हो, यह परिभाषा है अतीत की।

महिमामंडन, मौन समर्थन परिभाषा है नई रीत की।

अनुचित, दूषित जैसे भी हों निर्णय, बस सम्मान करें सब।

हम भारत के  धीर-पुरुष हैं,  कष्ट सहें, यशगान करें सब।

चित्र वीभत्स मिले जो कोई,

स्वर्ण फ्रेम उस पर भी मढ़ लें।

 

मर्यादा के पृष्ट खोलकर, अंकित करते भ्रम का लेखा।

राष्ट्रवाद का कोरा डंका, निज…

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Added by मिथिलेश वामनकर on December 31, 2016 at 11:30pm — 23 Comments

गजल(साल न्य....)

साल नया वह आता कब है
और पुराना जाता कब है?1

चलते रहते खेल-तमाशे
कोई राज बताता कब है?2

मन मुरझाया रहता जब भी
बोलो कुछ भी भाता कब है?3

दिलवर जो चाहत का भूखा
रखता लब से नाता कब है?4

रहता हर पल प्यासा पंछी
बूँद सुधामय पाता कब है?5
मौलिक व अप्रकाशित@मनन

Added by Manan Kumar singh on December 31, 2016 at 11:15pm — 18 Comments

गीत कोई गाऊं मैं





दुःख बिसराये

सुख को लाये

ऐसा गीत गाऊँ मैं

खट्टी  मीठी यादों को

थोड़ा सा गुन गुनाऊं मैं

दूर खड़ा पर्वत पुकारे

चलकर उसतक जाऊं मैं

बादलों से बरसे पानी

झूम झूम कर नाचूँ मैं

खेत बुलाये, परिंदे पुकारें

बोली उनकी समझूँ मैं

नाच उठे मनवा मेरा

गीत ऐसा कोई गाऊँ मैं |



बहती नदी , बहता झरना

कलकल इनकी सुन लूँ मैं

किनारे से टकराती लहरों से

कुछ देर बातें कर लूँ मैं

देखकर वहां गोरी कलाई…

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Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 31, 2016 at 9:30pm — 19 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
सपने फिर सजाऐं.......//डॉ० प्राची

साल इक जाए प्यास देकर,

साल इक आए आस लेकर,

संग हम इनके

खिलखिलाएं,

आओ चलो

सपने फिर सजाऐं...



कोई यादों की खिड़कियों से

आए औ' धड़कन मुस्कुरा दे,

बिन कहे कहने जब लगे वो

अपने दिल के सारे इरादे,



ऐसा इक मीठा सा तराना

अनसुना करने का बहाना,

छोड़ कर

धुन ये गुनगुनाएं,

आओ चलो

सपने फिर सजाऐं...



तोड़ कर बंधन रोज भागें

थाम कर उँगली कब चली हैं,

इनका अम्बर ही है ठिकाना

ख्वाहिशें कितनी मनचली हैं,…

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Added by Dr.Prachi Singh on December 31, 2016 at 8:30pm — 12 Comments

बाप बेटे में कुछ फ़ासला रह गया

212 212 212 212



बाप बेटे में कुछ फासला रह गया ।

हौसला सब धरा का धरा रह गया ।।



लोग हैरान हैं कुछ परेशान भी ।

हुक्मरां क्यों ठगा का ठगा रह गया ।।



क़त्ल रिश्तों के देखे गए आज फिर ।

कुछ मुनाफे का बस माजरा रह गया ।।



कुर्सियो पर रही उसकी पैनी नज़र ।

वह मिशन मानकर बस लगा रह गया ।।



थे करम कुछ बुरे जो नतीजे मिले ।

खून था जो तेरा गैर का रह गया ।।



क्या उमीदें रखे यह रियासत यहाँ ।

घर में अपने वही बेवफा रह गया… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on December 31, 2016 at 1:22pm — 17 Comments

नव वर्ष स्वागत गीत

बहर 1222 1222 1222 1222



करें स्वागत सभी मिल के, नये इस वर्ष सतरह का;

नये सपने नये अवसर, नया ये वर्ष लाएगा।

करें सम्मान इसका हम, नई आशा बसा मन में;

नई उम्मीद ले कर के, नया ये साल आएगा।



मिला के हाथ सब से ही, सभी को दें बधाई हम;

जहाँ हम बाँटते खुशियाँ, वहीं बाँटें सभी के ग़म।

करें संकल्प सब मिल के, उठाएँगे गिरें हैं जो;

तभी कुछ कर गुजरने का, नया इक जोश छाए गा।



दिलों में मैल है बाकी, पुराने साल का कुछ गर;

मिटाएँ उसको पहले हम, नये…

Continue

Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on December 31, 2016 at 12:00pm — 12 Comments

गजल(नोटबंदी)

2122 2122

नोट बंदी बावरी-सी

देखते हैं क्या करेगी।1



जो चलन को कैद करते

क्या भला उनसे लड़ेगी?2



बेचलन होते 'पुराने'

क्या 'नयों' से घर भरेगी?3



काठ की हांडी कहें कुछ

क्या नहीं फिर से चढ़ेगी?4



जो हरें दिन के उजाले

क्या नहीं उनको खलेगी?5



बात क्षणभर की नहीं यह

दूर तक आगे चलेगी।6



थम रहा है शोर अब तो

फूल बन कर ही खिलेगी।7



जो अंधेरों से लड़ेगा

रे सुबह उसको मिलेगी।8



कीजिये मन से… Continue

Added by Manan Kumar singh on December 31, 2016 at 8:39am — 2 Comments

गजल(नोटबंदी)

2122 2122

नोट बंदी जो चलेगी

सोचता हूँ क्या करेगी।1



जो चलन को कैद करते

क्या भला उनसे लड़ेगी?2



बेचलन होते 'पुराने'

क्या 'नयों' से घर भरेगी?3



काठ की हांडी कहें कुछ

क्या नहीं फिर से चढ़ेगी?4



जो हरें दिन के उजाले

क्या नहीं उनको खलेगी?5



बात क्षणभर की नहीं यह

दूर तक आगे बढ़ेगी।6



थम रहा है शोर अब तो

एक कलिका-सी खिलेगी।7



जो अंधेरों से लड़ेगा

रे सुबह उसको मिलेगी।8



कीजिये मन से… Continue

Added by Manan Kumar singh on December 31, 2016 at 8:30am — 12 Comments

स्वागत नव् वर्ष का .....डॉo विजय शंकर

जीना ,
जीने से बढ़ कर
जीने की इच्छा ,
इच्छा के साथ
और इच्छायें ,
आशायें , उम्मीदें।
एक आस , हर
आनेवाले दिन से ,
वर्ष से .........
स्वागत नव् वर्ष का .......
कुछ अर्पण के लिए
कुछ समर्पण के भाव लिए
कुछ नये वादों के साथ ,
कुछ दृढ़ इरादों के साथ ....
स्वागत नव् वर्ष का .......

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on December 30, 2016 at 8:43pm — 11 Comments

ग़ज़ल (दिल के आगे हमें सर झुकाना पड़ा )

ग़ज़ल (दिल के आगे हमें सर झुकाना पड़ा )

-----------------------------------------------------

फाइलुन -फाइलुन -फाइलुन -फाइलुन

दिल के आगे हमें सर झुकाना पड़ा |

इक सितम गार से दिल लगाना पड़ा |

चश्मे नम से न खुल जाए राज़े वफ़ा

सोच कर यह हमें मुस्कराना पड़ा |

प्यार की इक नज़र की ही उम्मीद में

उम्र भर संग दिल से निभाना पड़ा |

दर्स ज़ालिम ले अंज़ामे फिरओन से

ज़ालिमों को भी दुनिया से जाना पड़ा…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on December 30, 2016 at 8:25pm — 9 Comments

ज़िन्दगी ..... (क्षणिका )


ज़िन्दगी ..... (क्षणिका )

हो गया
खामोश बशर
उलझनें
सुलझाने के
फेर में

एक
मकड़ी से
शर्मिंदा
हो गयी
ज़िन्दगी

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on December 30, 2016 at 2:50pm — 7 Comments

वर्ष नया मंगलमय कहने

चले भी आओ की थोड़ी सी प्रीत निभा लें

वर्ष नया मंगलमय कहने की रीत निभा लें

कहना यह भी था कि

जाते साल के इतने तो उधार बाकी हैं

कुछ मुझ पर कुछ तुम पर उपकार बाकी हैं

शुकराने की सुरमय सरगम सजा लें

वर्ष नया मंगलमय कहने की रीत निभा लें

कहना यह भी था कि

कोई वादा अभी भी अधूरा सा है

आँखों में उम्मीद का चूरा सा है

वादे की हदों की हदें ही मिटा लें

वर्ष नया मंगलमय कहने की रीत निभा लें

कहना यह भी था कि

कुछ चुभने हैं बाकी जो कसकती…

Continue

Added by amita tiwari on December 30, 2016 at 4:11am — 6 Comments

अपनों से ...

अपनों से  ... 

सपने
अक्सर
तारों की तरह
गिरकर
टूट जाते हैं

चीख उठते हैं
आँखों में
ख़ामोश आंसू
जब
अपने
अपनों से
रूठ जाते हैं

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on December 29, 2016 at 5:57pm — 6 Comments

“नूतन वर्षाभिनंदन - 2017” /कविता :- अर्पणा शर्मा

365 दिनों के,

माला में पिरोये मनके,

समय को कब

अवकाश है पाना,

न जीवन का,

स्थगन है कर पाना,

साल दर साल,

ये माला है जपते जाना,

नव वर्ष की

इस नई माला में,

नई आशाओं का

झुमका है लगाना,

परिश्रम की स्वेद बूंदों से

इसे है पखारते जाना,

विगत को संजोकर इतिहास में

चुनकर हंसी के मोती,

प्रेम-उल्लास की झालरों से

आगत के स्वागत में,

आँगन है सजाना,

जीवन आनंद की बूंदों का

रसास्वादन है करते… Continue

Added by Arpana Sharma on December 29, 2016 at 5:30am — 8 Comments

ग़ज़ल- मिल गया है आपका वह ख़त पुराना शुक्रिया

2122 2122 2122 212

मिल गया है आपका वह ख़त पुराना शुक्रिया ।

याद आया फिर मुझे गुज़रा ज़माना शुक्रिया ।।



ढल गई चेहरे की रौनक ढल गया वह चाँद भी ।।

हुस्न का अब होश में आकर बुलाना शुक्रिया ।।



कुछ अना के साथ में नज़रों की वो तीखी क़सिस।

बाद मुद्दत के तेरा यह दिल जलाना ,शुक्रिया ।।



मुस्तहक़ थी आरजू पर हो सकी कब मुतमइन ।

वक्त पर आवाज देकर यूँ बुलाना शुक्रिया ।।



जिक्र कर लेना मुनासिब है नहीं इस दौर में ।

फिर गमे उल्फ़त का देखो लौट आना,… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on December 28, 2016 at 11:59pm — 10 Comments

कैसे-कैसे मरहम ?

 अँधेरा हो गया था

मेले से लौटने में 

जब बैलगाड़ी के पहिये में

फंस गया था

मेरी बेटी का दुपट्टा

जो पहिये के घूर्णन के साथ-साथ

कसता गया

मेरी बेटी के गले में

और तब गया सबका ध्यान 

जब घुटी -घुटी सी चीख

निकली उसके मुख से

हठात बैलों की लगाम

खींची गाडीवान ने

और बैल पैर उठाकर 

पीछे की और धसके

 

पहिये में फंसे दुपट्टे को

आहिस्ता से निकाल कर 

छुड़ाया गया उसका गला

उस काल-फंद…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 28, 2016 at 8:20pm — 17 Comments

कह्र....

कह्र ...

थक गयी है
लबों पे हंसी
शायद लब
आडम्बर का ये बोझ
और न सहन कर पाएंगे
संग अंधेरों के
ये भी चुप हो जाएंगे
कफ़स में कहकहों के
दर्द बेवफाई का
ये छुपा न पाएंगे
बावज़ूद
लाख कोशिशों के
ये
गुज़रे हुए
लम्हों की आतिश से
बंद पलकों से
पिघल कर
तकिये को
गीला कर जाएंगे
सहर की पहली शरर पे
रिस्ते ज़ख्मों का
कह्र लिख जाएंगे


सुशील सरना

मौलिक एवम अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on December 28, 2016 at 5:45pm — 14 Comments

मैं भुला देना चाहता हूँ

मैं भुला देना चाहता हूँ

झिलमिल सितारों को

झूमती बहारों को

सावन के झूलों को

महकते हुए फूलों को

मौसमी वादों को

पक्के इरादों को

नर्म एहसासों को

बहके जज़्बातों को

सोंधी सी ख़ुशबू को

कोयल की कू को

नाचते हुए मोर को

नदियों के शोर को

चाँदनी रातों को

मीठी-मीठी…

Continue

Added by Mahendra Kumar on December 28, 2016 at 1:30pm — 10 Comments

तरही गजल/सतविन्द्र कुमार राणा

2122 2122 212

बह रहे हो नद-से दम भर देखिये

चलते रहना पर ठहरकर देखिए।



राज दिल के मुँह पे लाकर देखिए

आज अपनों को बताकर देखिए।



जा रहे हो दूर हमसे रूठकर

थोड़ा-सा नजदीक आकर देखिये।



नफरतों से क्या किसी को कुछ मिला?

चाह दिल में भी जगाकर देखिये।



कुछ न हासिल हो सका चलके अलग

*दो कदम तो साथ चलकर देखिए।*



मुश्किलों में भी ख़ुशी को पा लिया

मिटता उनके दिल का हर डर देखिये



मुश्किलें होती हैं सच की राह… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on December 28, 2016 at 11:45am — 12 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
जल रहें हैं गीत देखो (गीत) - मिथिलेश वामनकर

वेदना अभिशप्त होकर,

जल रहें हैं गीत देखो।

 

विश्व का परिदृश्य बदला और मानवता पराजित,

इस धरा पर खींच रेखा, मनु स्वयं होता विभाजित ।

इस विषय पर मौन रहना, क्या न अनुचित आचरण यह ?

छोड़ना होगा समय से अब सुरक्षित आवरण यह।

कुछ कहो, कुछ तो कहो,

मत चुप रहो यूँ मीत देखो।

वेदना अभिशप्त होकर,

जल रहें हैं गीत देखो।

 

मन अगर पाषाण है, सम्वेदना के स्वर जगा दो।

उठ रही मष्तिष्क में दुर्भावनायें,  सब भगा…

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Added by मिथिलेश वामनकर on December 28, 2016 at 11:00am — 18 Comments

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