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ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं

.
सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं 
जहाँ मक़ाम है मेरा वहाँ नहीं हूँ मैं.
.
ये और बात कि कल जैसी मुझ में बात नहीं    
अगरचे आज भी सौदा गराँ नहीं हूँ मैं.
.
ख़ला की गूँज में मैं डूबता उभरता हूँ   
ख़मोशियों से बना हूँ ज़बां नहीं हूँ मैं.
.
मु’आशरे के सिखाए हुए हैं सब आदाब  
किसी का अक्स हूँ ख़ुद का बयाँ नहीं हूँ मैं.
.
सवाली पूछ रहा था कहाँ कहाँ है तू
जवाब आया उधर से कहाँ नहीं हूँ मैं?
.
परे हूँ जिस्म से अपने मैं ‘नूर’ हूँ शायद
बदन के जलने से उठता धुआँ नहीं हूँ मैं.
.
निलेश नूर 
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 34

Comment

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Comment by Chetan Prakash 5 hours ago
  1. आदरणीय 'नूर'साहब,  मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार ग़ज़ल का प्रत्येक शेर की विषय - वस्तु अलग होनी चाहिए जबकि उक्त रचना विशेष आत्मगत  है !
  2. क़ाफ़िया,  से मेरा अभिप्राय था। उक्त शेर में 'धुआँ' अशुद्ध है, यह मेरा निवदेन था,आदरणीय  !
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' yesterday

आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।

Comment by अजय गुप्ता 'अजेय yesterday

अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश नूर भाई। बहुत बधाई 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on Friday

आ. चेतन प्रकाश जी.
मैं आपकी टिप्पणी को समझ पाने में असमर्थ हूँ.
मगर 'ग़ज़ल ' फार्मेट में - इसे किस तरह समझा जाए..
आपका क़ाफ़िला वर्तनी की दृष्टि से अशुद्ध है  ..इस पर थोड़ा प्रकाश डालेंगे तो कृपा होगी 
.
सादर 
  

Comment by Chetan Prakash on Friday

आदाब,'नूर' साहब, सुन्दर  रचना है, मगर 'ग़ज़ल ' फार्मेट में ! 

"परे हूँ जिस्म से अपने मैं 'नूर' हूँ शायद 

बदन के जलने से उठता धुआँ नहीं हूँ मैं" 

आपका क़ाफ़िला वर्तनी की दृष्टि से अशुद्ध है !

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"धन्यवाद भाई लक्ष्मण धामी जी "
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"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
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