उसे स्कूल के दिन याद आ रहे हैं,जब क्लास शुरू होने के पहले,टिफिन में और कभी कभी स्कूल छूटने के बाद भी कबड्डी खेलना कितना पसंद था उन्हें। बुढ़िया कबड्डी में दोनों पक्षों की एक एक बूढ़ी गोल यानी गोल खिंचे हुए दायरे में हुआ करती।प्रत्येक बूढ़ी के आगे विरोधी पक्ष के खिलाड़ी होते। बारी बारी से दोनों पक्ष अपनी अपनी बूढ़ी को मुक्त कराने की कोशिश करते,वह सत्ता की प्रतीक होती;रानी भी कह लें।एक पक्ष का कोई खिलाड़ी "कबड्डी कबड्डी...." करते हुए दौड़ता,विपरीत पक्ष के खिलाड़ी भागते कि कहीं वह…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on November 16, 2019 at 9:30am — 4 Comments
दोनों पति-पत्नि अपने लव-कुश के साथ खुश थे। माताजी और पिताजी इस छोटे से परिवार में खुश तो थे लेकिन और पैसा कमाने के लिए बेटे समीर को दिन-रात औरों के बेटों की कहानियाँ सुना-सुना ताना देते रहते। रोज़ सुबह और शाम डायनिंग टेबल पर बैठ, एक बयौरा सा देते हुए बताया करते कि फलां के बेटे की तनख़्वाह इतनी हो गयी, फलां के बेटे ने फलैट बुक करवा दिया और फलाने ने तो कैश पेमैंट पर बड़ी गाड़ी खरीद ली।
ये सब सुन-सुनकर समीर परेशान हो गया और अपने ही घर में बेइज्जत होने से थककर बाहर जाने की तैयारी करने…
Added by Usha on November 15, 2019 at 9:00am — 4 Comments
122 122 122 122
न जाने किधर जा रही ये डगर है ।
सुना है मुहब्बत का लम्बा सफर है ।।
मेरी चाहतों का हुआ ये असर है ।
झुकी बाद मुद्दत के उनकी नज़र है ।।
नहीं यूँ ही दीवाने आए हरम तक ।
इशारा तेरा भी हुआ मुख़्तसर है ।।
यहाँ राजे दिल मत सुनाओ किसी को ।
ज़माना कहाँ रह गया मोतबर है ।।
है साहिल से मिलने का उसका इरादा ।
उठी जो समंदर में ऊंची लहर है ।।
है मकतल सा मंजर हटा जब से चिलमन…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on November 14, 2019 at 5:30pm — 3 Comments
करके वादा,
किसी से न कहेंगे,
दिल का दर्द मेरे जान लिया।
ढोंग था सब,
तब समझे हम कि,
महफ़िल में सरे-आम बदनाम हो गए।...........1
पहली नज़र में ही उनपर,
हम दिल अपना हार बैठे,
कहना कुछ चाहा था,
कह कुछ और गए।.......... 2
अक्सर देखा है हमने,
उनको रंग बदलते हुए,
पर हैरान हैं कि,
कोई तो पक्का होता।.......... 3
मौलिक व् अप्रकाशित।
Added by Usha on November 13, 2019 at 7:09pm — 13 Comments
आज वह सोचकर आया था कि पापा से नई घडी और पैंट शर्ट के लिए कह ही देगा. अब तो स्कूल के बच्चे भी कभी कभी चिढ़ाने लगे थे. लेकिन घर की हालत देखकर उसकी कहने की इच्छा नहीं होती थी. जैसे ही वह पापा के कमरे में पहुंचा, पीछे पीछे उसका चचेरा भाई भी आ गया. अभी वह कुछ कहता तभी उसके चचेरे भाई ने अपनी फरमाईस रख दी "बड़े पापा, मेरी साइकिल बिलकुल खचड़ा हो गयी है, इस महीने नई दिला दीजिये".
पापा ने उसकी तरफ प्यार से देखते हुए कहा "ठीक है, इस बार बोनस मिलना है, जरूर खरीद दूंगा. लेकिन संभाल कर चलाना, गिरना…
Added by विनय कुमार on November 13, 2019 at 5:55pm — 4 Comments
प्रेम : विविध आयाम
प्रेम
ठहरा था
बन के ओस
तेरी पलकों पर...
उफ़ तेरी ज़िद
कि बन के झील
वो तुझे मिलता...
प्रेम
काल कोठरी के
मजबूत दरवाजों की
झिर्रियों से झांकती
सुबह की
पहली सुनहरी…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on November 13, 2019 at 2:00pm — 3 Comments
उजला अन्धकार ...
होता है अपना
सिर्फ़
अन्धकार
मुखरित होता है
जहाँ
स्वयं से स्वयं का साक्षात्कार
होता है जिसके गर्भ से
भानु का
अवतार
नोच लेता है जो
झूठ के परिधान का
तार तार
सच में
न जाने
कितने उजालों के
जालों को समेटे
जीता है
समंदर सा
उजला अन्धकार
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on November 13, 2019 at 1:41pm — 8 Comments
कुछ दिए ...
कुछ दिए जलते रहे
बुझ के भी
तेरे नाम के
कुछ दिए जलते रहे
बेनूर से
मेरे नाम के
कुछ दिए जलते रहे
शरमीली
पहचान के
रह गए कुछ दिए
तारीक में
अंजान से
बेनाम से
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on November 12, 2019 at 8:51pm — 6 Comments
Added by Dr. Geeta Chaudhary on November 10, 2019 at 6:30pm — 8 Comments
कोयल मौसम में समरसता घोल रही थी।लोग उसकी सुमधुर धुन पर थिरक से रहे थे। लग रहा था कि पहले की रही सही रंजिश अब नहीं रही।यह सब कौवे को नागवार लगा।उसने अकस्मात अपनी पूरी कर्कशता से कांव कांव करना शुरू कर दिया।कोयल बिदकी,"यह कर्कशता कैसी भाई?अभी मेल जोल का माहौल है।खुशियां बांटें"।
"कैसा मेल जोल?तू मेरी आवाज बदल सकती है क्या?"
"नहीं।"
"तो फिर? तू अपनी गा, मैं अपना गाऊंगा।"
"ऐसा?"
"और क्या?अपनी आवाज में…
Added by Manan Kumar singh on November 10, 2019 at 7:30am — 5 Comments
2122 1212 22
-
हौसला जिसका मर नहीं सकता
मुश्किलों से वो डर नहीं सकता
-
लोग कहते हैं ज़ख़्म गहरा है
मुद्दतों तक ये भर नहीं सकता
-…
Added by SALIM RAZA REWA on November 9, 2019 at 7:30pm — 3 Comments
गज़ल(122-122-122-122)
क़यामत का मंज़र दिखाने लगे हैं
अचानक ही वो मुस्कुराने लगे हैं
ये क्या कम है सुनते न थे जो हमारी
वो अब हाथ हम से मिलाने लगे हैं
बुरा हो जवानी का आयी है जबसे
वो सूरत ही मुझ से छुपाने लगे हैं
दिए जो जलाये उजाले की ख़ातिर
वही आग घर को लगाने लगे हैं
अमीरों के बंगले बचाने की ख़ातिर
वो मुफ़लिस के छप्पर जलाने लगे हैं
सरे बज्म हँस हँस के मत बात कीजिए
सभी लोग तियूरी चढ़ाने लगे हैं
ग़ज़ब है वफा जिनसे मैं कर…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on November 9, 2019 at 8:59am — 6 Comments
एक फूल दो है, माली
धर्म-कर्म की यही कहानी
आत्मा-परमात्मा में भेद करा
दुनियांदारी में हमे फसा-फसाकर, जन्म-मरण का चक्कर कटवाती ||
अहंकार रूपी ये पुत्र हमारा, धन रूपी सा भाई,
मोह रूपी ये पुत्रवधू, आशा रूपी ये स्त्री प्यारी
आसक्ति लगा के इनमे
कर्म बंधन से ना मुक्ति पाई||
ममतामयी माँ रूप बना ये, हम पर खूब ये, प्यार लुटाता
बहन बन ये जब भी…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on November 8, 2019 at 11:52am — 5 Comments
घर में किसी बुजुर्ग ने, दिया आप को नाम
नाम बड़ा अब कीजिये, करके अच्छे काम
करके अच्छे काम, बढ़े कद जिससे अपना
जग हित हो हर श्वांस, बड़ा ही देखें सपना
पद वैभव सम्मान, ख्याति हो दुनिया भर में
उत्तम जन कुलश्रेष्ठ, आप ही हों हर घर में।।
जह्र फिजा में है घुला, नगर शहर या गाँव
बाग बगीचे काट कर, खोजे मानव छाँव
खोजे मानव छाँव, भला अब कैसे पाए
जब खुद गड्ढा खोद, उसी में गिरता जाए
धुन्ध धुँआ बारूद, बहें मिल खूब हवा में
कैसे लें अब साँस, घुला जब…
Added by नाथ सोनांचली on November 7, 2019 at 10:30pm — 8 Comments
दोहे
भिड़े प्रहरी न्याय के, लेकर निज अभिमान
मुसमुस जनता हँस रही, ले इस पर संज्ञान।१।
खाकी का ईमान क्या, बिकता काला कोट
वह नेता भी भ्रष्ट है, जन दे जिसको वोट।२।
लूट पीट जन आम को, करें न्याय का खून
खाकी, काला कोट खुद, बन बैठे कानून।३।
खाकी, काले कोट को, है इतना अभिमान
आम नागरिक कब भला, हैं इनको इन्सान।४।
रहा न जिनका आचरण, जैसा सूप सुभाय
वही सुरक्षा माँगते, वही कह रहे न्याय।५।
काली वर्दी पड़ गयी,…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 7, 2019 at 8:09pm — 12 Comments
1222×4
ग़ज़ल में अपने माज़ी के कई लम्हात लाया हूँ,
परेशानी की हालत में इन्हीं से जा लिपटता हूँ.
एक ऐसा रास्ता जो देर तक खाली नहीं रहता,
मैं ऐसे रास्ते पर देर से खामोश बैठा हूँ.
लगी है आग वो घर में बुझाई ही नहीं जाती,
मैं दुनिया भर की कितनी उलझनें सुलझाता रहता हूँ.
गली के मोड़ से छुपकर तमाशा देखने वालो,
वतन का खून हूं मैं सूखकर मिट्टी से चिपका हूँ.
मुझे इससे बड़ी राहत जमाने में भला क्या माँ,
मैं…
Added by मनोज अहसास on November 6, 2019 at 11:52pm — 2 Comments
चहेरे पर मुस्कान को रख
कुछ नया करने की चाहत रख
स्वयं पर दृढ़ विश्वास को रख
आगे बढ़ बस आगे बढ़ता चल ||
सहयोग बलिदान की भावना रख
जिम्मेदारियों ना तू डर
टीम वर्क पर विश्वास जता
हौंसले संग तू आगे बढ़ ||
नामुमकिन कुछ नहीं है जग में
मन में थोड़ा धैर्य रख
असफलताओ से सीख ले
मुकाम को अपने हासिल कर ||
कहने वाले कहते हैं
उनकी बातों पर ध्यान ना धर
कठिन पर अडचने…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on November 6, 2019 at 5:00pm — 2 Comments
1212 1122 1212 22/112
न पूछिये कि वो कितना सँभल के देखते हैं ।
शरीफ़ लोग मुखौटे बदल के देखते हैं ।।
अज़ीब तिश्नगी है अब खुदा ही खैर करे ।
नियत से आप भी अक्सर फिसल के देखते हैं ।।
पहुँच रही है मुहब्बत की दास्ताँ उन तक ।
हर एक शेर जो मेरी ग़ज़ल के देखते हैं ।।
ज़नाब कुछ तो शरारत नज़र ये करती है ।
यूँ बेसबब ही नहीं वो मचल के देखते हैं ।।
गुलों का रंग इन्हें किस तरह मयस्सर हो…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on November 6, 2019 at 2:51pm — 2 Comments
2×15
कोई दरिंदा घात लगाकर जब घर में ही बैठा हो,
सहमी हुई मासूम कली का कितना बड़ा दुपट्टा हो.
अपनी बीवी के अश्कों की वो भी कद्र नहीं करता,
जिसने मम्मी को बचपन में रोज सिसकते देखा हो.
वक्त जरूरत पर ये दुनिया बेपर्दा हो जाती है,
दुनिया वाले तू भी मुझ पर थोड़ा सा बेपर्दा हो.
मेरे बच्चों में इक बच्चा ऐसा भी हो मेरे ख़ुदा,
मेरे जैसा दिल हो उसका ,उसके जैसा दिखता हो.
हमने कल्पना ऐसी बगिया की जाने क्योंकर कर ली,…
ContinueAdded by मनोज अहसास on November 6, 2019 at 12:13am — 2 Comments
कुछ हाइकु :
लोचन नीर
विरहन की पीर
घाव गंभीर
कागज़ी फूल
क्षण भर की भूल
शूल ही शूल
देह की माया
संग देह के सोया
देह का साया
झील का अंक
लहरों पर नाचे
नन्हा मयंक
यादों के डेरे
ख़ुशनुमा अँधेरे
भूले सवेरे
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on November 4, 2019 at 7:27pm — 10 Comments
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