For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

122 122 122 122

न जाने किधर जा रही ये डगर है ।

सुना है मुहब्बत का लम्बा सफर है ।।

मेरी चाहतों का हुआ ये असर है ।

झुकी बाद मुद्दत के उनकी नज़र है ।।

नहीं यूँ ही दीवाने आए हरम तक ।

इशारा तेरा भी हुआ मुख़्तसर है ।।

यहाँ राजे दिल मत सुनाओ किसी को ।

ज़माना कहाँ रह गया मोतबर है ।।

है साहिल से मिलने का उसका इरादा ।

उठी जो समंदर में ऊंची लहर है ।।

है मकतल सा मंजर हटा जब से चिलमन ।

बड़ी क़ातिलाना तुम्हारी नज़र है ।।

बतातीं हैं बिस्तर की ये सिलवटें अब ।

तुम्हें नींद आती नहीं रात भर है ।।

वहीं बैठती है वो रंगीन तितली ।

गुलों के लबों पर तबस्सुम जिधर है ।।

सुना हुस्न वालों के ख़ामोश लब हैं ।

लिपिस्टिक की रंगत का जाने का डर है ।।

ये कोशिश है मेरी उसे भूल जाऊं ।

मगर याद आता वो शामो सहर है ।।

तमन्ना थी जिसको बसा लूं मैं दिल मे ।

मेरी आरजू से वही बेख़बर है ।।

मुलाक़ात जाइज कहेगी ये दुनिया ।

तेरे ही गली से मेरा रहगुज़र है ।।

- नवीन मणि त्रिपाठी

Views: 474

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by दिगंबर नासवा on November 21, 2019 at 9:49am

एक अच्छा प्रयास है आपका ... मेरी बहुत बधाई ...

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 20, 2019 at 4:29am

आ. भाई शवीन जी, गजल का अच्छा प्रयास हुआ है । हार्दिक बधाई।

Comment by Samar kabeer on November 16, 2019 at 3:02pm

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब, तरही ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

'नहीं यूँ ही दीवाने आए हरम तक ।

इशारा तेरा भी हुआ मुख़्तसर है'

भाव की दृष्टि से इस शैर के सानी मिसरे में 'भी' शब्द भर्ती का है,और क़ाफ़िया भी उचित नहीं है ।

'है मकतल सा मंजर हटा जब से चिलमन'

इस मिसरे में 'चिल्मन' शब्द स्त्रीलिंग है ।

'मुलाक़ात जाइज कहेगी ये दुनिया ।

तेरे ही गली से मेरा रहगुज़र है'

इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,दूसरी बात ये कि 'रहगुज़र' शब्द स्त्रीलिंग है,देखियेगा ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"एक ग़ज़ल  221    1221   1221    12 ये ज़िन्दगी  अहबाब…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर और भावप्रधान गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"सीख गये - गजल ***** जब से हम भी पाप कमाना सीख गये गंगा  जी  में  खूब …"
14 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"पुनः आऊंगा माँ  ------------------ चलती रहेंगी साँसें तेरे गीत गुनगुनाऊंगा माँ , बूँद-बूँद…"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"एक ग़ज़ल २२   २२   २२   २२   २२   …"
21 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"स्वागतम"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service