आरती और वैभव के बीच में कल रात से ही झगड़ा चल रहा था ,मुद्दा वही उपर की आमदनी का ,जिसे आरती अपने घर में कदापि भी खर्च करना नही चाहती थी | वैभव ने अपनी पत्नी आरती को पैसे की अहमियत के बारे में बहुत समझाया और बताया कि उसके दफ्तर में सब मिल बाँट कर खातें है लेकिन आरती के लिए रिश्वत तो पाप कि कमाई थी , वैभव के लाख समझाने पर भी जब आरती नही मानी तो गुस्से में उसने आरती से साफ़ साफ़ कह दिया था कि अगर आरती ने इस मुद्दे पर और बहस की तो वह उससे सदा के लिए सम्बन्ध विच्छेद कर…
ContinueAdded by Rekha Joshi on June 28, 2012 at 11:42am — 4 Comments
सूरज चढ़ गया है गर्मी के पहाड़ पे.....
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सूरज फिर चढ़ गया है गर्मी के पहाड़ पे और फेंक रहा है आग के गोले समूची कायनात में. सुबह के आठ बजे हैं, पर दिन इतना पीला हो गया है जैसे कि बस दोपहर होने को है. सड़कों पे लोग आ जा तो रहे हैं मगर दिख रहें हैं कुछ इस तरह जैसे स्लो मोशन में कोई सत्तर के दशक की फिल्म चल रही हो.
फेरी वाले की आवाज या ऑटोरिक्शा की घरघराहट किसी आर्तनाद जैसी लगती है…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on June 28, 2012 at 10:58am — No Comments
बुरा करते हैं और कहते हैं बुरा न मानना
बुतोंको सजदे करना है तो खुदा न मानना
प्यारकी इब्तिदा होती है इन्कारसे तोफिर
वफ़ा का अव्वल सबक है वफ़ा न मानना
तुम्हें क्या खबर कि हम जानतेहैं हालेदिल
ये उनकी आदत है हमें आशना न मानना
अहसाँ समझके ही दो टुक तो कुछ बोलिए
भला कुबूल है पे ये क्या, भला न मानना
मैं तो बस इत्तेफाक़से हमराह हो गया था
हमें अपना दोस्त याकि हमनवा न मानना
ज़रा संभल के…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on June 28, 2012 at 10:53am — No Comments
फ़ित्ने-नौ यूँ उठाने लगी ज़िंदगी |
आँख उनसे लड़ाने लगी ज़िंदगी ||
ताज़ा दम होने को आए थे बज़्म में,
सूलियों पे चढ़ाने लगी ज़िंदगी ||
होश खाने लगी मौत भी देखिये,
फिर ये क्या गुनगुनाने लगी ज़िंदगी ||
उनकी आवाज़ फिर आईना बन गई,…
Added by डॉ. नमन दत्त on June 28, 2012 at 8:52am — 2 Comments
तेरेही रंगमें रंगी खुदाई दिखती है
दुनिया तमाम तमाशाई दिखती है
कोई राहगुज़र नयी नहीं लगतीहै
एक- एक राह आजमाई दिखती है
ये कैसा शोर है घरमें नयानया सा
छतपे एक चिड़िया आई दिखती है
दूरसे महसूस किया बिछडनेका पर
ज़िंदगानी करीबसे पराई दिखती है
दिल क्यूँ चुप है येतुम क्या जानो
गरीबकी बस्ती है सताई दिखती है
उंगलियां तेरी चार मिसरे रुबाई के
कोई गज़ल तिरी कलाई दिखती…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on June 27, 2012 at 4:41pm — 8 Comments
जबहो जुनून सवार मिस्लेअस्प सर में
तब की फर्क पैंदा आबेहयातओज़हर में
खुदाभी यही कहता है लौट आओ पास
कितना सुकून है बैठे बैठे अपने घर में
कितने तज़ब्जुब से भरा है सफरेज़ीस्त
कोई कल्ब ज्यूँ भटकताहो राहगुज़र में
दुनियामें कुछ नहींहै दीदनी दिखावा है
तमाम तिलिस्मात बस भरे हैं नज़र में
तमाम दुनियामें जो महसूस करे तन्हा
समूची कायनात समाई है उस बशर में
कम लोग जाने हैं तामीरेखल्कका…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on June 27, 2012 at 4:00pm — 3 Comments
ओबीओ के मित्र जनाब अलबेला खत्री साहेब ने एक शेर मुझसे फर्माया वो ये कि- ‘सबकुछ है इस जहान में तन्हाई नहीं है, अफ़सोस की है बात कि शनासाई नहीं है’
इस शेर से मुतास्सिर होके ये पूरी गज़ल लिखी गई है, पेश कर रहा हूँ, मुलाहिजा फरमाइए:
तू नहीं है जिन्दगी में तो लुत्फेतन्हाई भी नहीं है
ये यूँ हैकि आग लगाई नहीं तो बुझाई भी नहीं है
ठहरा ठहरा है दरख्तों पे शामका इक तवील साया
शब लिखनेवालेके कलममें जैसे रोशनाईभी नहीं है…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on June 27, 2012 at 2:55pm — 3 Comments
तुमको चाहा हमने तो मायूसी मिली
और न पाया तुझे तो जिन्दगी मिली
गले मिल के साथ साथ दोनों रोते थे
कल रात मेरे दुखोंसे जब खुशी मिली
आह तेरा दीद अश्कसे सूखी आँखोंको
समा न पाए जो इतनी रौशनी मिली
दामानेयार की सबा से मरनेवालों को
साअतेमर्ग दो पल की जिन्दगी मिली
कलशब कोई आधीरात कहके रोताथा
वफ़ा नीमशबहै मिली पे अधूरी मिली
नसीब देताहै पर क्या ये बात दीगरहै
दिल की लगी चाही पे…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on June 27, 2012 at 12:58pm — 1 Comment
ज़िंदगी गुज़र न जाए कहीं सवालों में
कि ज़रा शराबभी ढालो रखे प्यालों में
तमन्ना है कि अवाम का कहलाऊं मैं
नाम लिया न जाए फक़त मिसालों में
कहींतो कोई बात कुछ गलत लगतीहै
तफरका क्यूँ हुआ है तेरेमेरे हवालों में
भूख मिटाए ये ताकत नहीं निवालोंमें
आह ये बच्चे गड्ढे हैं जिनके गालोंमें
गुबारेख्वाब फूट जाता है ऊँचा हो कर
मंसूबे हमनेभी बाँधे थे कई ख्यालों में
सुनाहै दमेमर्ग नाबीनाभी देख…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on June 27, 2012 at 12:21pm — 1 Comment
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 27, 2012 at 9:30am — 6 Comments
सबों से दिल की मुश्किलों का सबब क्या कहिए
मगर जब अपनेही पूछें येसवाल तब क्या कहिए
वक्त क्यूँ ढाता है मासूमों पर गजब क्या कहिए
कहाँ जाती है नेकी -ए-कायनात अब क्या कहिए
रूठकर खो गई जो अज्दाहामे फिक्रेदौराँ में कभी
होती है अबभी उन निगाहोंकी तलब क्या कहिए
बहुत एहतियात से हुस्न की नजाकत संभालिए
रहिए फिक्रमंद कि तबक्या और अबक्या…
Added by राज़ नवादवी on June 27, 2012 at 12:11am — 5 Comments
दो घूँट पिला दे साकी तो कोई बात बने
तेरे गेसुओं से बुन के आज की रात बने
दो किनारे हैं समंदरके कहाँ मिल पाते हैं
कोई सूरत कमरओमेहरकी मुलाक़ात बने
आओ कर लें दुआ इन्केलाबे तगय्युर की
अज़- सरे- नौ अब आईन्दा कायनात बने
गर तेरी निगाह है बादा तो दुआ करता हूँ
देखने वालों के सीने में एक खराबात बने
ख़्वाब कामिलहो, मनचाही…
Added by राज़ नवादवी on June 27, 2012 at 12:07am — 2 Comments
अब और जी के जहाँमें क्या कर लेंगे
चलो हम आलमेबालामें नया घर लेंगे
ये कहाँ आ गए, किस मोड़पे हो तुम
मंजिल नहीं हो तो क्यूँ राहगुज़र लेंगे
न जाओ तुम मेरी बेफ़िक्रीओमस्ती पे
होश खो दोगे कभू हम जो संवर लेंगे
इन परीरूओं के दामसे बच कर रहना
इक हंसी देंगे तो बदले में जिगर लेंगे
सब्र करिए कि सब्र का फल मीठा है
लेंगे…
Added by राज़ नवादवी on June 27, 2012 at 12:04am — 1 Comment
मकते का शेर दरअसल इस बात के पसेमंज़र कहा गया है कि मेरे ख्यालों की उड़ान, मेरे मिजाजोतबीयत की रुझान और मेरी मआशी (आजीविका से जुडी) ज़िंदगी में कोई मेल नहीं है और मैं अक्सरहा खुद को गलत जगह पाता हूँ.
खुदा के बंदे हैं खुदा के बन्दों से क्यूँ डरें
आओ प्यारसे एक दूसरेको बाहोंमें भरलें
अगर तुम मिल जाओ किसी साअत मुझे
सुबहें भी बस थमी रहें, शामें भी ना ढलें
ज़मानेको कहाँ नसीब मेरे ख्यालोंकी…
Added by राज़ नवादवी on June 27, 2012 at 12:03am — 2 Comments
कोई हसीन नज़ारा नज़र को चाहिए
बसएक दरीचा दीवारोदर को चाहिए
लो फ़ैल गई किसी जंगलकी आगसी
अफवाहों की तेज़ी खबर को चाहिए
थोड़ी ज़मीन और थोड़ा आबो रौशनी
बस यही दौलत बेखेशज़र को चाहिए
दो जामा एक चारपाई माथे पर छत
और दो जूनकी रोटी बशरको चाहिए
क्यूँ दिल को तेरा ख़याल हर साअत
और तेरे मूका दीदार नज़रको चाहिए
तेरी…
Added by राज़ नवादवी on June 27, 2012 at 12:00am — 2 Comments
ना करो कोई तफरका लड़के और लड़की में
तुख्मेखल्क बराबर है औरत और आदमी में
जो तुम मार डालोगे अपनीही कोखका जना
तोफिर क्या फर्क रहेगा इंसान और वहशीमें
बेटियाँ तो गुलपाश हैं गुलिस्ताने कुनबा की
फैलतीहैं ये बनके मुश्केबू हज़ार ज़िन्दगी में
ए ज़हालतमें भटकेहुए बिरादर संभल जाओ
तारीकीएतआस्सुबसे निकल आओ रौशनी में
बेटेतो बड़े होके बसा लेते हैं अपना घोंसला
बेटियाँ पोछतीहैं आपके आंसूं खुशीओगमीमें
न होती मरियम तो कहाँ होते…
Added by राज़ नवादवी on June 26, 2012 at 11:57pm — 2 Comments
ज़माने भर की सताइश भी बहुत कम है
जोतेरे दहनपे मेरी तारीफ़का एक ख़म है
इक मुहब्बतथी जावेदां वोभी नहीं नसीब
इस आलमे फना में क्या दूसरा अलम है
कहानी नई नहीं अजअज़ल यही दास्ताँहै
दिल है तो दर्द है, मुहब्बत है तो गम है
आओ बताएं क्याक्या है बागेमुहब्बत में
जुल्म है ज़ोर है ज़ब्र है जफा है सितम है
ज़िंदगी एकसी है दर्द एक इन्केशाफ एक
आँखों को जैसे अश्क गुलों को शबनम है
ये कायनात कोई ख्वाब बीदा परीज़ादी है …
Added by राज़ नवादवी on June 26, 2012 at 11:54pm — 2 Comments
कब तलक यूँ ही गली-गली में सताई जाएँगी बेटियाँ
कभी ज़हेज़ तोकभी इज्ज़तको जलाई जाएँगी बेटियाँ
कब तलक दुल्हन बननेके लिए गैरतके खरीदारों को
सजा-धजाके किसी खिलौनेसी दिखाई जाएँगी बेटियाँ
माँ बहन बीवी और बेटी सभी हैं आखिरशतो बेटियाँ
फिर क्यूँ कब्रसे पहले हमल में सुलाई जाएँगी बेटियाँ
खुदा भी क्या सोचता होगा आलमेअर्श में बैठा- बैठा
अगले खल्कमें सिर्फ और सिर्फ बनाई जाएँगी बेटियाँ
अगर यूँ ही बेटियों को तआस्सुब से देखा जाएगा तो …
Added by राज़ नवादवी on June 26, 2012 at 11:50pm — 2 Comments
भीनी भीनी मीठी मीठी
मधुर सुगन्ध लिए
साहित्य विहार में बहार देवनागरी
बिखरी अनेकता को
एकता में जोड़ती है
तार तार से जुड़ी सितार देवनागरी
नेताजी,पटेल,लाला
लाजपत राय जैसे
क्रान्तिकारियों की तलवार देवनागरी
तुलसी,कबीर,सूर,
रहीम,बिहारी,मीरा,
रसखान से फूलों का हार देवनागरी
Added by Albela Khatri on June 26, 2012 at 11:00pm — 12 Comments
तू बादल है मैं मस्त पवन
उड़ते फिरते उन्मुक्त गगन
गिरने न दूंगा धरा मध्य
बाहों में ले उड़ जाऊँगा
तू बादल है मैं मस्त पवन
उड़ते फिरते उन्मुक्त गगन
.
मन के सूने आँगन में
मस्त घटा बन छायी हो
रीता था जीवन मेरा
बहार बन के आयी हो
जम के बरसो थमना नहीं
प्यासा न रह जाए ये…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 26, 2012 at 10:14pm — 1 Comment
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