बुरा करते हैं और कहते हैं बुरा न मानना
बुतोंको सजदे करना है तो खुदा न मानना
प्यारकी इब्तिदा होती है इन्कारसे तोफिर
वफ़ा का अव्वल सबक है वफ़ा न मानना
तुम्हें क्या खबर कि हम जानतेहैं हालेदिल
ये उनकी आदत है हमें आशना न मानना
अहसाँ समझके ही दो टुक तो कुछ बोलिए
भला कुबूल है पे ये क्या, भला न मानना
मैं तो बस इत्तेफाक़से हमराह हो गया था
हमें अपना दोस्त याकि हमनवा न मानना
ज़रा संभल के छूना के हरारत भरी हुई है
मेरे अश्कोंको इतनाभी गुनगुना न मानना
शायर हो अदीब, या कि हो कोई फलसफी
कितनेभी हों अजीब पे सरफिरा न मानना
खुद ही मना कीजिए तो बात बन जाएगी
राज़ उनकी खू है कोई इल्तेजा न मानना
© राज़ नवादवी
भोपाल, २५/०५/२०१२
बुतोंको सजदे करना है तो- मूर्तियों के सामने सर झुकाना है तो; इब्तिदा- शुरूआत; अव्वल- प्रथम; आशना- अपना; हमनवा- साथ गाने वाला; हरारत- गर्मी; अदीब- साहित्यकार; फलसफी- फिलोसोफर; खू- आदत; इल्तेजा- निवेदन.
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