तेरेही रंगमें रंगी खुदाई दिखती है
दुनिया तमाम तमाशाई दिखती है
कोई राहगुज़र नयी नहीं लगतीहै
एक- एक राह आजमाई दिखती है
ये कैसा शोर है घरमें नयानया सा
छतपे एक चिड़िया आई दिखती है
दूरसे महसूस किया बिछडनेका पर
ज़िंदगानी करीबसे पराई दिखती है
दिल क्यूँ चुप है येतुम क्या जानो
गरीबकी बस्ती है सताई दिखती है
उंगलियां तेरी चार मिसरे रुबाई के
कोई गज़ल तिरी कलाई दिखती है
अस्ल कब नज़र आया है नज़रको
देखने का ऐब है परछाई दिखती है
जबीं पे गो नक्श हैं जीने मरने के
आँखमें अज़लकी तन्हाई दिखती है
बेबसी हैकि तज़ब्जुब छुपालेते है
दूसरोंको येमेरी पारसाई दिखती है
राज़ मुख्तलिफ़ है सबकी हकीकत
देखने को बस इज्तेमाई दिखती है
राज़ नवादावी
भोपाल, रात्रिकाल २२.०६, १९/०६/२०१२
अज़लकी तन्हाई- सृष्टि की प्रारंभिक नीरवता; तज़ब्जुब- असमंजस, उहापोह, दुविधा, शंका; पारसाई- पवित्रता; मुख्तलिफ़- अलग-अलग; इज्तेमाई- सामूहिक, एक जैसी.
Comment
आदरणीया एवं मोहतरमा रेखाजी, आपका बहुत बहुत धन्यवाद कि आपने मेरी ग़ज़लों को पढ़ा और मुझे प्रेरणा दी. सदैव याद रखूंगा आपका ये स्नेह. आपका ही, राज़ नवादवी!
आदरणीय राज़ जी ,
कोई राहगुज़र नयी नहीं लगतीहै
एक- एक राह आजमाई दिखती है ,उम्दा ग़ज़ल ,आपने तो गजलों की एक लड़ी पिरो कर पोस्ट कर दी ,आपकी हर रचना बधाई के योग्य है ,लिखते रहें
आदरणीय राज नवादवी जी हमारे जज्बात को अन्यथा ना लें आपकी सभी गजल उम्दा है
आपने एक साथ इतनी गजलें डाल दी की हमें आपकी कारगुजारी पर हंसी आ गई हुजुर एक एक गजल
को समझने के लिए काफी समय चाहिए अतः आपसे निवेदन है की गजलों को पोस्ट करने में फासला रक्खें
अस्ल कब नज़र आया है नज़रको
देखने का ऐब है परछाई दिखती है....कितनी गहरी बात कही है आपने इसको समझने में हमें घंटों लगे
रचना बेहतरीन है आपके गजलों की प्रस्तुति हमें खूबसूरत हास्य मय लगी थी अतः क्षमा प्रार्थी है हम
हमरा उद्देश्य केवल यह है की आप अन्य रचनाकारों के बारे में भी सोंचे
साथ उम्दा रचना के लिए बधाई
खूबसूरत हास्य गज़ल
जनाब उम्दा ख्यालात को पैरहन दिया है आपने, तुकबंदी तो नाफहमों को लगेगी. बहुत खूब.
दोस्ती शाइर से हो तो दाद देनी चाहिए
इस ज़मीं पर अपने हाथों खाद देनी चाहिए
हौसले से बढ़ के कोई शै नहीं कायनात में
हो सके तो खुलके ये इमदाद देनी चाहिए
____हा हा हा हा
_______राज़ साहेब ये लो तुकबन्दी हो गई...हा हा हा
वाह जनाब अलबेला साहेब, वाह! आपकी दाद का अंदाज़ मुर्दों में भी जाँ फूंक दे. सच, दिल को खुशी, जिगर को सुकून हुआ, आपके हर लफ्ज़ पे मैं आपका मम्नून हुआ!
- राज़ नवादवी
क्या कहने जनाब राज़ साहेब........
वाह !
दिल क्यूँ चुप है येतुम क्या जानो
गरीबकी बस्ती है सताई दिखती है
उंगलियां तेरी चार मिसरे रुबाई के
कोई गज़ल तिरी कलाई दिखती है
___ग़ज़ल मुबारक़ !
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