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राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ११

दो घूँट पिला दे साकी तो कोई बात बने 
तेरे गेसुओं से बुन के आज की रात बने

दो किनारे हैं समंदरके कहाँ मिल पाते हैं
कोई सूरत कमरओमेहरकी मुलाक़ात बने 

आओ कर लें दुआ इन्केलाबे तगय्युर की 
अज़- सरे- नौ अब आईन्दा कायनात बने

गर तेरी निगाह है बादा तो दुआ करता हूँ
देखने वालों के सीने में एक खराबात बने

ख़्वाब कामिलहो, मनचाही कायनात बने 
और टूटेतो फिर रेज़ारेज़ा तिलस्मात बने 

तेरी हर ख्वाहिश मेरे लिए फरमानसी है 
मेरा हरगम तेरेलिए बाईसेइम्बिसात बने 

राज़ पूरा हुआ अब आदमोहव्वाका सफर 
आदमीसे और भी आगेकी एक ज़ात बने

© राज़ नवादवी
पुणे, १०.५० सुबह, १२/०६/२०१२ 

गेसू- स्त्री की केशराशि जो उसकी पीठ पे फ़ैली होती है; कमरओमेहर- सूरज और चाँद; इन्केलाबे तगय्युर- परिवर्तन की क्रान्ति; अज़- सरे- नौ- नए सिरे से; आईन्दा- आगे से; कायनात- ब्रहामांड, दुनिया; बादा- शराब; खराबात- मधुशाला; ख्वाह- चाहे; कामिल- पूर्ण; रेज़ारेज़ा- टुकड़ा- टुकड़ा; तिलस्मात- मायाजाल, माया रचित स्तान; बाईसेइम्बिसात- आनद का कारण; आदमोहव्वाका सफर- जर्नी ऑफ एडम एंड ईव; ज़ात- प्रजाति.

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on June 27, 2012 at 11:40pm

खूबसूरत हास्य गज़ल


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Comment by अरुण कुमार निगम on June 27, 2012 at 11:40pm

खूबसूरत हास्य गज़ल

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