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राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ९

मकते का शेर दरअसल इस बात के पसेमंज़र कहा गया है कि मेरे ख्यालों की उड़ान, मेरे मिजाजोतबीयत की रुझान और मेरी मआशी (आजीविका से जुडी) ज़िंदगी में कोई मेल नहीं है और मैं अक्सरहा खुद को गलत जगह पाता हूँ. 

खुदा के बंदे हैं खुदा के बन्दों से क्यूँ डरें
आओ प्यारसे एक दूसरेको बाहोंमें भरलें 

अगर तुम मिल जाओ किसी साअत मुझे 
सुबहें भी बस थमी रहें, शामें भी ना ढलें 

ज़मानेको कहाँ नसीब मेरे ख्यालोंकी तेज़ी 
चलो अब इस दौरसे आगे कहीं और चलें 

इक लम्सका सवाल है, जाने कहाँ लेजाए 
थोड़ा संभल कर चमकती चीज़ों को छुएं 

तेरी - मेरी मुहब्बत का नज़ारा कुछ यूँ है 
दो चराग ज्यूँ सहरा के बियाबानों में जलें 

गरचे असबाब नहीं हैं तो क्या ज़हनतो है 
आओ ठिठुरती रातोंमें ख्यालों को पहनलें 

क्या देगी नशा मय जो देती है तवज्जोह 
देखिए इस खराबातेरूहसे हम कब निकलें 

आज-न-कल खबरहो जाएगी राज़ कौन है 
कौओं के घोसलों में कोयलें कब तक पलें

© राज़ नवादवी 
भोपाल, अर्धरात्रि, १२.३२, २५/०६/२०१२ 

साअत- घड़ी; लम्स- स्पर्श; सहरा- रेगिस्तान; बियाबानों में- सुनसानों में; असबाब- जीवन यापन के ज़रूरी सामान; ज़हन- आतंरिक प्रतिभा, अंतरात्मा; मय- शराब; तवज्जोह- इश्वर का ध्यान; खराबातेरूहसे- आत्मा रूपी मदिरालय से.

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Comment by राज़ नवादवी on June 28, 2012 at 10:25am

धन्यवाद भाई अरुण एवं उमाशंकर जी जो आपने पढाने के ज़हमत उठाई! 

- राज़ नवादवी 


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Comment by अरुण कुमार निगम on June 27, 2012 at 11:43pm

खूबसूरत हास्य गज़ल

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"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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