तू बादल है मैं मस्त पवन
उड़ते फिरते उन्मुक्त गगन
गिरने न दूंगा धरा मध्य
बाहों में ले उड़ जाऊँगा
तू बादल है मैं मस्त पवन
उड़ते फिरते उन्मुक्त गगन
.
मन के सूने आँगन में
मस्त घटा बन छायी हो
रीता था जीवन मेरा
बहार बन के आयी हो
जम के बरसो थमना नहीं
प्यासा न रह जाए ये मन
तू बादल है मैं मस्त पवन
उड़ते फिरते उन्मुक्त गगन
.
तू मीत मेरी मैं मीत तेरा
मिल मीठे स्वप्न सजायेंगे
चमकेगी दामिन घटा मध्य
पास सिमट हम आयेंगे
जीवन के रच नित नए गीत
धन्य करें अपना जीवन
तू बादल है मैं मस्त पवन
उड़ते फिरते उन्मुक्त गगन
.
श्याम सुकोमल बदन तेरा
तितली सी मंडराती हो
चंचल चितवन मृगनयनी बन
अन्तः कानन घर कर जाती हो
पा कर तेरा कोमल स्पर्श
पुलकित हो जाता मेरा मन
तू बादल है मैं मस्त पवन
उड़ते फिरते उन्मुक्त गगन
.
तू मुझमे है मैं तुझमे हूँ
कहाँ हैं दोनों जुदा जुदा
मीठे अहसासों की धुन पर
नया सुर संसार बसाएंगे
तू राग मैं तेरी रागिनी बन
साथ रहेंगे सातों जनम
तू बादल है मैं मस्त पवन
उड़ते फिरते उन्मुक्त गगन
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स्वन्ताय सुखाय लेखन है.
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