जबहो जुनून सवार मिस्लेअस्प सर में
तब की फर्क पैंदा आबेहयातओज़हर में
खुदाभी यही कहता है लौट आओ पास
कितना सुकून है बैठे बैठे अपने घर में
कितने तज़ब्जुब से भरा है सफरेज़ीस्त
कोई कल्ब ज्यूँ भटकताहो राहगुज़र में
दुनियामें कुछ नहींहै दीदनी दिखावा है
तमाम तिलिस्मात बस भरे हैं नज़र में
तमाम दुनियामें जो महसूस करे तन्हा
समूची कायनात समाई है उस बशर में
कम लोग जाने हैं तामीरेखल्कका सच
ये दुनिया पैदा हुई इक इब्तेदाई डर में
फीका लगताहै ज़ायका कारीगरीका यारो
रंग मिहनत का ना भरो अगर हुनर में
ज़माना आसानी से भुला बैठा उन्हें जो
हुए शहीद आज़ादी-ए-मुल्क की ग़दर में
हमारी तनहाई बयाँ है सुकूते दोपहर से
तुम्हारी रौनक दरख्शाँ है शामओसहरमें
ये शिगाफ यहाँ-वहाँ और शाखेसब्ज़ नई
लौट के रौनक आई है मेरे दीवारोदर में
रहेंहैं हम अपनी इन्फेरादियतमें कामिल
ये ज़माना है गू -ए-तुफ्ल मेरी ठोकर में
ज़रा एहतियातसे थामो गुलोबर्गका दामाँ
गोदिखे नहीं पेइक नन्हीं जाँहै शजर में
क्या नई बात है बयानेहकीक़त में राज़
मिलाओ कुछ बात झूठी आज खबर में
© राज़ नवादवी
भोपाल, अपराह्न्न १५.५४, २५/०६/२०१२
मिस्लेअस्प- घोड़े के तरह; आबेहयातओज़हर- अमृत और विष; तज़ब्जुब- पसोपेश, उलझन; सफरेज़ीस्त- जिन्दगी का सफर; कल्ब- कुत्ता; दीदनी- देखने योग्य; तिलिस्मात- तिलिस्म का बहुवचन, इंद्रजाल, मायाजाल; कायनात- ब्रह्माण्ड; बशर- व्यक्ति; तामीरेखल्कका सच- सृष्टि के निर्माण का सच; इब्तेदाई डर- प्रारंभिक भय जब इश्वर परा परा अवस्था (beyond beyond state of God) से पहली चेतनावस्था में आया और स्वयं को नितांत अकेला पाया; सुकूतेदोपहर- दोपहर की नीरवता; दरख्शाँ- प्राकाश्मान; शामओसहर- सुबह और शाम; शिगाफ- दरार; इन्फेरादियत- अकेलापन; कामिल- पूर्ण; गू -ए-तुफ्ल- बच्चों की गेंद; गुलोबर्गका दामाँ- फूल और पत्तों का आँचल; शजर- पेड़.
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क्या नई बात है बयानेहकीक़त में राज़
मिलाओ कुछ बात झूठी आज खबर में ...सौ टका सच कहा आपने
खूबसूरत हास्य गज़ल
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