ओबीओ के मित्र जनाब अलबेला खत्री साहेब ने एक शेर मुझसे फर्माया वो ये कि- ‘सबकुछ है इस जहान में तन्हाई नहीं है, अफ़सोस की है बात कि शनासाई नहीं है’
इस शेर से मुतास्सिर होके ये पूरी गज़ल लिखी गई है, पेश कर रहा हूँ, मुलाहिजा फरमाइए:
तू नहीं है जिन्दगी में तो लुत्फेतन्हाई भी नहीं है
ये यूँ हैकि आग लगाई नहीं तो बुझाई भी नहीं है
ठहरा ठहरा है दरख्तों पे शामका इक तवील साया
शब लिखनेवालेके कलममें जैसे रोशनाईभी नहीं है
रूहमें तेरे इन्तेज़ारका मीठामीठा दर्द नहीं है आज
जिस्म में हररोज की लहर-ओ-अंगडाई भी नहीं है
कैसे मानूं ज़मानेका बहाना जोतू वस्लसे गुरेज़ाँ है
लोगोंकी नज़रेखम नहीं, चर्चाए-रुसवाई भी नहीं है
न रही महफ़िलें गए ज़मानों की न गुलरु रक्कासें
और इस दौरके कद्रदानोंकी वैसी पार्साईभी नहीं है
तूही बता हमें वो जहां इस जहांमें हम जाएँ जहां
तू नहीं है, तेरी यादें नहीं, तेरे परछाई भी नहीं है
वक्त तो फिरभी इन्तेज़ार करता है नए वक्त का
आदमी में कल के लिए सब्रो शिकेबाई भी नहीं है
आओ आज कुछ मजे करते हैं साथ-साथ दो घड़ी
मेरा रकीबोकारिज़ और उसका तकाज़ाईभी नहीं है
वो कहाँ गाँव की मिल्लत, कहाँ खैरख्वाहीकी बातें
शहरोंमें आशनाई क्या कहिए शनासाई भी नहीं है
चलो आज चलते हैं सैर पे कहीं बाहर खाने राज़
आज उन्होंने रसोई की अंगीठी जलाई भी नहीं है
© राज़ नवादवी
भोपाल, अपराह्न ०२.४२, २७/०६/२०१२
तवील – दीर्घ, लंबा; गुलरु रक्कासें- फूलों जैसे चेहरों वाली नर्तकियां; पार्साई- पवित्रता; शिकेबाई- सहिष्णुता; रकीबोकारिज़- प्रेम में प्रतिद्वंदी और उधार देनेवाला; तकाज़ाई- तकाज़ा करने वाला; खैरख्वाही- कुशल-मंगल; आशनाई- मित्रता, दोस्ती; शनासाई- परिचय;
Comment
खूबसूरत हास्य गज़ल
जनाब शुक्रिया अलबेला साहेब.
'आपने जिन्हें खासकर अच्छा कहा,
उन अशआरोंको हमने कई बार पढ़ा.'
- राज़ नवादवी
बहुत खूब बन्धुवर राज़ नवादवी जी.....
उम्दा ग़ज़ल ..........
वो कहाँ गाँव की मिल्लत, कहाँ खैरख्वाहीकी बातें
शहरोंमें आशनाई क्या कहिए शनासाई भी नहीं है
चलो आज चलते हैं सैर पे कहीं बाहर खाने राज़
आज उन्होंने रसोई की अंगीठी जलाई भी नहीं है
___मुबारक़ हो.......
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