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औरत वही जो औरों के हित देती अपनी क़ुरबानी 
नारी जीवन शीतल सा पानी और चंदा सी चांदनी ||
 
औरों के हित रत, खुद का तन तपता रेगिस्तानी 
आदमी का भ्रूण सहर्ष सैहती दे अपनी बच्चेदानी ||
 
औरत  त्याग की मूरत, ढक घूँघट में अपनी सूरत 
थकी-हारी मशीनरी सी करती सबकी पूरी जरुरत ||
 
अबला नहीं है औरत मत कुचलों कलियों का अरमान 
अहिल्या औ लक्ष्मी बाई का देख चुके हम बलिदान || 
-
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला,जयपुर 

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 28, 2012 at 10:04am

स्नेहिल श्री अलबेला खत्रीजी, कुमार गौरव अजितेंदुजी, रेखा जोशीजी,राजेश कुमारीजी "औरत की क़ुरबानी" पर हम सभी नत मस्तक है और सभी माता के ऋण से मुक्त नहीं हो सकते | आप सभी का हार्दिक आभार और स्नेह बनाए रखने के लिए दर्दिक धन्यवाद

व्यंग दोहे "अर्थ तंत्र पर भारी" latest  blogs में छपने से रह गया कृपया पढ़ कर मार्ग दर्शन करे - लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला 
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 28, 2012 at 10:00am

स्नेहिल श्री अलबेला खत्रीजी, कुमार गौरव अजितेंदुजी, रेखा जोशीजी,राजेश कुमारीजी 

"औरत की क़ुरबानी" पर हम सभी नत मस्तक है और सभी माता के ऋण से मुक्त नहीं 
हो सकते | आप सभी का हार्दिक आभार और स्नेह बनाए रखने के लिए दर्दिक धन्यवाद 

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Comment by rajesh kumari on June 28, 2012 at 8:45am

नारी के त्याग सहनशीलता ,वीरता बलिदान सभी का बहुत सुन्दर विश्लेषण किया है कुछ ही पंक्तियों में आपने ...बहुत उम्दा ..आपको हार्दिक   बधाई 

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on June 27, 2012 at 8:21pm
बिलकुल सही कहा आपने आदरणीय लक्ष्मण सर...
Comment by Rekha Joshi on June 27, 2012 at 8:07pm

आदरणीय लक्ष्मण जी ,

औरत  त्याग की मूरत, ढक घूँघट में अपनी सूरत 
थकी-हारी मशीनरी सी करती सबकी पूरी जरुरत |,नारी त्याग की मूर्ति है ,नारी पर बढ़िया रचना ,बधाई 
Comment by Albela Khatri on June 27, 2012 at 7:50pm

बहुत खूब लक्ष्मण प्रसाद जी.......

उम्दा कविता  ........

अबला नहीं है औरत मत कुचलों कलियों का अरमान 
अहिल्या औ लक्ष्मी बाई का देख चुके हम बलिदान ||

__बधाई !

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