हर लम्हें में निहाँ हैं अक्स जिंदगी का।
ढूंढते रह जाओगे नक्श जिंदगी का ।।
रुठों को मनाने में लग जाते हैं जमाने।
ता-उम्र चलता रहता हैं रक्स जिंदगी का।।
रंजो-गम में जो साथ न छोडे।
सबसे बेहतर है वो शख्स जिंदगी का।।
राहें-मंजिल में जो कदम न लडखडाए।
हासिल कर ही लेते हैं वो लक्ष जिंदगी का।।
बनी पे लाखों निसार हो जाते है चंदन।
कोई नहीं होता बरअक्स जिंदगी का।।
नेमीचन्द पूनिया चंदन े
Added by nemichandpuniyachandan on April 10, 2011 at 12:00pm — 1 Comment
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on April 9, 2011 at 10:00pm — 4 Comments
ग़ज़ल :- ज़िंदगी है या शगूफा या रब !
अब तो कम खुद पे भरोसा या रब ,
ज़िंदगी है या शगूफा या रब |
लड़की रस्सी मदारी सब तू है ,
खेल नज़रों का है धोखा या रब…
ContinueAdded by Abhinav Arun on April 9, 2011 at 3:30pm — 2 Comments
Added by Rajeev Mishra on April 9, 2011 at 2:53pm — 3 Comments
जो हौसला बलंद है नफस नफस कमंद है
हमारी हर ख़ुशी हमारे हौसलों में बंद है
वो बेकसी अतीत है यही हमारी जीत है
हर एक देशवासी के लबों पे ये ही गीत है
ये एकता मिसाल है हमारा ये कमाल है
वतन के लब पे आज भी मगर वही सवाल है
है कौन दूध का धुला अभी तलक नहीं खुला
अभी तक इस पियाले में ज़हर का घूँट है घुला
भरें सभी तिजोरियां हैं कैसी कैसी चोरियां
सुला रहे हैं हम ज़मीर को सुना के लोरियां
उठो के वक़्त आ गया उठाओ हर क़दम…
Added by Mumtaz Aziz Naza on April 9, 2011 at 1:00pm — 2 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on April 9, 2011 at 11:30am — 2 Comments
Added by Lata R.Ojha on April 8, 2011 at 4:57pm — 4 Comments
Added by अमि तेष on April 8, 2011 at 2:00pm — 14 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on April 8, 2011 at 12:59pm — 2 Comments
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 7, 2011 at 11:26pm — 3 Comments
Added by Sanjay Rajendraprasad Yadav on April 7, 2011 at 2:00pm — 4 Comments
हो गया ख़ाक इक शरारे में,
कुछ ना बाकी रहा बेचारे में.
देखो हालात क्या कराते हैं,
खुद शिकारी बंधा है चारे में.
हार खुद हम ही मान बैठे थे,…
ContinueAdded by Akhilesh Krishnawanshi on April 7, 2011 at 1:41pm — 6 Comments
Added by neeraj tripathi on April 7, 2011 at 11:35am — 2 Comments
मै मरघट में जब जाता हूँ ,
मै मर-घट में मर जाता हूँ ,
जब मर और घट न घट पाए..
तो खुद ही मै घट जाता हूँ .//
मै मरघट को समझाता हूँ ,
कि …
ContinueAdded by Rajeev Kumar Pandey on April 7, 2011 at 10:39am — 1 Comment
Added by rajkumar sahu on April 6, 2011 at 11:44pm — No Comments
" जब बात चुक जाए और वक्त रेत की तरह हांथो से फिसल जाए , तो दिल से शिर्फ़ हाय ही निकलती है ! और पश्च्याताप के शिवा कुछ भी हाँथ नहीं लगता, फिर जिंदगी उस पश्च्याताप की आग में जलने लगती है , आप जब मेरे जीवन में आये तो यह येसी भावना से आये तो टूटी-फूटी झोपड़ी में.रुखा-सुखा खा के जीवन ब्यतीत करने के इरादे से आये थे ! लेकिन जहां मेरी जगह होनी चाहिए थी वहां आप ऊँचे-ऊँचे महलों के ख्वाब पाले थे.यह समझने में मुझे बहुत वक्त लग गया,जब बात हमें समझ में आती तब-तक बहुत देर हो चुकी थी,और आप अपने लिए…
ContinueAdded by Sanjay Rajendraprasad Yadav on April 6, 2011 at 4:24pm — No Comments
तितली के इतने रूपों को
कभी न देखा
कभी न जाना परखा मैंने ..
देखा तो बस मैंने इतना
रंगबिरंगी उडती तितली
पलक झपकते पर सिकोड़ती और…
ContinueAdded by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on April 5, 2011 at 10:13am — 5 Comments
Added by rajkumar sahu on April 4, 2011 at 12:09am — 3 Comments
खुली आंखों से भी उसे सब ख्वाब लगता हैं
वो अंधेरें घर में बस एक चिराग लगता हैं
उसके वालिद भी एक कोरी किताब ही थे
वो भी अधूरी हसरतों का जवाव लगता हैं
जिसके माथे पर हर बक्त पसीना रहता हैं
वो खुद ही पाई पाई का हिसाब लगता हैं…
ContinueAdded by अमि तेष on April 3, 2011 at 4:00pm — 2 Comments
Added by Abhinav Arun on April 3, 2011 at 2:47pm — 2 Comments
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