ग़ज़ल :- ज़िंदगी है या शगूफा या रब !
अब तो कम खुद पे भरोसा या रब ,
ज़िंदगी है या शगूफा या रब |
लड़की रस्सी मदारी सब तू है ,
खेल नज़रों का है धोखा या रब |
चाँद तारों का रात भर जगना ,
खूब हमपर तेरा पहरा या रब |
तू कि पढता है इसे फुर्सत से ,
आदमी दर्द का परचा या रब |
इश्क आसान हो गया बेहद ,
बुझ रहा दर्द का दरिया या रब |
खुशनुमा चाँद दूर की रोटी ,
दिन हकीकत का आईना या रब |
हम तो बजते तुम्हारी मर्जी से ,
हाथ बच्चे के झुनझुना या रब |
(अभिनव अरुण)
Comment
चाँद तारों का रात भर जगना ,
खूब हमपर तेरा पहरा या रब |
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