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कविता :- सलाम इस जीत के जज्बे को !

कविता :- सलाम इस जीत और जीत के जज्बे को !

कोई रंग नहीं होता खुशियों का

कोई ढंग नही होता उनका

कि हम आसानी से उन्हें कर सकें हासिल

जीत जज्बे से मिलती है

जीत,जीत के विश्वास से ही मिलती है

और एक जुटता से होती है फतह !

 

जीतते वो नहीं

जो ऊंचे पहाड़ों और ऊंची चढ़ाईयों से डरते है

सिर्फ बाते करते हैं

राजनीति और विडंबनाओं की

समंदर के भीतर और बाहर से आती

सुनामी हवाओं की

जिनके कदम बाहर निकलने से डरते है

जीतते वो हैं जो बेपरवाह होते है

आलोचनाओं से

जो जानते हैं हर विजय

सिल देती है आलोचकों का मुंह !!

 

सलाम जीत के इस जज्बे को

सलाम वर्षों बाद खत्म हुए  वनवास को

सलाम देश के जूनून को

सलाम इस एक जुट आवाज़ और प्रयास को

जिसने जता दिया

कि चमक और आकर्षक सफेदी ही नही जीतती

जीतती है इरादों की दृढ़ता और जीवटता !!!

 

जीतते हैं परंपरागत गांव और गंवई संकृति के ध्वज वाहक भी

क्योंकि उपनिवेशवादी शहर अब शिकार हो गये हैं भटकाव और अपसंस्कृति के

ईमानदारी देर और अंधेर नही देखती

नहीं देखती कि कौन करता है उसकी प्रशस्ति

या उड़ाता है कौन उसका उपहास

इसीलिए कहता हूँ जीतती है जीवटता

जीतता है विश्वास !!!!!

 

(@अभिनव अरुण -०३-०४-११)

 

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Comment

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Comment by Abhinav Arun on April 4, 2011 at 8:40am
आभार बागी भाई ! और ओ.बी.ओ. के सार्थक स्थापन और सफल सञ्चालन हेतु भी बधाई स्वीकारें !!! इस साईट की तरक्की से हमारी तरक्की जुडी है !

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 3, 2011 at 9:13pm
बेहतरीन काव्य कृत अरुण भाई, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है ............

जीतते वो हैं जो बेपरवाह होते है
आलोचनाओं से
जो जानते हैं हर विजय
सिल देती है आलोचकों का मुंह...

बेहद खुबसूरत और सार्थक रचना पर बधाई स्वीकार करे |

कृपया ध्यान दे...

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