तितली के इतने रूपों को
कभी न देखा
कभी न जाना परखा मैंने ..
देखा तो बस मैंने इतना
रंगबिरंगी उडती तितली
पलक झपकते पर सिकोड़ती और फैलाती
जल्दी-जल्दी ...फूल फूल पर उड़कर जाती
जैसे कोई समाज सेविका बड़े प्यार से
दुखियारों के दर पर जाती ...
उनके सारे दुःख समेट कर
अपनेपन का भाव जगाती
थोडा सा मन को हर्षाती
फूल सभी खिल से उठते हैं
जब तितली बगिया में आती ...
सोच नहीं पाता क्यों कोई
क्यों तितली बगिया में आती ?
हम सारे भी तितली जैसे
रहें न क्यों इस जग उपवन में
चूस दुखों को हर्षित कर दें
आशागार्भित मानव मन को
आचार्यप्रवर आदरणीय सलिल जी की कविता 'तितलियाँ'पर मेरे उदगार आचार्य जी को समर्पित
Comment
Prakriti ki khoobsoorti ko ukerti bahut hi badhiya rachna. Badhayee swikar kare.
" कुदरत की रंग-विरंगी तितलियों को देखे बहुत दिन बीत गए जो प्रकृत की सान सोभा बठाती है ,
पर आज मानव सामाज में कुछ और ही लोग तितलियों की तरह उड़ फुर्र -फुर्र इठलाती है"
जो स मा ज में घ त क हो जाती है,
आप को बहुत बहुत धन्यवाद जी
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