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लौटा है कौन देख के जन्नत हरी भरी-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२



रहती हो जिसके साथ मुसीबत हरी भरी

कैसे हो उस की  यार  तबीयत हरी भरी।१।

*

वो भाग्यवान तात से जिसको मिले सदा

आशीष  लाड़  डाँट  नसीहत  हरी भरी।२।

*

सबने है आग द्वेष की सुलगा रखी बहुत

रखता है मन में  कौन मुहब्बत हरी भरी।३।

*

बढ़ता न ताप दुनिया का ऐसे कभी नहीं

रखते धरा को लोग जो औसत हरी भरी।४।

*

बाँटें दुखों के बोझ को मिलके सदा यहाँ

दो ईश खूब सब को ही…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2023 at 7:22pm — 2 Comments

किसे बताएं

किसे बताए फिक्र किसे है, मेरे रहने की मर जाने की 

किसे पड़ी यहाँ पर मेरी लिखी बात दोहराने की 

मेरे खातिर यहाँ भले क्यूँ अपने आँसू बर्बाद करे 

किसको इतनी मोहब्बत मुझसे जो समय अपना बेकार करे 

सब अपने है बस अपने हैं, अपने बनकर रह जाएंगे …

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Added by AMAN SINHA on December 30, 2023 at 11:01am — No Comments

ग़ज़ल...मैं नहीं हूँ

बहरे रमल मुसद्दस सालिम

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन

2122 2122 2122



सिर्फ उसकी याद आयी मैं नहीं हूँ

या'नी मेरे साथ में भी मैं नहीं हूँ



वो जमीं पे चाँद जैसी और उसकी

कू-ब-कू है रौशनाई मैं नहीं हूँ



गीत उसका राग उसके बज़्म उसकी

वो ग़ज़ल में भी समाई मैं नहीं हूँ



वो नहीं तस्वीर मेरी अय मुसव्विर

और जो तुमने बनायी मैं नहीं हूँ



जिस छुअन का हो रहा अहसास तुमको

वो हवा की है रवानी मैं नहीं हूँ

(मौलिक एवं… Continue

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 27, 2023 at 6:40pm — 2 Comments

ठहरा यह जीवन

गहरे तल पर ठहरे तम-सा,

ठहरा यह जीवन।

*

मौन तोड़ती एक न आहट,

घूरे बस निर्जन।

कौन रुका इस सूने पथ पर,

जो होगी खनखन।

घर आँगन दालानों की भी,

छाँव नहीं कोई।

दूर-दूर तक वीराना है,

गाँव नहीं कोई।

चले हवाएँ गला काटतीं,

सर्द बहुत अगहन।

*

कहीं चढ़ाई साँस फुलाए

कहीं ढाल फिसलन।

क़दम-क़दम पर भटकाने को,

ख़ड़ी एक उलझन।

लम्बा रस्ता पार न होता,

कितना चल आये।

चार क़दम पर…

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Added by Ashok Kumar Raktale on December 25, 2023 at 10:00pm — 5 Comments

दोहा पंचक. . . . क्रोध

दोहा पंचक. . . क्रोध

जितना संभव हो सके, वश में रखना क्रोध ।

घातक होते हैं बड़े, क्रोध जनित प्रतिरोध ।।

देना अपने क्रोध को, पल भर का विश्राम ।

टल जाएंगे शूल से, क्रोध जनित परिणाम ।।

शमन क्रोध का कीजिए, मिटता बैर समूल ।

प्रेम भाव की जिंदगी, माने यही उसूल ।।

रिश्ते होते खाक जब, जले क्रोध की आग ।

प्रेम विला में गूँजते, फिर नफरत के राग ।।

क्रोध बैर का मूल है, क्रोध घृणा की आग ।

क्रोध अनल के कब मिटे,…

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Added by Sushil Sarna on December 24, 2023 at 12:49pm — 4 Comments

दोहा सप्तक ..

दोहा - सप्तक...

गाफिल क्यों अंजाम से, तू आखिर नादान ।

तेरे इस अस्तित्व की, मिट्टी है पहचान ।।

धू -धू कर यह जिस्म जला, जले साथ अरमान ।

इच्छाओं की रुक गई, मैं - मैं  भरी उड़ान ।।

ढह जाएंगे सब यहाँ, पत्थर के प्रासाद ।

मलबे होगे दंभ के, रोयेंगे उन्माद ।।

साँसों का चप्पू चले, धड़कन करती नाद ।

चित्रित अधरों पर हुए, अधरों के  अनुवाद ।।

और -और की लालसा, मिटी न मिटे शरीर ।

भौतिक युग का आदमी , रहता सदा फकीर ।।

साथी वो किस काम के ,दें…

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Added by Sushil Sarna on December 21, 2023 at 12:24pm — No Comments

तिरंगा

हरा-केसरिया, श्वेत रंग का, तिरंगा झड़ा कहलाता है

हरियाली-साहस, सत्य दर्शाता

प्रतीक-एकता, अखंडता का बन जाता है॥

 

राम-कृष्ण-बुध जन्मे जहाँ पर, मन उस पवित्र भूमि को शीश नवाता है

आन-बान-शान भारत देश की

हर भारतीय की जान कहलाता है॥

 

सभी भाषाओं की जन्मधात्री, संस्कृत, जो सबसे पुरानी भाषा है

विभिन्न उत्कृष्ट संस्कार-संस्कृति की पवित्र…

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Added by PHOOL SINGH on December 21, 2023 at 11:51am — No Comments

ग़ज़ल

2122 1122 1122 22 / 112

अंधा आँखों का है हर शख़्स बता देगा तुम्हें

ख़ार खाया है ये जन्मों का दग़ा देगा तुम्हें

गुरु वो घंटाल ज़माने कभी सय्याद रहा

काट कर पर वो रखेगा जो सज़ा देगा तुम्हें

झाँसे में उसके न आया करो जानाँ कभी तुम

रहती दुनिया का दरिन्दा वो क़जा देगा तुम्हें

है नशा उसको सदारत का कई बज़्म सुना

ना तुम्हारा न वो मेरा ही जता देगा तुम्हें

है वो ख़ुदगर्ज़ निहायत कहीं हद से ज़ियादा

ख़ुद…

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Added by Chetan Prakash on December 20, 2023 at 6:00pm — 2 Comments

आवाज़ों से जंग

आवाज़ों से जंग

उषा अवस्थी

आज प्रदूषण बढ़ रहा 

बदल-बदल कर रूप

बेचें झाड़ू , वाइपर

चला रिकाॅर्डिंग खूब

चाकू, कैंची औ छुरी

पैनी करते नित्य

मस्तक में छुरियाँ चलें

सुनें रिकॉर्डिंग तिक्त

चादर, कम्बल या बिकें

बने-बनाए वस्त्र

सतत रिकॉर्डिंग चल रही

कर वाणी निर्वस्त्र

असहनीय ध्वनियाँ,मचा

कानों में हुड़दंग

कैसे जीतेगा मनुज

आवाज़ो से…

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Added by Usha Awasthi on December 18, 2023 at 11:55am — No Comments

दोहा त्रयोदशी

दोहा पंचक. . . .

साथ श्वांस के रुक गया, जीवन का संघर्ष ।

आँचल अंक विषाद के, मौन हुआ हर हर्ष ।।

जैसे-जैसे दिन ढले, लम्बी होती छाँव ।

काल समेटे जिन्दगी, थमते चलते पाँव ।।

इच्छाओं की आँधियाँ, आशाओं के ढेर ।

क्या समझेगी जिन्दगी, साँसों का यह फेर ।।

पगडंडी पक्की हुई, क्षीण हुए सम्बंध ।

अर्थ क्षुधा में खो गई, एक चूल्हे की गंध ।।

पत्थर सारे मील के, सड़क किनारे मौन ।

अपने अन्तिम अंक को, पढ़ पाया है कौन…

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Added by Sushil Sarna on December 17, 2023 at 11:30am — 2 Comments

हर साल ,जाते हुए साल

जाते हुए साल

एक बात पूछनी है  

सीधा सीधा सा बस एक सवाल

कि तुम हर साल बदलने वाला

केवलमात्र क्या एक अंक हो

अथवा समझते हो कि तुम निष्कलंक हो

सारी जिम्मेवारी समय के काँधों पर डाल

किसे बहलाते हो

कुछ बदल नहीं सकते

अथवा बदलना नहीं चाहते

तो फिर -फिर क्यों आते हो

एक चेतावनी समझ लेना

अब के तभी आना

जो यदि

बंद करा सको युद्ध को

मुक्त करा सको प्रबुद्ध को

अथवा वहीं रहना

किसी से न कहना

कि तुम हार गए हो

..........

मौलिक व…

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Added by amita tiwari on December 15, 2023 at 12:00am — 1 Comment

ग़ज़ल दिनेश कुमार -- अंधेरा चार सू फैला दमे-सहर कैसा

1212-- 1122-- 1212-- 22

अंधेरा चार सू फैला दमे-सहर कैसा

परिंदे नीड़ में सहमे हैं, जाने डर कैसा

ख़ुद अपने घर में ही हव्वा की जात सहमी है 

उभर के आया है आदम में जानवर कैसा

अधूरे ख़्वाब की सिसकी या फ़िक्र फ़रदा की

हमारे ज़हन में ये शोर रात-भर कैसा

सरों से शर्मो हया का सरक गया आंचल 

ये बेटियों पे हुआ मग़रिबी असर कैसा

वो ख़ुद-परस्त था, पीरी में आ के समझा है 

जफ़ा के पेड़ पे रिश्तों का अब…

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Added by दिनेश कुमार on December 3, 2023 at 10:00am — 8 Comments

उस मुसाफिर के पाँव मत बाँधो - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२२/१२१२/२२

*

सूनी आँखों  की  रोशनी बन जा

ईद आयी सी फिर खुशी बन जा।१।

*

अब भी प्यासा हूँ इक सदी बीती

चैन  पाऊँ  कि  तू  नदी  बन  जा।२।

*

हो गया जग  ये  शीत का मौसम

धूप सी  तू  तो  गुनगुनी  बन जा।३।

*

मौत आकर खड़ी है द्वार अपने

एक पल को ही ज़िन्दगी बन जा।४।

*

मुग्ध कर दू फिर से हर महफिल

आ के अधरों  पे  शायरी बन जा।५।

*

इस नगर  में  तो  सिर्फ  मसलेंगे

फूल जाकर  तू  जंगली  बन जा।६।…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 2, 2023 at 7:00am — 5 Comments

एक ताज़ा ग़ज़ल

2122 1122 1122 22

ख़्वाब से जाग उठे शाह सदा दी जाए

पकड़े जायें अभी क़ातिल वो सज़ा दी जाए

बख़्श दी जाए कहीं जान ख़वातीनों की

अब तो ज़ालिम को कड़ी कोई सज़ा दी जाए

घूमते हैं वो दरिन्दे भी नकाबों में अब तो

जितना जल्दी हो उन्हें मौत बजा दी जाए

लोग अच्छे ही परेशान हैं वहशी दरिन्दों

इन्तिहाँ हो गयी अब लौ वो बुझा दी जाए

ज़ात इन्साँ की पशेमाँ है ज़रायम से 'चेतन'

तूफाँ कोई तो उठा कर…

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Added by Chetan Prakash on November 27, 2023 at 12:57pm — 2 Comments

ग़ज़ल

लगता है मेरे प्यारों को पैसा है मेरे पास

सच्चाई पर यही है कि क़र्ज़ा है मेरे पास

ए सी की रहने वाली तू मत प्यार कर मुझे

आवाज़ करता छोटा सा पंखा है मेरे पास

मुझसे बिछड़ के जूड़ा बनाती नहीं है अब

वो लड़की जिसका आज भी गजरा है मेरे पास

पापा ये मुझ से कहते हुए रो पड़े थे कल

कितने दिनों के बाद तू बैठा है मेरे पास

साया दिया था मैंने कड़ी धूप में जिसे

अब सिर्फ़ उसकी याद का साया है मेरे पास

अब…

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Added by Md. Anis arman on November 23, 2023 at 12:39pm — 3 Comments

ग़ज़ल -- क़दमों में तेरे ख़ुशियों की इक कहकशाँ रहे -- दिनेश कुमार

ग़ज़ल -- 221 2121 1221 212

क़दमों में तेरे ख़ुशियों की इक कहकशाँ रहे

बन जाए गुलसिताँ वो जगह, तू जहाँ रहे

ज़ालिम का ज़ुल्म ख़्वाह सदा बे-अमाँ रहे

पर कोई भी ग़रीब न बे-आशियाँ रहे

आ जाए जिन को देख के आँखों में रौशनी

वो ख़ैर-ख़्वाह दोस्त पुराने कहाँ रहे

हर दम पराए दर्द को समझें हम अपना दर्द

दरिया ख़ुलूसो-मेहर का दिल में रवाँ रहे

काफ़ी नहीं है दिल में फ़लक चूमने का ख़्वाब 

परवाज़ हौसलों…

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Added by दिनेश कुमार on November 17, 2023 at 8:30am — 4 Comments

सुख या संतोष

दोनों में से क्या तुम्हें चाहिए सुख या के संतोष 

क्षणभंगुर सा हर्ष चाहिए, या जीवन भर का रोष 

खुशी का जीवन लम्हो सा है, अब आए अब जाए 

छोटी सी उदासी मन की पहाड़ हर्ष का ढाए 

खुशी स्वभाव से चंचल पानी, कल कल बहता जाए 

कभी…

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Added by AMAN SINHA on November 9, 2023 at 1:36pm — No Comments

एक ताज़ा गज़ल

2121 2122 2121 212

खो गया सुकून दिल का कार हो गया जहाँ

गुम गया सनम भँवर में ख़ार हो गया जहाँ

कामयाबी तौलती दुनिया भरोसे जऱ ज़मी

फार्म जिनके हैं नहीं गुड़मार हो गया जहाँ

ज़िन्दगी जिसे कहा हमने कहीं छुपा गया

है निशान अपने ज़ालिम पार हो गया जहाँ

कार-ए-दुनिया और कुछ हैं और कुछ दिखें ख़ुदा

मारकाट हाल कारोबार हो गया जहाँ

तोड़ हद रहे सभी अब तो अदब जहान में

लाज लुट रही घरों मुरदार हो गया…

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Added by Chetan Prakash on November 8, 2023 at 8:30pm — No Comments

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक . . . .

लुप्त हुई संवेदना, कड़वी हुई मिठास ।

अर्थ रार में खो गए , रिश्ते सारे खास ।।

*

पहले जैसे अब कहाँ, मिलते हैं इन्सान ।

शेष रहा इंसान में, बड़बोला अभिमान ।।

*

प्रीत सरोवर में खिले, क्यों नफरत के फूल ।

तन मन को छिद्रित करें, स्वार्थ भाव के शूल ।।

*

किसको अपना हम कहें, किसको मानें गैर ।

भूल -भाल कर दुश्मनी , सबकी माँगें खैर ।।

*

शर्तों पर यह जिंदगी , काटे अपनी राह ।

सुध-बुध खो कर सो रही, शूल नोक पर चाह…

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Added by Sushil Sarna on November 5, 2023 at 7:46pm — 4 Comments

दिख रहे हैं हजार आंखों में

तेरे बोलों के ख़ार आँखों में
दिख रहे हैं हजार आंखों में

मैनें देखा खुमार आँखों में
इश्क का बेशुमार आँखों में

इश्क है होशियार आँखों में
इश्क फिर भी गवार आँखों में


तेरी गलियों को छान कर जाना
होता क्या-क्या है यार आँखों में?

होठ बेशक हँसी से फैले हैं
दर्द पर बरकरार आँखों में।


'बाल' नादान है समझ तेरी
ढूंढती बस जो प्यार आँखों में।

मौलिक अप्रकाशित

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on November 3, 2023 at 9:30am — 7 Comments

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