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जो समझता रहा कि है रब वो।

2122 1212 22

1

देख लो महज़ ख़ाक है अब वो।
जो समझता रहा कि है रब वो।।

2

हो जरूरत तो खोलता लब वो।
बात करता है बे सबब कब वो।।

3

उठ सकेगा नहीं कभी अब वो।
बोझ भारी तले गया दब वो।।

4

ज़िन्दगी क्या है तब समझ आया।
मौत से रू ब रू हुआ जब वो।।

5

वक़्त आया हुआ बुरा जिसका।
रोकने से भला रुका कब वो।।

6

गर जरूरत पड़ी दिखाएगा।
जानता है हरेक करतब वो।

7

बात समझा नहीं मुहब्बत की।
नफ़रतों से भरा लबालब वो।।

सुरेन्द्र इंसान

मौलिक व अप्रकाशित

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