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Aazi Tamaam
  • Male
  • Bareilly, UP
  • India
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Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय गुणीजनो की इस्लाह से और निखर जायेगी"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय methani जी से ज़र्रा नवाज़ी का"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय धामी सर इस ज़र्रा नवाज़ी का"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय रिचा जी इस ज़र्रा नवाज़ी का"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय इंसान जी अच्छा सुझाव है आपका सहृदय शुक्रिया ग़ज़ल पर नज़र ए करम का"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छी ग़ज़ल कही आदरणीय आपने आदरणीय तिलक राज सर की इस्लाह भी ख़ूब हुई है ग़ज़ल और निखर जायेगी"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छी ग़ज़ल कही आदरणीय आदरणीय तिलक राज सर की इस्लाह से और बेहतर हो जायेगी अच्छी इस्लाह हुई है"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय इतनी बारीकी से इस्लाह की है आदरणीय तिलक राज सर ने मतले व अन्य शेरों पर काबिल ए तारीफ़ है ग़ज़ल और बेहतर हो जायेगी"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय आदरणीय तिलक राज सर की इस्लाह हर ग़ज़ल पर बेहतरीन हुई है काबिल ए गौर है ग़ज़ल और निखर जायेगी"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई आदरणीय निलेश सर 4rth शेर बेहद पसंद आया बधाई स्वीकारें आदरणीय"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय धामी सर बधाई स्वीकारें सुधार के बाद शेर और निखर गए हैं"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सुधार- उम्रें न सही लम्हे बिताने के लिए आ ग़र इश्क़ है तो साथ निभाने के लिए आ/१ दिल भूल गया है सभी इल्ज़ाम पुराने इल्ज़ाम नया कोई लगाने के लिए आ/२ क़िस्से के जो किरदार अधूरे हैं अभी तक   इक बार उन्हें फिर से निभाने के लिए आ/३ जाँ थोड़ी…"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय ग़ज़ल पर नज़र ए करम का जी गुणीजनो की इस्लाह अच्छी हुई है"
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय मार्ग दर्शन व अच्छी इस्लाह के लिए सुधार करने की कोशिश ज़ारी है"
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सहृदय शुक्रिया आदरणीय इतनी बारीक तरीके से इस्लाह करने व मार्ग दर्शन के लिए सुधार करने की कोशिश ज़ारी है"
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"२२१ १२२१ १२२१ १२२ ये तर्क-ए-तअल्लुक भी मिटाने के लिये आ मैं ग़ैर हूँ तो ग़ैर जताने के लिये आ/१ दिल भूल गया है सभी इल्ज़ाम पुराने  कोई नई तुहमत ही लगाने के लिए आ/२ किरदार जो किस्से के अधूरे हैं अभी तक इक बार वो किरदार निभाने के लिए आ/३ ऐसे…"
Friday

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Uttar Pradesh
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CHANDAUSI
Profession
Poet, Lawer, Engineer
About me
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तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२

इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

वैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर जावेंगे क्या

आप आ'ला हैं तो हमको हक़ हमारा दीजिये

आपके रहम-ओ-करम पे जीस्त जी पावेंगे क्या

इल्म का अब हाल…

Continue

Posted on August 19, 2025 at 11:30pm — 6 Comments

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २

चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

हो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल के

हर पल अपना जिगर जलाना पड़ता है

तब जाके अल्फाज़ महकते हैं दिल के

नफ़रत बो कर लोगों के ज़ह्न–ओ–दिल में

ख़्वाब दिखाते हैं साहिब मुस्तक़बिल के

कश्ती की हस्ती है बीच भँवर लेकिन…

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Posted on August 13, 2025 at 3:00pm — 7 Comments

ग़ज़ल ; पतझड़ के जैसा आलम है विरह की सी पुरवाई है

२२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २

पतझड़ के जैसा आलम है विरह की सी पुरवाई है

ये कैसा मौसम आया है जिसका रंग ज़ुदाई है

घूमते रहते हैं कई साये दिल के अँधेरे कमरे में

काट रही है पल पल मन को ग़म की रात कसाई है

जंगल जंगल घूम रहा हूँ लेकर अपनी बेचैनी

ख़ामोशी में शोर बपा है ये कैसी तन्हाई है

ना जाने क्या सोच रही है मन ही मन बैठी दुल्हन

आँखों में इक हैरानी है चेहरे पे रानाई है

शादी का अवसर लाया है ग़म के साथ…

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Posted on October 5, 2024 at 10:40am

दोहे : बैठ एक की आस में, कब तक रहें उदास

बैठ एक की आस में, कब तक रहें उदास

चल दिल चल के ढूँढ लें, दूजा और निवास

ये जग है मायानगर, कौन करे विश्वास

इस झूठे बाजार में, टूटी सब की आस

पल भर में मेला लगे, पल भर में वनवास

अभी पराया हो गया, अभी हुआ जो खास

रहते थे हम ठाठ से, सब था अपने पास

छोड़ जिसे, आवारगी, हमको आई रास

श्वेत रंग की प्रीत का, उनको क्या एहसास

रंगों के शौकीन तो, बदलें रोज लिबास

(मौलिक व अप्रकाशित) 

Posted on August 6, 2024 at 12:00am — 2 Comments

Comment Wall (3 comments)

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At 10:44am on April 9, 2024, Erica said…

I need to have a word privately, please get back to me on ( mrs.ericaw1@gmail.com) Thanks.

At 1:08pm on January 16, 2021, लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' said…

आ. भाई आज़ी तमाम जी, सादर अभिवादन । मेरी गजलें आपको अच्छी लगीं यह हर्ष का विषय है । आपके इस स्नेह के लिए हार्दिक धन्यवाद।

मंच पर अपनी रचनाओं का आनन्द लेने का अवसर प्रदान करें और अन्य रचनाकारों का भी अपनी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन करते रहिए ।

At 8:15pm on January 12, 2021, Samar kabeer said…

जनाब आज़ी साहिब,तरही मुशाइर: में शामिल सभी ग़ज़लों पर लाइव ही तफ़सील से गुफ़्तगू होती है, शिर्कत फ़रमाएँ, और कोई उलझन हो तो मुझसे 09753845522 पर बात कर सकते हैं ।

 
 
 

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