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Ashok Kumar Raktale
  • Male
  • Ujjain,M.P.
  • India
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Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-166
"  कृपया  दूसरे बंद की अंतिम पंक्ति 'रहे एडियाँ घीस' को "करें जाप बत्तीस' पढ़ें. सादर क्षमाप्रार्थी."
Sep 15
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-166
"पनघट छूटा गांव का, नौंक- झौंक उल्लास।पनिहारिन गाली मधुर, होली भांग झकास।। (7).....ग्राम्य जीवन की उत्तम झलक प्रस्तुत की है आपने इस दोहे में.  आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, प्रदत्त विषय पर सुन्दर दोहावली रची है आपने. कुछ दोहों में अवश्य कुछ…"
Sep 15
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-166
"    गीत   छत पर खेती हो रही खेतों में हैं घर   धनवर्षा से गाँव के, सूख गये तालाब शहरों के आने लगे तब आँखों में ख्वाब फोर लेन सड़कें बनीं दिल गाँवों का चीर बदल गयी हर एक के जीवन की तस्वीर   पास पुरुष के कार है महिला के…"
Sep 15
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion खुशियाँ और गम, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के संग...
"ओ बी ओ पर तरही मुशायरा के संचालक एवं उस्ताद शायर आदरणीय समर कबीर साहब को जीवन के अड़सठ वें वर्ष में प्रवेश पर जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई एवं अनेकानेक शुभकामनाएं. ईश्वर आपको सदैव स्वस्थ रखे एवं साहित्य सेवा के कार्य के लिए प्रेरित करता रहे. यही कामना…"
Sep 8
Ashok Kumar Raktale commented on Ashok Kumar Raktale's blog post दिल चुरा लिया
"   आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस्कार, प्रस्तुत ग़ज़ल प्रयास की सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार. आपके सुझावानुसार बदलाव किया है. सादर आभार. "
Sep 4
Ashok Kumar Raktale posted a blog post

दिल चुरा लिया

२२१ २१२१   १२२१  २१२  उसने  सफ़र में उम्र  के  गहना  ही  पा लियाजिसने तपा के जिस्म  को  सोना बना लिया दो  वक़्त  भी  जिसे  कभी  रोटी  नहीं मिलीउसने भी ज़िन्दगी  का  यहाँ   पे मज़ा लिया कहते हैं लोग उसको  मुहब्बत का बादशाहजिसने वफ़ा  निभाई  मगर दिल  चुरा लिया उल्फ़त  की  राह  हो  भले  काँटों  भरी बहुत  चलकर  इसी  पे  हमने  मुक़द्दर  जगा लिया हैरान  कर   गयी  है  मुझे   उसकी  जुस्तज़ूजिसने ख़ला में रहने का  सपना  सजा लिया पछता   रहा   है  बाद   वही   नासमझ  यहाँजिसने  उठा  के  झूठ का फुग्गा  फुला…See More
Sep 3
Ashok Kumar Raktale commented on Ashok Kumar Raktale's blog post लौट रहे घन
"   आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस्कार, प्रस्तुत गीत रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार. सादर "
Aug 27
Ashok Kumar Raktale commented on Ashok Kumar Raktale's blog post लौट रहे घन
"  आदरनी सुशील सरना साहब सादर, प्रस्तुत रचना की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. सादर "
Aug 27
Samar kabeer commented on Ashok Kumar Raktale's blog post दिल चुरा लिया
"जनाब अशोक रक्ताले जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें । 'कहते हैं लोग उसको  मुहब्बत का शहनशाह' ये मिसरा बह्र में नहीं है 'शहनशाह' की जगह "बादशाह" कर लें तो बह्र में हो जाएगा ।"
Aug 24
Samar kabeer commented on Ashok Kumar Raktale's blog post लौट रहे घन
"जनाब अशोक रक्ताले जी आदाब, बहुत सुंदर गीत हुआ है, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।"
Aug 24
Sushil Sarna commented on Ashok Kumar Raktale's blog post लौट रहे घन
"वाह  आदरणीय अशोक रक्ताले जी बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति हुई है सर जी । हार्दिक बधाई "
Aug 23
Ashok Kumar Raktale commented on Ashok Kumar Raktale's blog post लौट रहे घन
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, प्रस्तुत गीत रचना पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार. सादर "
Aug 23
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Ashok Kumar Raktale's blog post लौट रहे घन
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। बहुत मनमोहक गीत हुआ है। कोटि कोटि बधाई।"
Aug 23
Ashok Kumar Raktale posted a blog post

लौट रहे घन

लौट रहे घनबाँध राखियाँधरती के आँगन कोहर इक प्यासे मन को हरी-भरी चूनर मेंधरतीमंद-मंद मुस्कायेहरा-भरा खेतों कासावनलहराये-इतराये प्रेम प्रकट करनेझुक आयींशाखें नील गगन को नदिया का शृंगारलहर केस्वर में बोल रहा हैमस्त पुलिन काअंग-अंग भीजैसे डोल रहा है बेकल हैं सारी  धाराएँपावन सिन्धु मिलन को भीगे-भीगे वन कीदौलतअम्बर चूम रही हैसाथ पवन केकजरी ठुमरीगाती झूम रही है देती झौंकानर्म हवा भीफूल भरे उपवन को# अशोक रक्ताले ‘फणीन्द्र’See More
Aug 22
Ashok Kumar Raktale commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .परिवार
"आदरणीय सुशील सरना जी सादर, बदलते परिवेश में टूटते परिवारों की पीड़ा को स्वर देती अच्छी दोआवाली रची है आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. फिर भी कुछ दोहों के भाव स्पष्ट करने के लिए कार्य करने की आवश्यकता है. सादर  टुकड़े -टुकड़े हो गए, अब साँझे परिवार…"
Aug 22
Ashok Kumar Raktale commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कौन हुआ आजाद-(दोहा गीत)
"ध्वनिमत से चुपचाप जो, बढ़ा रहे तनख्वाह।कुर्सी  खातिर  रच  रहे,  भूल  दुश्मनी ब्याह।।...........बढ़िया मुहावरा रचा है.  आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, देश के सामान्य नागरिक की पीड़ा को मुखर करता सुन्दर दोहागीत रचा है…"
Aug 22

Profile Information

Gender
Male
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Ujjain
Native Place
Ujjain
Profession
service
About me
I am a technical person and always talk in right angle.

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लौट रहे घन

लौट रहे घन

बाँध राखियाँ

धरती के आँगन को

हर इक प्यासे मन को

 

हरी-भरी चूनर में

धरती

मंद-मंद मुस्काये

हरा-भरा खेतों का

सावन

लहराये-इतराये

 

प्रेम प्रकट करने

झुक आयीं

शाखें नील गगन…

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Posted on August 22, 2024 at 6:59pm — 6 Comments

दिल चुरा लिया

२२१ २१२१   १२२१  २१२

  

उसने  सफ़र में उम्र  के  गहना  ही  पा लिया

जिसने तपा के जिस्म  को  सोना बना लिया

 

दो  वक़्त  भी  जिसे  कभी  रोटी  नहीं मिली

उसने भी ज़िन्दगी  का  यहाँ   पे मज़ा लिया

 

कहते हैं लोग उसको  मुहब्बत का बादशाह

जिसने वफ़ा  निभाई  मगर दिल  चुरा लिया

 

उल्फ़त  की  राह  हो  भले  काँटों  भरी बहुत  

चलकर  इसी  पे  हमने  मुक़द्दर  जगा लिया

 

हैरान  कर   गयी  है…

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Posted on August 6, 2024 at 2:30pm — 8 Comments

गीत - पर घटाओं से ही मैं उलझता रहा

 

रात के हुस्न  पर थी  टँकी चाँदनी

पर घटाओं से ही मैं उलझता रहा 

चाँद पाने की कोशिश नहीं थी मगर

चाँद छूने को ही मैं मचलता रहा

 

सिक्त आँचल हिलाती रही रात भर

फिर भी गुमसुम हवा ही बही रात भर

कुछ सितारे ही बस झिलमिलाते रहे

धैर्य  की  ही  परीक्षा चली रात भर

 

प्रीति के दर्द को भी दबाये हुए

घूँट आँसू के ही मैं निगलता रहा

 

चाँद आया नहीं देर तक सामने

स्याह बादल लगे चादरें…

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Posted on July 16, 2024 at 5:43pm — 6 Comments

ग़ज़ल

2122    1212   112/22

*

ज़ीस्त  का   जो  सफ़र   ठहर   जाए

आरज़ू      आरज़ू      बिख़र     जाए

 

बेक़रारी    रहे     न    कुछ    बाक़ी

फ़िक्र   का   दौर    ही    गुज़र जाए…

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Posted on June 25, 2024 at 3:30pm — 2 Comments

Comment Wall (24 comments)

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At 3:43pm on September 4, 2016, kanta roy said…
सार्थक रचना का सम्मानित होना अच्छा लगता ही है।
"मन उस आँगन ले जाय" को "महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना" सम्मान के रूप मे सम्मानित होने के लिये बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय अशोक जी।
At 11:52pm on August 17, 2016,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…

आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी.
सादर अभिवादन !
मुझे यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी  गीतिका : मन उस आँगन ले जाय को "महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना" सम्मान के रूप मे सम्मानित किया गया है | इस शानदार उपलब्धि पर बधाई स्वीकार करे |

आपको प्रसस्ति पत्र यथा शीघ्र उपलब्ध करा दिया जायेगा, इस निमित कृपया आप अपना पत्राचार का पता व फ़ोन नंबर admin@openbooksonline.com पर उपलब्ध कराना चाहेंगे | मेल उसी आई डी से भेजे जिससे ओ बी ओ सदस्यता प्राप्त की गई हो |
शुभकामनाओं सहित
आपका
गणेश जी "बागी
संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक 
ओपन बुक्स ऑनलाइन

At 5:31pm on July 23, 2014, seemahari sharma said…
बहुत बहुत आभार आदरणीय अशोक रकताले जी।
At 8:43pm on June 15, 2014, mrs manjari pandey said…
आदरणीय रक्ताले जी बहुत बहुत धन्यवाद। वस्तुतः विषय तो चिंतनीय है ही .
At 5:01pm on July 26, 2013, Dr Ashutosh Vajpeyee said…

ashok ji apne Mujhe aur Om neerav ji ko FB par Block kar diya is baat se ham logon ko ateev kasht hua hai ham dono hi yah jaan lena chahtey hain ki kis apradh ke liye apne hame yah dand diya aur kavita lok group kyon chhoda,,,,uttar ki prateeksha me me vyagra hoon

At 10:35am on June 10, 2013, D P Mathur said…

आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले सर हौंसला बढ़ाने के लिए आपका आभार !

At 6:13pm on May 8, 2013, Dr Dilip Mittal said…

आदरणीय इसी तरह आशीर्वाद बनाए रखें 

हार्दिक आभार 
At 7:40pm on May 4, 2013, Dr Dilip Mittal said…

आपके प्रोत्साहन भरे भावों के लिए शुक्रिया 

At 1:51pm on February 27, 2013, Meena Pathak said…

सादर आभार 

At 11:53pm on February 22, 2013, बृजेश नीरज said…

आपने मुझे मित्रता योग्य समझा इसके लिए आपका आभार!

 
 
 

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