उँगलियों पर रहे थिरकती,
लेखा-जोखा समय का रखती,
देखो वो चली, विदा ले चली,
हाथ हिलाते, हँसते-मुस्काते,
ये बारह माहों की गिनती,
तीन सौ पैंसठ दिनों का सफर,
खत्म कर पकड़ेगी, इक कोरी-नई ड़गर,
इसके नए पन्नों पर होगी ,
अब लिखी इक इबारत नई,
छोड़ अनेकों पीछे, अनेकों साथ जोड़ते,
देखो वो आई, आ ही चली,
इक नूतन बारह माहों की गिनती,
समय-प्रवाह थपेड़े में ,
जीवनयात्रा के रेले में,
इक वर्ष और…
ContinueAdded by Arpana Sharma on December 31, 2017 at 10:22pm — 7 Comments
ग़ज़ल( उठ न जाए क़ियामत नये साल में )
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( फाइलुन--फाइलुन--फाइलुन--फाइलुन)
उन पे आई बुलूगत नये साल में |
उठ न जाए क़ियामत नये साल में |
भूल बैठे पुरानी अदावत को वो
देख कर मेरी मिन्नत नये साल में |
बाग़बाने चमन ज़ुल्म से बाज़ आ
वरना होगी बग़ावत नये साल में |
दिल में घर कर नहीं पाएँ शिकवे कभी
डालिए एसी आदत नये साल में |
राह तकता हूँ मुद्दत से…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on December 31, 2017 at 10:10pm — 22 Comments
नया साल है आवा अस संजोग
ओ बी ओ मदिरायित हर्षित लोग
हवा भई है ‘बागी’ मन मुस्काय
‘योगराज’ शिव बैठे भस्म रमाय
‘प्राची’ ने दिखलाया आज कमाल
नए साल का सूरज निकसा लाल
ठहरा सा है मारुत ‘सौरभ’-भार
नवा ओज भरि लाये ‘अरुण कुमार’
‘राणा’–राव महीपति अरु ‘राजेश’
बदले बदले दिखते हैं ‘मिथिलेश’
तना खड़ा है अकडा अब ‘गिरिराज’
हर्ष न देह समाये इसके आज
कुहरे में है सूरज अरुणिम…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 31, 2017 at 2:30pm — 7 Comments
2122--1122--1122--22
.
एक पत्थर पे भी उल्फ़त का असर होता है
दिल मे जज़्बा हो तो दीवार में दर होता है
.
घुप अँधेरे में उजाले की किरण सा जीवन
जो भी जी जाए, वो दुनिया में अमर होता है
.
उसको हालात की गर्मी की भला क्या चिन्ता
जिसकी दहलीज़ पे अनुभव का शजर होता है
.
आपसी प्यार मकीनों में हो, घर तब होगा
दरो-दीवार का ढांचा तो खँडर होता है
.
वो न सह पायेगा इक पल भी हक़ीक़त की तपिश
जिसके ख़्वाबों का महल मोम का घर होता…
Added by दिनेश कुमार on December 31, 2017 at 1:33pm — 20 Comments
नये वर्ष में लगता है अब
खुद को भी समझाना होगा
कर जय पराजय की समीक्षा
क्या कमीं क्या क्या प्रबल है
तूने जो खोया या पाया
तेरे कर्मों का ही फल है
पूर्व की उनसब गलतियों को
फिर से ना दुहराना होगा
खुद को भी समझाना होगा।
अपने मन की करता है बस
क्या तूने सोचा है क्षण भर
अनायास ही भाग रहा है
अब यहाँ वहाँ किस ओर किधर
पहले यह निश्चय करना है
तुमको जिस पथ जाना होगा
खुद को भी…
Added by ram shiromani pathak on December 31, 2017 at 1:30pm — 8 Comments
बहर - 2122 1212 22
अपने दुश्मन पे गुलफिशानी की l
आबरू उसकी पानी पानी की ।।
वार मैंने निहत्थों पर न किया
यूँ ...अदा रस्म खानदानी की l
ख़त्म उस ने ही कर दी ऐ - यारो
जिसने शुरू प्यार की कहानी की l
होंठ उनके जब न कह सके सच
फ़िर निग़ाहों ने सच बयानी की l
शख्स वो दोस्तों था पत्थर दिल
खामखाँ उस पे गुलफिशानी की l
सोचा बेहद के क्या रखूँ ता - उम्र
फ़िर ग़ज़ल " प्रेम " की निशानी की…
Added by पंकजोम " प्रेम " on December 31, 2017 at 1:12pm — 4 Comments
मैं ,मैं हूँ।समझी ,कि नहीं?
-और मैं क्या हूँ,पता है?
-जरूर,पर हवाला मेरा ही दिया जाता है,तेरा नहीं।
-वो बात दीगर है।
-सच है।
-है,पर दिखने और होने में फर्क होता है।
-मतलब?
-तू समझता है।
-अरी, मेरे बिना तो सरकारें तक नहीं चलतीं, हिल जाती हैं।
-वही तो।तू पाला बदलता रहता है,मैं तिलमिलाती रहती हूँ।
-तो तुझे क्यों मलाल होता है?
-क्योंकि तू भौतिकता का कायल हो सकता है,हो भी जाता है।
-और तू?
-मैं तो भाव निरूपित करती हूँ।भाववाचक हूँ',विश्वसनीयता…
Added by Manan Kumar singh on December 31, 2017 at 12:42pm — 8 Comments
2122 2122 2122 212
मेरे जीने का भी कोई फलसफा लिख जाइये
आप मेरी चाहतों को हादसा लिख जाइये
आपका जाना ज़रूरी है मुझे मालूम है
हो सके तो मेरी खातिर रास्ता लिख जाइये
नींद मेरी धड़कनों के शोर से बेचैन है
मेरे जीवन मे विरह का रतजगा लिख जाइये
आप अपना नाम लिख लीजै मसीहाओं के बीच
बस हमारे नाम के आगे वफ़ा लिख जाइये
गर जुदा होकर ही खुश हैं आप तो अच्छा ही है
पर हमारी चाहतों को ही खरा लिख…
Added by मनोज अहसास on December 30, 2017 at 9:09pm — 13 Comments
पार हुयी नहिं आसों, बीता साल
बिटिया अबहूँ क्वांरी. माँ बेहाल
विदा भई जनु बिटिया बीता साल
जैसे–तैसे कटिगा जिव जंजाल
बेसह न पायो कम्बर बीता साल
जाड़ु सेराई कैसे नटवरलाल ?
मिली न रोजी-रोटी, बेटवा पस्त
गए साल का अंतिम सूरज अस्त
बारह माह तपस्या, जमे न पाँव
आखिर में मुँह मोड़ा हारा दाँव
शीतल, सुरभित, नूतन आया साल
बधू चांद सी आयी जनु…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 30, 2017 at 2:33pm — 3 Comments
मैं कौन हूँ ?
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कलम हूँ, इसलिए लिखता हूँ ,
कागज हूँ, इसलिए पढ़ा जाता हूँ |
कथा हूँ, इसलिए कहा जाता हूँ,
व्यथा हूँ, इसलिए सुना जाता हूँ |
काव्य हूँ, इसलिए भव्य हूँ
शांत हूँ, इसलिए द्रव्य हूँ |
हार हूँ, इसलिए प्रहार हूँ ,
जीत हूँ, इसलिए त्यौहार हूँ |
मृत हूँ, इसलिए अमृत हूँ,
जीवन हूँ, इसलिए सृष्ट हूँ |
शौर्य हूँ, इसलिए प्रकाश हूँ,
चंद्र हूँ, इसलिए…
Added by K.Kumar on December 30, 2017 at 1:30pm — 2 Comments
Added by नादिर ख़ान on December 29, 2017 at 10:30pm — 4 Comments
प्रिय सुनो तुम्हारी भूल नहीं
अवसाद नहीं रखना मन में
यह मौसम ही अनुकूल नहीं
चुप चुप रहना कुछ न कहना कैसे होगा
जब चीख रहीं होगीं लाखों जिज्ञासाएं
क्यूँ है? कैसे है? और रहेगा कब तक यूँ ?
बस बुरे ख्यालों के बादल घिर घिर छाएँ
अब ऐसा भी तो नहीं
के मेरे दिल में चुभता शूल नहीं
मैं कहीं रहूँ इस दुनिया में रहता तो हूँ
पर सच कहता हूँ मन का रहता ध्यान वहीँ
क्या हुई भूल आखिर क्या ऐसा बोल दिया
करता रहता…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on December 29, 2017 at 6:17pm — 3 Comments
भयभीत परम्परा
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"वो कांप रहे हैं।"
एक उड़ती खबर उनके कानों में पहुँची है ।यहाँ अब एक बड़ा मॉल बनेगा ।
बड़े बड़े शॉपिग…
Added by डॉ संगीता गांधी on December 28, 2017 at 9:11pm — 7 Comments
काफिया :आरे , रदीफ़ दोस्त
२१२२ २१२२ २१२२ २१२ (+१)
जिंदगी में है विरल मेरे निराले न्यारे’ दोस्त
हो गए नाराज़ देखो जो है’ मेरे प्यारे’ दोस्त |
एक जैसे सब नहीं बे-पीर सारी दोस्ती
किन्तु जिसने खाया’ धोखा किसको’ माने प्यारे’ दोस्त |
दोस्ती है नाम के, मैत्री निभाने में नहीं
वक्त मिलते ही शिकायत, और ताने मारे’ दोस्त |
कृष्ण अच्छा था सुदामा से निभाई दोस्ती
ऐसे’ इक आदित्य ज्यो हमको मिले दीदारे’…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on December 28, 2017 at 4:49pm — 2 Comments
221 2121 1221 212
छुपती कहाँ है आग दहकती जरूर है ।।
यादों में उनकी आंख फड़कती जरूर है ।।
खुशबू तमाम आई है उनके दयार से ।
गुलशन की वो हवा भी महकती जरूर है ।।
बुलबुल की शोखियों की बुलन्दी तो देखिए ।
बुलबुल बहार में तो चहकती जरूर है ।।
हसरत है देखने की तो आशिक मिजाज रख ।
चहरे से हर नकाब सरकती जरूर है ।।
रहना जरा सँभल के मुहब्बत की वस्ल में ।
अक्सर हया नज़र…
Added by Naveen Mani Tripathi on December 28, 2017 at 3:30pm — 7 Comments
फाइलातून फ़ाइलातुन फाइलुन
दुश्मन-ए-जाँ लरज़ह बर अंदाम है
जब तलक ज़िन्दा हमारा नाम है
सोचने की क़ुव्वतें मफ़लूज हैं
मुल्क में सबको हुआ सरसाम है
चूस लेती है बदन का ये लहू
शाइरी भी कितनी ख़ूँँ आशाम है
उसको छूने से भी मुझको डर लगे
इस क़दर नाज़ुक वो गुल अंदाम है
ये तो दीवानों की बस्ती है "समर"
तुम यहां क्यों आ गए क्या काम…
ContinueAdded by Samar kabeer on December 28, 2017 at 11:12am — 27 Comments
212 1222 212 1222
साथ तुम नहीं होते कुछ मज़ा नहीं होता
मेरे घर में खुशियों का सिलसिला नहीं होता
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राह पर सदाक़त की गर चला नहीं होता
सच हमेशा कहने का हौसला नहीं होता
-
कोशिशों से देता है रास्ता समंदर भी
हौसला रहे क़यिम फिर तो क्या नहीं होता
-
कम खुशी नहीं होती मेरे घर के आँगन में
दिल अगर नहीं बंटता, घर बंटा नहीं होता
-
थोड़े ग़म ख़ुशी थोड़ी,थोड़ी सिसकियाँ भी है
ज़िन्दगी से अब हमको कुछ गिला नहीं होता
-
डूबती नहीं कश्ती पास…
Added by SALIM RAZA REWA on December 27, 2017 at 9:00pm — 20 Comments
सांस भर की ज़िंदगी ...
वक़्त के साथ
हर शै अपना रूप
बदलती है
धूप ढलती है तो
छाया भी बदलती है
वक़्त के साथ
मोहब्बत की चांदी
केश वन में
चमकने लगी
उम्र की पगडंडियां
झुर्रियों में झलकने लगीं
वक़्त के साथ
यौवन का दम्भ
लाठी का मोहताज़ हो गया
दर्पण
आँख से नाराज़ हो गया
अनुराग
दर्द का राग हो गया
हदें
निगाहों से रूठ गयी
नफ़स
छटपटाई बहुत
आखिर
थककर टूट गयी…
Added by Sushil Sarna on December 27, 2017 at 6:37pm — 18 Comments
फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ा
22 22 22 22 22 22 22 2
अक्सर खुद से खुद ही लड़ कर, खुद से खुद ही हारे हम
और किसी से शिकवा कैसा, अपने हाथ के मारे हम
हम अपनी पर आ जाते तो, दुनिया बदल भी सकते थे
लेकिन थी कोई बात कि जिससे, बन के रहे बेचारे हम
तन्हाई ने कर डाला है, जिस्म को अब मिट्टी का ढेर
साथ तेरे चाहा था मिल कर, छूते चाँद-सितारे …
ContinueAdded by Ajay Tiwari on December 27, 2017 at 2:12pm — 26 Comments
(फाइलातुन -फइलातुन -फइलातुन -फेलुन)
यूँ नहीं मैं ने ज़माने से बग़ावत की है |
मुझ से उस शोख़ ने बे लौस मुहब्बत की है |
दिल ने मजबूर बहुत कर दिया मुझको वर्ना
मैं ने कब मर्ज़ी से उस शोख़ की हसरत की है |
मुझ से उम्मीद वफ़ा की है उसी को यारो
उम्र भर जिसने मेरे साथ अदावत की है |
रहनुमाई के लिए मैं ने चुना था जिसको
हाए उसने भी मेरे साथ सियासत की है |
सोच लेना वो कोई ग़ैर नहीं अपने हैं
तुमने…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on December 27, 2017 at 2:00pm — 24 Comments
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