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साथ तुम नहीं होते कुछ मज़ा नहीं होता
मेरे घर में खुशियों का सिलसिला नहीं होता
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राह पर सदाक़त की गर चला नहीं होता
सच हमेशा कहने का हौसला नहीं होता
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कोशिशों से देता है रास्ता समंदर भी
हौसला रहे क़यिम फिर तो क्या नहीं होता
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कम खुशी नहीं होती मेरे घर के आँगन में
दिल अगर नहीं बंटता, घर बंटा नहीं होता
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थोड़े ग़म ख़ुशी थोड़ी,थोड़ी सिसकियाँ भी है
ज़िन्दगी से अब हमको कुछ गिला नहीं होता
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डूबती नहीं कश्ती पास आके साहिल के
बे वफ़ा अगर मेरा नाख़ुदा नहीं होता
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उसकी शोख़ नज़रों ने ज़िन्दगी बदल डाली
वो अगर नहीं होता कुछ '' रज़ा '' नहीं होता
.......
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ. भाई सलीम जी , अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
मुहतरम तस्दीक साहिब,
आपकी दुआएँ सलामत रहे
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