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साथ तुम नहीं होते कुछ मज़ा नहीं होता- सलीम रज़ा रीवा

212 1222   212 1222

साथ तुम नहीं होते कुछ मज़ा नहीं होता
मेरे घर में खुशियों का सिलसिला नहीं होता 
-
राह पर सदाक़त की गर चला नहीं  होता 
सच हमेशा कहने का  हौसला नहीं होता
-
कोशिशों से  देता  है  रास्ता समंदर भी
हौसला रहे क़यिम फिर तो क्या नहीं होता
-
कम खुशी नहीं होती मेरे घर के आँगन में 
दिल अगर नहीं बंटता, घर बंटा नहीं होता
-
थोड़े ग़म ख़ुशी थोड़ी,थोड़ी सिसकियाँ भी है
ज़िन्दगी से अब हमको कुछ गिला नहीं होता
-
डूबती नहीं कश्ती पास आके साहिल के 
बे वफ़ा अगर मेरा  नाख़ुदा  नहीं  होता 
-
उसकी शोख़ नज़रों ने ज़िन्दगी बदल डाली
वो अगर नहीं होता कुछ '' रज़ा '' नहीं होता
.......

मौलिक एवं अप्रकाशित 
 

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Comment

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Comment by SALIM RAZA REWA on January 2, 2018 at 9:05pm
जनाब अफरोज साहब,
आपकी महब्बत के लिए दिली शुक्रिया.
Comment by SALIM RAZA REWA on January 2, 2018 at 9:05pm
आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी,
बहुत शुक्रिया.
Comment by Afroz 'sahr' on January 2, 2018 at 12:28pm
आदरणीय सलीम रज़ा जी उम्दा कलाम बहुत बधाई आपको,,,
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 1, 2018 at 10:03pm

आ. भाई सलीम जी , अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by SALIM RAZA REWA on December 31, 2017 at 11:13pm
आप सभी का दिल से शुक्रिया, महब्बत बनाए रखने के लिए
Comment by SALIM RAZA REWA on December 31, 2017 at 11:11pm
महेंद्र भाई बहुत बहुत शुक्रिया
Comment by SALIM RAZA REWA on December 31, 2017 at 11:10pm
आ. सुरेंद्र नाथ जी,
आपका शुक्रिया अदा करता हूं.
Comment by SALIM RAZA REWA on December 31, 2017 at 11:08pm
आदरणीय अजय तिवारी जी,
आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया.
Comment by SALIM RAZA REWA on December 31, 2017 at 11:04pm

मुहतरम तस्दीक साहिब,

आपकी दुआएँ सलामत रहे 

Comment by SALIM RAZA REWA on December 31, 2017 at 11:03pm
आ. तेज वीर जी,
आपकी महब्बत के लिए शुक्रिया.

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