सांस भर की ज़िंदगी ...
वक़्त के साथ
हर शै अपना रूप
बदलती है
धूप ढलती है तो
छाया भी बदलती है
वक़्त के साथ
मोहब्बत की चांदी
केश वन में
चमकने लगी
उम्र की पगडंडियां
झुर्रियों में झलकने लगीं
वक़्त के साथ
यौवन का दम्भ
लाठी का मोहताज़ हो गया
दर्पण
आँख से नाराज़ हो गया
अनुराग
दर्द का राग हो गया
हदें
निगाहों से रूठ गयी
नफ़स
छटपटाई बहुत
आखिर
थककर टूट गयी
वक़्त
चलता रहा
बस
सांस भर की ज़िंदगी
दूर कहीं
छूट गयी
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय अजय तिवारी जी प्रस्तुति को अपना आत्मीय स्नेह देने का दिल से आभार एवं नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार एवं नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
आदरणीय सुशील जी, इस प्रभावशाली काव्य-प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई.
नव वर्ष मंगलमय हो !
सादर
आ. भाई सुशील जी, सुंदर रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।
आदरणीय तेजवीर सिंह जी सादर प्रणाम ... सृजन को आत्मीय मान देने का दिल से आभार। साथ ही आपको नूतन वर्ष की हार्दिक शुभकामनयें।
हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना जी।बेहतरीन प्रस्तुति।
आदरणीय तस्दीक़ अहमद ख़ान साहिब , आदाब . प्रस्तुति की आत्मीय सराहना का दिल से आभारी।
आदरनीय महेन्द्र कुमार जी सृजन आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभारी है।
आदरणीय सुरेन्दर नाथ सिंह जी सृजन की मन मुदित करती प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार।
आदरणीय मो.आरिफ साहिब, आदाब . सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार
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