बहर - 2122 1212 22
अपने दुश्मन पे गुलफिशानी की l
आबरू उसकी पानी पानी की ।।
वार मैंने निहत्थों पर न किया
यूँ ...अदा रस्म खानदानी की l
ख़त्म उस ने ही कर दी ऐ - यारो
जिसने शुरू प्यार की कहानी की l
होंठ उनके जब न कह सके सच
फ़िर निग़ाहों ने सच बयानी की l
शख्स वो दोस्तों था पत्थर दिल
खामखाँ उस पे गुलफिशानी की l
सोचा बेहद के क्या रखूँ ता - उम्र
फ़िर ग़ज़ल " प्रेम " की निशानी की ...
पंकजोम " प्रेम "
Comment
उम्दा ग़ज़ल कही आदरणीय..सादर
खूब सुन्दर रचना
हार्दिक बधाई ।
आदरणीय पंकजोम जी आदाब,
औसत दर्जे की अच्छी ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।
नववर्ष की शुभकामनाएँ !
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