छंदमुक्त काव्य
जिंदगी से जिंदगी लड़ने लगी है
आदमी को आदमी की शक्ल
अब क्यूँ इस तरह अखरने लगी है //
आँख में आँख का तिनका…
ContinueAdded by DR ARUN KUMAR SHASTRI on November 19, 2020 at 1:00pm — 1 Comment
बड़ी नज़ाकत से हमने .....
बड़ी नज़ाकत से हमने
यादों को दिल में पाला है
अपने -अपने दर्दों को
मुस्कराहटों में ढाला है
मुद्दा ये नहीं कि
चराग़ बेवफ़ाई का
जलाया किसने
सच तो ये है अश्क चश्म में
दोनों ने संभाला है
ये हाला है उल्फत की
उल्फत का ये प्याला है
पाक मोहब्बत का दोनों के
दिल में पाक शिवाला है
बड़ी नज़ाकत से हमने
यादों को दिल में पाला है
सुशील सरना
मौलिक एवं अपक्राशित
Added by Sushil Sarna on November 18, 2020 at 6:07pm — 2 Comments
हठ धर्मिता तुम्हारी तुम ही धरो
मुझ से तो तुम बस सहयोग ही करो
मानव जनम मिला है तत्सम आचरण करो
हठ धर्मिता तुम्हारी तुम ही धरो
प्रेरणा न बन सको तो कोई फरक नही
लेकिन किसी सन्मार्ग में कंटक तो न बनो
हठ धर्मिता तुम्हारी तुम ही धरो
मै आज हूँ बस आज और अभी
गुजरे हुये पलो से मेरी तुलना तो न करो
भविष्य से मेरा कोई सम्बन्ध है कहा
वर्तमान को ही मैंने जीवन कहा
हठ धर्मिता तुम्हारी तुम ही धरो
मुझ से तो तुम बस सहयोग…
ContinueAdded by DR ARUN KUMAR SHASTRI on November 14, 2020 at 6:00pm — 6 Comments
मेटती आयी है घर की तीरगी दीपावली
सब के मन में भी करे अब रोशनी दीपावली।१।
**
रीत कितने ही युगों से चल रही हो ये भले
हर बरस लगती है सब को पर नई दीपावली।२।
**
तोड़ आओ ये नगर का जाल कहती साथियों
गाँव की नीची मुँडेरों पर जली दीपावली।३।
**
दीप सब ये प्रेम और' विश्वास के हैं इसलिए
आँख चुँधियाती नहीं साथी घनी दीपावली।४।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 14, 2020 at 8:57am — 8 Comments
दीपोत्सव हम मना रहे
जगमग जग ये हो सारा
ज्ञान का ऐसा दीप जलायें
अज्ञान दूर हो जग से सारा
सौहार्द प्रेम का हो प्रसार
वसुधैव कुटुम्बकम का सच हो नारा
दीपक ऐसा एक जलायें
फैले प्रेम का उजियारा
(मौलिक/अप्रकाशित)
Added by Veena Gupta on November 14, 2020 at 2:00am — 4 Comments
2122 1212 22/112
फिर से मुझको न वो हरा जाए
इससे पहले ही कुछ किया जाए (1)
जब वो आँखों से कुछ नहीं कहता
कान में कुछ तो बुदबुदा जाए (2)
बन गया है वो मील का पत्थर
अब उसे ठीक से पढ़ा जाए (3)
यार अब बन गया अदू मेरा
अब भले को बुरा कहा जाए (4)
सीधे रस्ते पे क्या चलेगा वो
जिसका ईमान डगमगा जाए (5)
है जबाँ यार ये महब्बत की
उससे उर्दू में कुछ कहा जाए…
Added by सालिक गणवीर on November 13, 2020 at 9:30am — 7 Comments
मुंगेरीलाल और कोरोनाकाल... सबके बहुत बुरे हालचाल! लॉकडाउन पर लॉकडाउन... घर में क़ैद सब जॉब डाउन, रोज़गार डाउन! बेचारे मुंगेरीलाल ने अपनी कम्पनी की नौकरी छोड़कर बड़ी मुसीबत कर ली थी सात साल पहले। उनका काम और रुझान दिलचस्प और संतोषजनक था, फ़िर भी सपनों और दिवास्वप्नों में खोये रहने और बड़ी-बड़ी बातें फैंकने के कारण दफ़्तर, घर, बाज़ार और ससुराल सभी जगह लोग उनका मज़ाक उड़ा-उड़ा कर मौज-मस्ती कर लिया करते थे। उन सबकी बातों को मुंगेरीलाल कभी हल्के में, तो कभी बहुत गंभीरता से ले लेते थे।
एक बार…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on November 12, 2020 at 8:30am — 2 Comments
भगवान देता है, तो छप्पर फाड़ कर देता है। लेता है, तो एक झटके में ले लेता है। देकर ले लेता है, तो हँसाने के बाद रुला-रुला कर। राजन, रंजीता और गंगा का ज़िन्दगीनामा भी यही साबित करता रहा; गार्गी और गार्गी की बार्बी का भी! बार्बी के साथ कब, क्या, कैसे और क्यूँ होगा; बार्बी ने कभी सोचा न था। सोचती भी कैसे? उसकी सोच तो उसकी मम्मी पर निर्भर थी। उसकी मम्मी ने भी तो न सोचा था वह सब। यही हाल गार्गी का था। गार्गी के साथ कब, क्या, कैसे और क्यूँ होगा; गार्गी ने कभी सोचा न था। सोचती भी कैसे? उसकी सोच तो…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on November 10, 2020 at 8:30am — 4 Comments
दोस्तो गर ज़िन्दगी में कामरानी चाहिए
ज़ह्न-ओ-दिल से गर्द नफ़रत की हटानी चाहिए
अर्ज़ कर दूँ आख़िरी ख़्वाहिश इजाज़त हो अगर
एक शब मुझको तुम्हारी मेज़बानी चाहिए
ज़िल्ल-ए-सुब्हानी अगर कुछ आपसे बच पाए तो
हम ग़रीबों को भी थोड़ी शादमानी चाहिए
मूँद कर आँखें न चलना याद रखना ये सबक़
ज़िन्दगी में हर क़दम पर सावधानी चाहिए
ज़िन्दगी में लाज़मी तो है मगर इंसान को
दफ़्न करने के लिये भी माल पानी चाहिए
फ़ज़्ल से रब के मुकम्मल हो गई मेरी ग़ज़ल
दोस्तो…
Added by Samar kabeer on November 9, 2020 at 5:30pm — 22 Comments
आज वो बेहद खुश थी। कई दिनों बाद कुछ ठीक-ठाक ग्राहक आये थे। वह अरसे बाद आज रात बच्चों को अच्छा खाना खिला पाई थी। बच्चे भी बहुत दिनों बाद अच्छा खाना खाकर तृप्त दिख रहे थे, "माँ, वाह, मज़ा आ गया !"
आज की इस आमदनी की बात उसके दल्ले पति से भी न छुपी रह सकी थी। दो-चार थप्पड़ रसीद कर उसने उससे कुछ पैसे ऐंठ लिये। ठेके पर दोस्तों के साथ बैठ, ठर्रा गटकाते हुए उधर वह भी बड़बड़ाये जा…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 9, 2020 at 4:21pm — 8 Comments
212 212 212 212
1
दोस्तों के बिना ज़िन्दगी दोस्तो
इक कहानी उदासी भरी दोस्तो
2
बीच में फ़ासले ला के दौलत के क्यों
आज़माने लगी दोस्ती दोस्तो
3
हाथ में हाथ डाले खड़ी दोस्ती
गर्दिश-ए-दौराँ से लड़ के भी दोस्तो
4
कारवाँ अज़्म का रोके रुकता नहीं
राह चाहे हो मुश्किल भरी दोस्तो
5
हार बैठे हैं दिल कू-ए-उल्फ़त में हम
अब न खेलेंगे बाजी नई दोस्तो
6
सुब्ह होते ही बेहिस जहाँ के सितम
ढूँढ लेंगे हमारी गली…
Added by Rachna Bhatia on November 9, 2020 at 1:00pm — 7 Comments
आज मम्मी जी पापा जी छोटे के लिए लड़की देखने जा रहे। हम दो भाई है, छोटे भाई का नाम अभिषेक है। मुझे तो बैंक जाना था, फरवरी मार्च दो महीने, बैंक से छट्टिया वैसे भी नहीं मिलतीं। सास- ससुर की लाड़ली बड़ी बहू उनके साथ जारही थी। बहुत खुश थी, बड़ी बहू-चयन का विशेष दायित्व जो मिल गया था। पापा जी ने तो कह दिया था, हम ठहरे पुराने जमाने के लोग, आजकल जो अपेक्षाएं, एक बहू से परिवार को हो सकती है तुम बेहतर जानती हो। ड्राईवर के आते ही कहा, गाड़ी लगाओ, रामबीर चार घंटे का रास्ता है । बारह बजे तक पहुँचना है,…
ContinueAdded by Chetan Prakash on November 8, 2020 at 7:00pm — 6 Comments
जब मैं कल रात ड्यूटी से घर आई , तो महाभारत घर में पहले से ही हमेशा की तरह चल रही थी। मुझे समझ नहीं आ रहा कि जब घर वालों ने अपनी मर्जी से मेरी शादी की, मेरी राय तक नहीं पूछी गई l क्यूंकि मेरे जैसी जो पहले ही तीस पार कर चुकी होl उन से भला कौन राय लेता l मैं तो बोझ थी, जिसको निपटाना चाहा l जानलेवा बीमारी ने शादी के कुछ महीनों बाद ही उनको मुझसे जब दूर कर दिया। तब मुझे लगा, अब मुझे उस घर में एक अजनबी की तरह नहीं रहना चाहिए, मैं जल्दी से उनका बोझ कम करना चाहा। उनके जाने के बाद, मैं उस घर में अकेले…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on November 4, 2020 at 9:30pm — 3 Comments
अनजाने से .....
मैं
व्यस्त रही
अपने बिम्ब में
तुम्हारे बिम्ब को
तराशने में
तुम
व्यस्त रहे
स्वप्न बिम्बों में
अपना स्वप्न
तराशने में
हम
व्यस्त रहे
इक दूसरे में
इक दूसरे को
तलाशने में
वक्त उतरता रहा
धूप के सायों की तरह
मन की दीवारों से
हम के आवरण से निकल
मैं और तू
रह गए कहीं
अधूरी कहानी के
अपूर्ण से
अफ़साने…
Added by Sushil Sarna on November 4, 2020 at 7:30pm — 7 Comments
221 1221 1221 122
.
आँखों मे छुपी अश्कों की जागीर का मतलब
समझेगी न ये दुनिया मेरी पीर का मतलब
चल मुझसे नहीं तुझको महब्बत ज़रा समझा
वो पर्स में तेरे मेरी तस्वीर का मतलब
जन्नत है कहीं गर तो यहीं पर है यहीं पर
क्या था कभी क्या आज है कश्मीर का मतलब
थे एक से बढ़ एक गुरु फिर भी न समझे
वो बीच सभा खिंचते हुए चीर का मतलब
इस जिस्म के हर हिस्से में बाँधे हूँ मैं ज़ेवर
कैसे मुझे मालूम हो जंजीर का…
Added by anjali gupta on November 3, 2020 at 11:30pm — 8 Comments
हमें अबूझा ही लगा, लोकतंत्र का रूप ..
रात-रात भर मंत्रणा, करती व्याकुल धूप !
कैसे कितना कौन कब, किसे लगाता तेल
गणना-गणित चुनाव का, भितरघात-धुरखेल
बहुत कमीने रहनुमा, क्या हम बाँधें आस
इंद्रमंच पर बैठ कर, करते हैं बकवास ।।
दिखा-दिखा वह तर्जनी, पुलक रहा हर बार
मालिक हम भी जानते, क्या होती सरकार !!
राजा-राजा खेलते, बेवकूफ हम रंक !
उँगली थामे सोचिए, दाग लगा या डंक ?
***
सौरभ
(मौलिक और…
ContinueAdded by Saurabh Pandey on November 3, 2020 at 8:00pm — 4 Comments
जीने से पहले ......
मिट गई
मेरी मोहब्बत
ख़्वाहिशों के पैरहन में ही
जीने से पहले
जाने क्या सूझी
इस दिल को
संग से मोहब्बत करने का
वो अज़ीम गुनाह कर बैठा
अपने ख़्वाबों को
अपने हाथों
खुद ही तबाह कर बैठा
टूट गए ज़िंदगी के जाम
स्याह रातों में
ज़िंदगी
जीने से पहले
डूबता ही गया
हसीन फ़रेबों के ज़लज़ले में
ये दिल का सफ़ीना
भूल गया
मौजों की तासीर
साहिल कब बनते हैं
सफ़ीनों की…
Added by Sushil Sarna on November 2, 2020 at 6:05pm — 8 Comments
212 212 212 212
आज दिल उसके दुख से दुखी है मेरा
जो किसी का नहीं अब वही है मेरा (1)
मौत मुझको बुलाती है हर पल मगर
ज़िंदगी रास्ता रोकती है मेरा (2)
लिख न पाऊँगा मैं आज क्या हो गया
मौत से सामना आज भी है मेरा (3)
डगमगाते हैं जब भी क़दम ये मिरे
यार मंज़िल पता पूछती है मेरा (4)
रख दिया है मुझे आग के सामने
जानता है बदन काग़ज़ी है मेरा (5)
रोक सकता नहीं रथ के पहिए कोई
अब…
Added by सालिक गणवीर on November 2, 2020 at 5:00pm — 9 Comments
मुफाईलुन*4
खरीदूँ कौन सी सब्जी बड़े लगते झमेले हैं
कहीं लौकी कहीं कद्दू कहीं कटहल के ठेले हैं
इधर भिन्डी बड़ी शर्मो हया से मुस्कुराती है
अजब नखरे टमाटर के पड़ोसी कच्चे केले हैं
तुनक में मिर्च बोली आ तुझे जलवा दिखाती हूँ
कहे धनिया हमें भी साथ ले लो हम अकेले हैं
शकरकंदी,चुकंदर ने सजाई नाज से महफ़िल
सुनाया राग आलू ने मगन बैगन,करेले हैं
घड़ी भर को जरा पहलु में लहसुन,प्याज आ बैठो
जुदाई में तुम्हारी 'ब्रज' ने…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 1, 2020 at 8:00pm — 7 Comments
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